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sahil sharma

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लोकसभा का अध्यक्ष कौन होता है?


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लोकसभा का अध्यक्ष (Speaker of the Lok Sabha) भारतीय संसद का एक महत्वपूर्ण पद है, जिसका कार्य संविधान के तहत निर्धारित किया गया है। यह पद भारतीय लोकतंत्र में केंद्रीय भूमिका निभाता है क्योंकि यह सदन के संचालन और उसकी कार्यवाही के समुचित और व्यवस्थित संचालन को सुनिश्चित करता है। लोकसभा का अध्यक्ष सदन के पूरे कार्य की निगरानी करता है और उसे संविधान, नियमों और प्रक्रियाओं के अनुसार चलाने का उत्तरदायित्व उसे सौंपा जाता है।

 

इस लेख में हम लोकसभा के अध्यक्ष के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे, जिसमें उनके चयन की प्रक्रिया, शक्तियाँ, कर्तव्य, और उनके इतिहास को समझेंगे। साथ ही यह भी जानेंगे कि यह पद भारतीय लोकतंत्र की प्रक्रिया में क्यों अत्यंत महत्वपूर्ण है।

 

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लोकसभा का अध्यक्ष: परिभाषा और भूमिका

लोकसभा का अध्यक्ष वह व्यक्ति होता है, जो भारत की संसद के निचले सदन, यानी लोकसभा, की कार्यवाही की अध्यक्षता करता है। अध्यक्ष का कार्य यह सुनिश्चित करना है कि लोकसभा की बैठकें सुचारु रूप से चलें, सभी सदस्य अपने विचारों को व्यक्त करें, और सदन में अनुशासन और व्यवस्था बनी रहे। इसके अलावा, अध्यक्ष का कार्य यह भी है कि वह विधायिका के सदस्यों के अधिकारों की रक्षा करे और संविधान व संसद के नियमों का पालन सुनिश्चित करे।

 

अध्यक्ष का चुनाव

लोकसभा का अध्यक्ष भारत के संविधान द्वारा निर्धारित एक विशिष्ट प्रक्रिया के तहत चुना जाता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 93 के अनुसार, लोकसभा के अध्यक्ष का चुनाव संसद के पहले सत्र में किया जाता है, जब नए चुनाव के बाद लोकसभा का गठन होता है। अध्यक्ष का चुनाव सदन के सदस्य ही करते हैं। चुनाव के लिए किसी सदस्य को नामांकित किया जाता है, और फिर सदस्यों के बीच मतदान के द्वारा अध्यक्ष का चयन होता है।

 

चुनाव प्रक्रिया:

  1. लोकसभा के पहले सत्र के उद्घाटन के समय, भारतीय राष्ट्रपति एक अस्थायी अध्यक्ष (pro tem speaker) नियुक्त करते हैं। यह अस्थायी अध्यक्ष एक प्रकार से चुनाव प्रक्रिया का संचालन करता है।

  2. अस्थायी अध्यक्ष के तहत सदस्य अपने-अपने नामों की घोषणा करते हैं और उम्मीदवारों का चयन होता है।

  3. अगर एक से अधिक उम्मीदवार होते हैं, तो मतदान कराया जाता है। मतदान गुप्त रूप से होता है और जीतने वाले उम्मीदवार को अध्यक्ष चुना जाता है।

  4. यदि एक ही उम्मीदवार होता है, तो अध्यक्ष का चुनाव निर्विरोध रूप से हो जाता है।

 

चुनाव के बाद, नए अध्यक्ष को राष्ट्रपति द्वारा शपथ दिलाई जाती है। अध्यक्ष का कार्यकाल लोकसभा के समापन तक होता है, जब तक नए चुनाव के द्वारा उनका प्रतिस्थापन नहीं हो जाता।

 

अध्यक्ष के कर्तव्य और शक्तियाँ

लोकसभा का अध्यक्ष सदन के संचालन से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों को निभाता है। इन कर्तव्यों और शक्तियों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि संसद का काम संविधान, विधायिका के नियमों और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के अनुसार हो। निम्नलिखित हैं अध्यक्ष के प्रमुख कर्तव्य और शक्तियाँ:

 

  1. सदन की कार्यवाही की अध्यक्षता करना: अध्यक्ष का सबसे महत्वपूर्ण कार्य लोकसभा की बैठकों की अध्यक्षता करना होता है। वह सदन की कार्यवाही को सुव्यवस्थित और अनुशासित रखने के लिए नियमों का पालन कराते हैं। अध्यक्ष यह सुनिश्चित करते हैं कि सभी सदस्य अपना वक्तव्य संविधान और नियमों के तहत दें और सदन की कार्यवाही में कोई अवरोध न हो।

  2. विधानसभा का संचालन: अध्यक्ष यह सुनिश्चित करते हैं कि लोकसभा में सभी महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा हो, मतदान किया जाए, और निर्णय लिया जाए। वह यह भी तय करते हैं कि किसे बोलने का अवसर मिलेगा और किसे नहीं। यदि कोई सदस्य सदन के नियमों का उल्लंघन करता है, तो अध्यक्ष उसे चेतावनी दे सकते हैं या सदन से बाहर भी कर सकते हैं।

  3. विधान निर्माण में भागीदारी: अध्यक्ष का एक और महत्वपूर्ण कार्य विधायिका की प्रक्रिया में भाग लेना होता है। वह यह सुनिश्चित करते हैं कि कानूनों के निर्माण में पूरी पारदर्शिता हो और सभी पक्षों को अपना विचार रखने का अवसर मिले।

  4. सदन में अनुशासन बनाए रखना: सदन में अनुशासन बनाए रखने के लिए अध्यक्ष को शक्तियाँ प्राप्त होती हैं। यदि कोई सदस्य असंयमित व्यवहार करता है या सदन के नियमों का उल्लंघन करता है, तो अध्यक्ष उसे सजा देने का अधिकार रखते हैं। वे सदस्य को भाषण देने से रोक सकते हैं या उसे सदन से बाहर भी कर सकते हैं।

  5. सदन में मतदान की प्रक्रिया का संचालन: जब कोई मुद्दा मतदान के लिए आता है, तो अध्यक्ष यह तय करते हैं कि मतदान का तरीका क्या होगा (हाथों से मतदान, गुप्त मतदान आदि)। वह यह सुनिश्चित करते हैं कि मतदान प्रक्रिया निष्पक्ष और सही तरीके से हो।

  6. नियमों का पालन करना: अध्यक्ष यह सुनिश्चित करते हैं कि लोकसभा की कार्यवाही संविधान, संसद के नियमों और विनियमों के तहत हो। वह सदन में पेश किए गए सभी विधेयकों की विधायिक प्रक्रिया की निगरानी करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि किसी भी सदस्य को नाइंसाफी न हो।

  7. सदन के समय का प्रबंधन: अध्यक्ष यह तय करते हैं कि सदन की बैठक कितनी देर चलेगी, और किस मुद्दे पर कितनी चर्चा होगी। वह सदस्य की उपलब्धता और चर्चा के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए कार्यवाही की गति निर्धारित करते हैं।

  8. विशेषाधिकारों का संरक्षण: अध्यक्ष का कार्य यह भी है कि वह लोकसभा के सदस्यों के विशेषाधिकारों की रक्षा करें। सदस्यों को संसद के भीतर स्वतंत्र रूप से अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार है, और अध्यक्ष यह सुनिश्चित करते हैं कि किसी सदस्य का यह अधिकार न छिना जाए।

 

अध्यक्ष की शक्तियाँ

लोकसभा का अध्यक्ष संविधान और संसद के नियमों के तहत कई प्रकार की शक्तियों का प्रयोग करता है। इनमें से कुछ महत्वपूर्ण शक्तियाँ निम्नलिखित हैं:

 

  1. सदन में किसी सदस्य के व्यवहार को नियंत्रित करने की शक्ति: अध्यक्ष के पास यह अधिकार होता है कि वह सदन में किसी सदस्य को अनुशासनहीनता के कारण फटकार सकते हैं, उन्हें बाहर भेज सकते हैं या उनकी सदस्यता अस्थायी रूप से निलंबित कर सकते हैं।

  2. विधेयकों की प्राथमिकता निर्धारित करना: अध्यक्ष यह तय करते हैं कि कौन से विधेयक या प्रस्ताव पहले पेश किए जाएंगे। वह यह भी निर्धारित करते हैं कि कोई मुद्दा बहस के लिए योग्य है या नहीं। अध्यक्ष के पास यह अधिकार होता है कि वह किसी विधेयक को लंबित रख सकते हैं या उसे सीधे चर्चा के लिए पेश कर सकते हैं।

  3. आपराधिक मामलों में निर्णय लेना: अध्यक्ष के पास यह शक्ति होती है कि वह सदन में उठाए गए किसी विवादित मुद्दे पर निर्णय लें। यदि कोई सदस्य किसी अन्य सदस्य पर अनुशासनहीनता या गलत व्यवहार का आरोप लगाता है, तो अध्यक्ष उस पर विचार करते हैं और उचित निर्णय लेते हैं।

  4. सदन की कार्यवाही में भागीदारी: अध्यक्ष का यह भी अधिकार है कि वह यदि कोई विवादित मुद्दा सामने आता है, तो उसे सुलझाने के लिए चर्चा का आयोजन कर सकते हैं। इसके अलावा, वह सदन की कार्यवाही के लिए सदस्यों के बीच समय का बंटवारा भी करते हैं।

 

लोकसभा अध्यक्ष का इतिहास

लोकसभा के अध्यक्ष का पद भारतीय संसद की शुरुआत से ही अस्तित्व में है। जब पहली लोकसभा का गठन हुआ था, तब 1952 में श्री गोविंद बल्लभ पंत पहले लोकसभा अध्यक्ष बने थे। उसके बाद से कई महान व्यक्तित्व इस पद पर कार्य कर चुके हैं। इन अध्यक्षों ने भारतीय संसद को सही दिशा देने के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए।

 

इनमें से कुछ प्रमुख अध्यक्षों का नाम इस प्रकार है:

 

  • गोविंद बल्लभ पंत (1952-1956)
  • एम. ए. अय्यंगार (1956-1962)
  • सुमित्रा महाजन (2014-2019) – सुमित्रा महाजन पहली महिला थीं जो इस पद पर चुनी गईं।

 

इन अध्यक्षों ने न केवल लोकसभा की कार्यवाही में सुधार किया, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की मजबूती के लिए भी कई महत्वपूर्ण कदम उठाए।

 

निष्कर्ष

लोकसभा का अध्यक्ष भारतीय संसद में केंद्रीय भूमिका निभाता है। उसकी शक्तियाँ, कर्तव्य, और जिम्मेदारियाँ भारतीय लोकतंत्र को सुव्यवस्थित और प्रभावी रूप से चलाने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। अध्यक्ष का कार्य केवल सदन की कार्यवाही की अध्यक्षता करना नहीं होता, बल्कि वह लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को सही रूप से चलाने, सदस्य की स्वतंत्रता की रक्षा करने, और संसद की गरिमा बनाए रखने के लिए अपनी पूरी भूमिका निभाता है।

 

लोकसभा अध्यक्ष का पद न केवल विधान प्रक्रिया का एक अभिन्न हिस्सा है, बल्कि यह लोकतांत्रिक प्रणाली के कार्यों के उचित संचालन का भी प्रतीक है।

 


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