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'जय जवान, जय किसान' एक ऐसा नारा है जो भारतीय राजनीति और समाज में गहरे तरीके से जुड़ा हुआ है। यह नारा भारतीय जनता के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुका है, और यह नारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बाद देश की सामाजिक-आर्थिक धारा को सुधारने के उद्देश्य से दिया गया था। इस नारे के पीछे एक महान नेता का हाथ था, जिनका नाम था लाल बहादुर शास्त्री।
लाल बहादुर शास्त्री भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख नेता थे, और बाद में वह भारत के दूसरे प्रधानमंत्री बने। उनके कार्यकाल के दौरान कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाएँ घटीं और 'जय जवान, जय किसान' का नारा भी इसी समय के दौरान दिया गया। यह नारा न केवल भारतीय सेना के महत्व को सम्मानित करता था, बल्कि यह किसान के संघर्ष और उसकी मेहनत को भी प्रकट करता था, जो उस समय की भारतीय कृषि व्यवस्था के लिए अत्यंत आवश्यक था।
लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़कर स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और अंग्रेजों के खिलाफ अनेक आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभाई। शास्त्री जी का जीवन एक साधारण से परिवार में प्रारंभ हुआ था, लेकिन उनका योगदान भारतीय राजनीति और प्रशासन में अत्यधिक महत्वपूर्ण रहा। शास्त्री जी को उनकी नीतियों और कार्यों के लिए हमेशा याद किया जाता है, जैसे कि उन्होंने भारतीय नागरिकों को सादगी और ईमानदारी का आदर्श प्रस्तुत किया।
शास्त्री जी का प्रधानमंत्री बनने से पहले, उन्होंने कई महत्वपूर्ण प्रशासनिक पदों पर कार्य किया था। 1964 में नेहरू जी की मृत्यु के बाद, उन्हें भारत का प्रधानमंत्री चुना गया। प्रधानमंत्री बनने के बाद, शास्त्री जी ने भारत की आंतरिक और बाह्य नीतियों में कई अहम निर्णय लिए, जिनका आज भी सम्मान किया जाता है।
'जय जवान, जय किसान' का नारा भारत की राजनीति और समाज में बहुत गहरे असर डालने वाला था। शास्त्री जी ने यह नारा 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान दिया था। यह नारा दो प्रमुख भारतीय वर्गों—सैन्य और किसान—की कड़ी मेहनत और बलिदान का सम्मान करने के उद्देश्य से था।
भारत-पाक युद्ध 1965 में हुआ था, जिसमें भारतीय सेना ने पाकिस्तान के खिलाफ महान साहसिकता और बहादुरी का प्रदर्शन किया। युद्ध के समय, भारतीय सेना ने न केवल अपने देश की सुरक्षा के लिए कड़ी मेहनत की, बल्कि अपनी वीरता और बलिदान के जरिए देशवासियों को यह विश्वास दिलाया कि भारत हर चुनौती का सामना कर सकता है।
प्रधानमंत्री शास्त्री ने इस समय के दौरान भारतीय सैनिकों की वीरता को सम्मानित करने के लिए 'जय जवान' का नारा दिया। उनका मानना था कि देश की सुरक्षा में जवानों का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है, और उनके संघर्ष के बिना कोई भी देश अपनी स्वतंत्रता और सुरक्षा की रक्षा नहीं कर सकता। 'जय जवान' के जरिए उन्होंने भारतीय सैनिकों को प्रेरित किया और साथ ही उन्हें सम्मानित किया। यह नारा आज भी भारतीय सेना के प्रति सम्मान और गर्व का प्रतीक बन चुका है।
भारत एक कृषि प्रधान देश है, और भारतीय समाज में किसानों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। शास्त्री जी ने यह नारा किसानों के प्रति अपनी कृतज्ञता और समर्थन दिखाने के लिए दिया था। 1965 के समय में भारतीय कृषि संकट से गुजर रहा था। किसानों को उत्पादन बढ़ाने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता था। शास्त्री जी ने 'जय किसान' के माध्यम से किसानों के कठिन परिश्रम और संघर्ष को पहचाना और उन्हें प्रोत्साहित किया।
इसके अतिरिक्त, शास्त्री जी के कार्यकाल में हरित क्रांति (Green Revolution) की शुरुआत हुई, जिससे भारत में खाद्यान्न उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। शास्त्री जी ने किसानों को उन्नत कृषि तकनीक, उर्वरकों, और बेहतर बीजों के इस्तेमाल के लिए प्रोत्साहित किया। उनके द्वारा दिए गए 'जय किसान' के नारे ने किसानों के काम को राष्ट्रीय स्तर पर महत्व दिया और किसानों के प्रति समाज के दृष्टिकोण में बदलाव लाया।
'जय जवान, जय किसान' का नारा न केवल उस समय के लिए प्रेरणादायक था, बल्कि यह आज भी भारतीय राजनीति और समाज में गहरे तरीके से जीवित है। इस नारे ने भारतीय जनता को यह संदेश दिया कि देश की रक्षा और खाद्य सुरक्षा दोनों के लिए दो प्रमुख स्तंभ—सेना और किसान—अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
इस नारे का एक बड़ा प्रभाव यह था कि इसने देशवासियों को एकजुट किया और उन्हें यह अहसास दिलाया कि जब तक भारतीय सेना और किसान मिलकर काम करेंगे, तब तक भारत किसी भी संकट का सामना कर सकता है। यह नारा उन दोनों वर्गों के लिए गर्व और सम्मान का प्रतीक बन गया है।
इसके अलावा, यह नारा भारतीय राजनीति में भी एक सकारात्मक बदलाव का संकेत था। शास्त्री जी ने इस नारे के जरिए यह दिखाया कि हर वर्ग का अपने देश में योगदान महत्वपूर्ण है, और सभी वर्गों को समान महत्व मिलना चाहिए। उनका यह संदेश आज भी भारतीय समाज के लिए प्रासंगिक है, जहां किसानों और सैनिकों की भूमिका को हर किसी द्वारा सम्मानित किया जाता है।
आज के समय में, जब देश विभिन्न सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक चुनौतियों का सामना कर रहा है, 'जय जवान, जय किसान' का नारा अब भी प्रासंगिक है। यह नारा न केवल भारतीय सेना के वीरता और किसानों के संघर्ष का प्रतीक है, बल्कि यह भारतीय समाज की एकता और समृद्धि के लिए एक प्रेरणा भी है। भारतीय सेना आज भी अपनी वीरता के लिए प्रसिद्ध है, और भारतीय किसान भी अपने अथक प्रयासों के जरिए देश की खाद्य सुरक्षा को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
आज के समय में यह नारा हमें यह याद दिलाता है कि समाज के विभिन्न वर्गों—जैसे कि जवान और किसान—की मेहनत और बलिदान के बिना देश का विकास और सुरक्षा संभव नहीं है। यह नारा हमें अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को समझने और उसे निभाने की प्रेरणा देता है।
'जय जवान, जय किसान' का नारा न केवल एक ऐतिहासिक संदर्भ से जुड़ा हुआ है, बल्कि यह भारतीय समाज और राजनीति में एक स्थायी प्रभाव छोड़ने वाला विचार है। इस नारे को देने वाले महान नेता, लाल बहादुर शास्त्री ने देश के दोनों सबसे महत्वपूर्ण स्तंभों—सेना और किसान—की महत्वता को स्वीकार किया और उन्हें सम्मानित किया। उनका यह नारा आज भी भारतीय जनता को प्रेरित करता है और देश के दोनों वर्गों को एकजुट करता है, ताकि भारत का उज्जवल भविष्य सुनिश्चित हो सके।
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