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Himani Saini

| पोस्ट किया | शिक्षा


अहिंसा परमो धर्म किसका कथन है?


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university.nakul@gmail.com | पोस्ट किया


"अहिंसा परमो धर्मः" अर्थात् "अहिंसा सर्वोच्च धर्म है" — यह वाक्य भारतीय संस्कृति, दर्शन और जीवनदृष्टि का एक अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्धांत है। यह न केवल एक धार्मिक कथन है, बल्कि भारत की आध्यात्मिक परंपराओं, ऐतिहासिक पृष्ठभूमियों, और नैतिक विचारधाराओं का सार भी है। इस लेख में हम इस प्रसिद्ध वाक्य के उद्गम, विभिन्न संदर्भों में इसकी व्याख्या, इसके प्रमुख प्रवर्तक, और आधुनिक समाज में इसकी प्रासंगिकता पर विस्तृत रूप से चर्चा करेंगे।

 

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इस वाक्य का स्रोत:

"अहिंसा परमो धर्मः" का उल्लेख महाभारत में मिलता है। यह अनुशासन पर्व में कहा गया है, जो कि इस महाकाव्य का तेरहवाँ खंड है। इस पर्व में नीति, धर्म और सामाजिक कर्तव्यों पर विस्तार से चर्चा की गई है।

 

इस वाक्य का पूरा श्लोक इस प्रकार है:

 

अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च।
अर्थात्: अहिंसा सबसे श्रेष्ठ धर्म है, परंतु धर्म की रक्षा के लिए की गई हिंसा भी उसी प्रकार धर्म होती है।

 

यहाँ यह स्पष्ट किया गया है कि यद्यपि अहिंसा सर्वोच्च धर्म है, परंतु जब धर्म, न्याय और सत्य की रक्षा के लिए हिंसा आवश्यक हो जाए, तो वह भी धर्म ही मानी जाती है।

 

कथन के पीछे का दार्शनिक और नैतिक दृष्टिकोण:

अहिंसा का शाब्दिक अर्थ है – किसी भी जीव को तन, मन या वचन से कोई कष्ट न पहुँचाना। भारतीय परंपरा में यह सिद्धांत विशेष रूप से जैन धर्म, बौद्ध धर्म, और हिंदू धर्म की आधारशिला रहा है।

 

1. जैन दृष्टिकोण:

जैन धर्म में अहिंसा को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। भगवान महावीर, जिन्होंने जैन धर्म को सुव्यवस्थित किया, ने अहिंसा को न केवल शारीरिक हिंसा से बचने के रूप में देखा, बल्कि यह भी कहा कि विचारों और शब्दों से भी किसी को आहत करना हिंसा ही है। उनका वाक्य प्रसिद्ध है — "अहिंसा परमो धर्मः।" यद्यपि यह महाभारत का श्लोक है, परंतु इसको जैन परंपरा में अत्यधिक सम्मान मिला है और इसे उनका मूल सिद्धांत माना गया है।

 

2. बौद्ध दृष्टिकोण:

गौतम बुद्ध ने भी अहिंसा को अपने ‘आष्टांगिक मार्ग’ में प्रमुख स्थान दिया। उन्होंने ‘प्राणी मात्र’ के प्रति करुणा, दया और सह-अस्तित्व पर बल दिया। उनके अनुसार, हिंसा केवल बाहरी क्रिया नहीं, बल्कि मानसिक अवस्था भी है, जिससे मुक्ति प्राप्त करना बोध की ओर एक महत्वपूर्ण कदम है।

 

3. हिंदू दृष्टिकोण:

हिंदू धर्म में भी अहिंसा को एक महान गुण माना गया है। उपनिषदों, भगवद्गीता और महाभारत जैसे ग्रंथों में अहिंसा की महत्ता बार-बार उजागर की गई है। महाभारत में विशेषतः यह स्पष्ट किया गया है कि जबकि अहिंसा सर्वोच्च धर्म है, कभी-कभी धर्म की रक्षा के लिए कठिन निर्णय लेने पड़ते हैं।

 

महाभारत में अहिंसा का सन्दर्भ:

महाभारत एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें जीवन के सभी पक्षों की व्यापक चर्चा की गई है। यहाँ केवल आध्यात्मिकता नहीं, बल्कि यथार्थवादी दृष्टिकोण भी अपनाया गया है। अनुशासन पर्व में जब भीष्म पितामह शरशय्या पर पड़े हैं, तब युधिष्ठिर उनसे धर्म, राज्यनीति और जीवन के गूढ़ रहस्यों की शिक्षा प्राप्त करते हैं। इस दौरान वह श्लोक आता है:

 

"अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च।"

 

इसका आशय यह है कि सामान्य अवस्था में अहिंसा को सबसे श्रेष्ठ माना गया है, परंतु यदि अधर्म सिर उठा ले, अत्याचार बढ़ जाए, तो न्याय और धर्म की रक्षा हेतु उठाया गया हिंसात्मक कदम भी धर्म ही कहलाता है।

 

महात्मा गांधी और अहिंसा:

भारत में अहिंसा की विचारधारा को आधुनिक युग में पुनर्जीवित करने का कार्य किया महात्मा गांधी ने। उन्होंने इसे केवल व्यक्तिगत सद्गुण नहीं माना, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक संघर्ष का एक शक्तिशाली साधन बना दिया। गांधीजी ने सत्याग्रह और अहिंसा को अपना जीवन दर्शन बना लिया।

 

उनका मानना था कि —

 

"अहिंसा कायरों का शस्त्र नहीं, बल्कि वीरों का आभूषण है।"

 

गांधीजी के नेतृत्व में भारत ने अंग्रेजों से आज़ादी की लड़ाई अहिंसात्मक मार्ग पर चलकर लड़ी और विश्व के समक्ष एक उदाहरण प्रस्तुत किया कि बिना हथियार के भी शक्तिशाली परिवर्तन संभव है।

 

अहिंसा का आधुनिक सन्दर्भ और प्रासंगिकता:

आज के दौर में जब विश्वभर में हिंसा, आतंकवाद, युद्ध और आक्रोश का वातावरण फैला हुआ है, तब "अहिंसा परमो धर्मः" की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है। यह केवल एक धार्मिक या दार्शनिक विचार नहीं, बल्कि मानवता के भविष्य का मार्गदर्शक सिद्धांत है।

 

1. सामाजिक संदर्भ में:

अहिंसा का पालन केवल युद्ध और हथियारों तक सीमित नहीं है। आज यह विचार हमारे घर, समाज और संबंधों में भी उतना ही जरूरी है। चाहे वह घरेलू हिंसा हो, भाषाई आक्रोश हो या सामाजिक भेदभाव — सभी से लड़ने के लिए अहिंसा ही सबसे शक्तिशाली उपाय है।

 

2. वैश्विक संदर्भ में:

विश्व में कई नेता, जैसे नेल्सन मंडेला, मार्टिन लूथर किंग जूनियर, ने महात्मा गांधी से प्रेरणा लेकर अपने-अपने देशों में अहिंसात्मक आंदोलनों के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन लाए।

 

3. पर्यावरण और पशु अधिकारों के संदर्भ में:

आज जब मानव द्वारा प्रकृति का अत्यधिक दोहन हो रहा है, तो अहिंसा का सिद्धांत प्रकृति और जीव-जंतुओं के प्रति करुणा और सह-अस्तित्व की भावना को पुनः जागृत करता है। शाकाहार, पर्यावरण संरक्षण, और प्राकृतिक संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग — ये सभी आधुनिक अर्थों में अहिंसा के ही स्वरूप हैं।

 

निष्कर्ष:

"अहिंसा परमो धर्मः" केवल एक धार्मिक या पौराणिक कथन नहीं है, बल्कि यह एक समग्र जीवन दर्शन है, जो आत्मसंयम, करुणा, सह-अस्तित्व और नैतिक दृढ़ता का प्रतीक है। यह कथन न केवल भारत की सांस्कृतिक विरासत में गहराई से रचा-बसा है, बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए एक सार्वकालिक मार्गदर्शन भी प्रस्तुत करता है।

 

महाभारत, महावीर, बुद्ध और गांधी — सभी ने अपने-अपने समय में इस सिद्धांत को जीवित रखा और इसे जन-जन तक पहुँचाया। आज आवश्यकता है कि हम इस महान विचार को केवल ग्रंथों में न पढ़ें, बल्कि अपने जीवन में आत्मसात करें।

 


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