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sahil sharma

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दाढ़ी पर कर टैक्स किसने वसूला था?


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दाढ़ी पर कर लगाने का इतिहास अजीब और रोचक है। यह विषय न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समाज के सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताओं को भी दर्शाता है। इस लेख में हम जानेंगे कि दाढ़ी पर टैक्स किसने और क्यों लगाया था, इसके पीछे की सोच क्या थी, और यह कैसे समाप्त हुआ।

 

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पीटर द ग्रेट का शासनकाल

रूस के राजा पीटर द ग्रेट ने 1698 में दाढ़ी पर टैक्स लगाया। उनका उद्देश्य रूसी समाज को यूरोपीय मानकों के अनुसार आधुनिक बनाना था। पीटर द ग्रेट ने अपने शासनकाल में कई सुधार किए, जिनमें से एक यह था कि उन्होंने रूसी लोगों को दाढ़ी कटवाने के लिए प्रेरित किया। उनका मानना था कि दाढ़ी एक पिछड़ी हुई संस्कृति का प्रतीक है और इसे हटाने से रूस की छवि में सुधार होगा।

 

टैक्स की संरचना

इस टैक्स के तहत, दाढ़ी रखने वालों को विभिन्न प्रोफेशन के आधार पर अलग-अलग दरों पर टैक्स चुकाना पड़ता था। रईसों को हर साल 60 रूबल, बिजनेसमैन को 100 रूबल और आम नागरिकों को 30 रूबल देने होते थे। यह टैक्स न केवल आर्थिक बोझ था, बल्कि यह सामाजिक असमानता को भी बढ़ावा देता था। जो लोग टैक्स नहीं चुकाते थे, उन्हें गंभीर परिणामों का सामना करना पड़ता था।

 

दाढ़ी रखने की अनुमति और टोकन प्रणाली

दाढ़ी रखने के लिए लोगों को एक विशेष टोकन प्राप्त करना होता था। यह टोकन यह प्रमाणित करता था कि उन्होंने टैक्स चुका दिया है, और इसे हमेशा साथ रखना अनिवार्य था। यदि कोई व्यक्ति बिना टोकन के पाया जाता, तो उसे दंडित किया जा सकता था। इस प्रणाली ने लोगों के लिए दाढ़ी रखना एक चुनौती बना दिया।

 

टैक्स का असफलता और समाप्ति

हालांकि, यह टैक्स ज्यादा प्रभावी नहीं रहा। धार्मिक मान्यताओं के कारण अधिकांश लोग दाढ़ी रखना पसंद करते थे, जिससे टैक्स वसूली में कठिनाई हुई। लोग अपनी धार्मिक पहचान और सांस्कृतिक विरासत को बनाए रखने के लिए तैयार थे, भले ही इसके लिए उन्हें आर्थिक रूप से दबाव का सामना करना पड़े। अंततः 1772 में कैथरीन द ग्रेट ने इसे समाप्त कर दिया, यह स्वीकार करते हुए कि यह नीति समाज में असंतोष पैदा कर रही थी।

 

अन्य देशों में दाढ़ी पर कर

रूस के अलावा इंग्लैंड में भी दाढ़ी पर कर लगाया गया था। किंग हेनरी VIII ने इसी तरह का एक टैक्स लागू किया था, जो असफल रहा। इंग्लैंड में भी लोगों ने अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने के लिए इस कर का विरोध किया। इस प्रकार, यह स्पष्ट होता है कि दाढ़ी पर कर लगाने की प्रवृत्ति केवल रूस तक सीमित नहीं थी।

 

निष्कर्ष

दाढ़ी पर कर लगाने का प्रयास न केवल अजीब था बल्कि यह समाज के सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ भी गया। यह घटना इतिहास में एक महत्वपूर्ण उदाहरण है कि कैसे सरकारें राजस्व जुटाने के लिए अनोखे उपाय अपनाती हैं। आज भी, जब हम अपने व्यक्तिगत चयन और पहचान की बात करते हैं, तो हमें याद रखना चाहिए कि इतिहास से हमें क्या सीखने को मिलता है। दाढ़ी पर कर केवल एक आर्थिक नीति नहीं थी; यह उस समय की सामाजिक मानसिकता और सांस्कृतिक संघर्षों का प्रतीक भी थी।

 


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