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बोहरा मुसलमान भारत सहित विश्व के अनेक देशों में पाए जाने वाले एक धार्मिक और सांस्कृतिक समूह हैं। यह समुदाय इस्लाम धर्म के शिया संप्रदाय से संबंधित है और मुख्य रूप से 'दाऊदी बोहरा' के नाम से जाना जाता है। उनका इतिहास, धार्मिक विश्वास, परंपराएं, और जीवन शैली उन्हें एक विशिष्ट पहचान प्रदान करती है। आइए इस समुदाय को विस्तार से समझते हैं।
बोहरा समुदाय का इतिहास इस्लाम धर्म के प्रारंभिक समय तक जुड़ा हुआ है। यह समुदाय फातिमिद ख़िलाफत (10वीं से 12वीं शताब्दी) से उत्पन्न हुआ, जो मिस्र में स्थित था। फातिमिद ख़िलाफत के इमामों के नेतृत्व में इस्लाम के इश्माइली शिया संप्रदाय का विकास हुआ। जब फातिमिद साम्राज्य का पतन हुआ, तो इस्माइली दावाई गतिविधियाँ यमन में केंद्रित हो गईं। यहीं से बोहरा समुदाय का एक बड़ा हिस्सा भारत में प्रवास कर गया।
भारत में यह समुदाय गुजरात और राजस्थान के क्षेत्रों में बस गया। समय के साथ, यहां बोहरा मुसलमानों ने व्यापार और वाणिज्य के क्षेत्र में ख्याति अर्जित की। उनकी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान भारत में और मजबूत होती गई।
बोहरा मुसलमानों के धार्मिक विश्वास मुख्य रूप से इस्माइली शिया सिद्धांतों पर आधारित हैं। उनके धार्मिक जीवन में निम्नलिखित प्रमुख पहलुओं का स्थान है:
इमामों और दाई की मान्यता दाऊदी बोहरा समुदाय विश्वास करता है कि उनके धार्मिक नेता, जिन्हें 'सैयदना' या 'दाई अल-मुतलक' कहा जाता है, इमाम के प्रतिनिधि हैं। यह नेता धार्मिक मामलों के साथ-साथ सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन में मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
दावा इस्माइली सिद्धांत बोहरा मुसलमान इस्लाम धर्म की इश्माइली शाखा से संबंधित हैं, जो ज्ञान, अध्यात्म और धार्मिक अनुष्ठानों को केंद्र में रखता है। वे कुरान की व्याख्या को गहरे आध्यात्मिक और दार्शनिक दृष्टिकोण से देखते हैं।
मस्जिद और जमातखाना बोहरा समुदाय में प्रार्थना और सामाजिक गतिविधियों के लिए मस्जिद और जमातखाना (सामुदायिक केंद्र) का उपयोग होता है। उनकी मस्जिदें उनके विशिष्ट स्थापत्य शैली के लिए प्रसिद्ध हैं।
फातिमिद कैलेंडर बोहरा मुसलमान फातिमिद कैलेंडर का अनुसरण करते हैं, जो इस्लामिक चंद्र कैलेंडर से थोड़ा भिन्न है। वे अपने धार्मिक त्योहार और अनुष्ठान इसी के आधार पर मनाते हैं।
पहनावा बोहरा मुसलमानों का पारंपरिक पहनावा उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को दर्शाता है। पुरुषों के लिए 'सादरा' और 'पायजामा' के साथ सफेद टोपी आम है, जबकि महिलाओं के लिए रंगीन रिदा (सिर से लेकर पैर तक ढकने वाला परिधान) प्रमुख है।
भोजन इस समुदाय के खान-पान में हलाल मांस और शुद्धता का विशेष महत्व है। उनके पारंपरिक व्यंजन जैसे कि 'लाल मसाला', 'ढोकला', और 'खिचड़ा' न केवल समुदाय के भीतर बल्कि बाहर भी लोकप्रिय हैं।
शिक्षा और व्यापार बोहरा समुदाय ने शिक्षा और व्यापार के क्षेत्र में ख्याति प्राप्त की है। वे उच्च शिक्षित और सुसंस्कृत माने जाते हैं। व्यापार, खासकर सोने और कपड़ा उद्योग में उनकी सक्रियता प्रमुख है।
सामाजिक योगदान बोहरा समुदाय सामुदायिक कल्याण और परोपकार में भी अग्रणी है। उनके द्वारा शुरू किए गए कई सामाजिक प्रकल्प जैसे स्वच्छता अभियान, स्वास्थ्य सेवाएँ, और पर्यावरण संरक्षण प्रशंसा के योग्य हैं।
बोहरा मुसलमानों की उपस्थिति भारत के अलावा पाकिस्तान, यमन, अमेरिका, यूरोप, और ऑस्ट्रेलिया सहित अनेक देशों में है। उनका वैश्विक समुदाय आपस में जुड़ा हुआ है और अक्सर धार्मिक समारोहों और सामाजिक कार्यक्रमों में सक्रिय भागीदारी करता है।
बोहरा मुसलमानों की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को सहेजने में कई चुनौतियाँ हैं। आधुनिकता और वैश्वीकरण के दौर में, उनकी पारंपरिक परंपराओं का संरक्षण महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, सामुदायिक एकता को बनाए रखना और युवाओं को उनकी सांस्कृतिक विरासत के प्रति जागरूक करना भी एक चुनौती है।
हालांकि, बोहरा समुदाय ने समय के साथ इन चुनौतियों का सामना करने के लिए अपने धार्मिक और सामाजिक तंत्र को मजबूत किया है। उनके नेताओं की सक्रियता और शिक्षित दृष्टिकोण भविष्य में इस समुदाय को और मजबूत बनाएगा।
बोहरा मुसलमानों का समुदाय धार्मिक, सांस्कृतिक, और सामाजिक विविधता का प्रतीक है। उनका इतिहास, विश्वास, और परंपराएँ न केवल उनकी विशिष्ट पहचान बनाती हैं, बल्कि उनके योगदान ने समाज और राष्ट्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। बोहरा मुसलमानों का यह समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर हमें सहिष्णुता, सामुदायिकता, और परंपरा के मूल्य सिखाती है।
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