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Suman Singh

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सरकार के द्वारा गुटखा बंद करने के बाद भी क्यों इसकी डिमांड में कमी नहीं हुई ?


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सरकार द्वारा गुटखा बंद करने के बाद भी इसकी डिमांड में कोई कमी नहीं हुयी,क्योंकि इसकी डिमांड दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है,लोगों की पहली पसंद गुटखा है।गुटखा के साथ-साथ अन्य चीजों जैसे, पान मसाला,तंबाकू से बने प्रोडक्ट्स की मांग में कमी नहीं हुई है।

सरकार गुटखा पर प्रतिबंध लगाना भी चाहे तो नशा करने वाले व्यक्तियों की आदत पर प्रतिबंध कैसे लगा पाएगी,यदि गुटखे पर प्रतिबंध लगा भी दिया जाता है तो इसकी कालाबाजारी और ज्यादा बढ़ती जाती है जिससे गुटखा बनाने वाली कंपनियों क़ो लाभ कम होने की बजाय और अधिक लाभ होने लगेगा। इसका मुख्य कारण है कि भारत की 25 %निरक्षर और 40 %केवल साक्षर जनता है जो गुटखा बनाने वाली कंपनियों ने आकषर्क विज्ञापनों द्वारा जनता क़ो अपना गुलाम बना रखी है।

दोस्तों के साथ या फिर बड़ों की देखा सीखी नये-नये युवाओं को गुटखा खाने की लत लग जाती है कि वह गुटखा खाने के लिए एडिक्ट हो जाते हैं। वही गुटखा,पान मसाला, जर्दा, खैनी आदि बनाने वाली कंपनियां यह दावा करती हैं कि वह बिना मिलावट के पान मसाला, गुटखा बनाती है,इसमें रसायनों के अलावा लोंग,इलायची,केसर, फ्लेवर जैसी सामग्री मिलाकर गुटखे क़ो और अधिक स्वादिष्ट बना देती है कि यदि एक बार कोई युवक गुटखा खायेगा तो उसका मन गुटखा खाने क़ो बार -बार करने लगेगा और धीरे -धीरे गुटखा खाने की लत लग जाएगी।

वर्ष 2003 में सीओटीपीए एक्ट के कारण गुटखा के विज्ञापन पर प्रतिबंध लगाया गया, लेकिन गुटखा निर्माता कंपनियों ने अधिनियम के छिद्रों का लाभ उठाते हुए गुटखा के विज्ञापन को इलायची ब्रांड के नाम के साथ शुरू कर दिया, जबकि पूर्ण रूप से स्पष्ट है कि पान मसाला और तंबाकू ,गुटखे का ही प्रचार करती हैं। सभी कंपनियां अपने विज्ञापन का मनोवैज्ञानिक तरीके से उपयोग करते हुए गुटखा का उपयोग कम नहीं होने देती है, वर्ष 2011 में फेडरल फूड सेफ्टी और रेग्युलेशन एक्ट के अंतर्गत व्यवस्था की गयी कि यदि कोई कंपनी अपने उत्पादों में तंबाकू मिलावट करके बेचेगी तो उस कंपनी क़ो बैन कर दिया जाएगा। तंबाकू को बेचने पर प्रतिबंध न होने के कारण कंपनियों ने पान मसाला का नाम देकर तंबाकू के पाउच बनाने शुरू कर दिए। वर्ष 2011 के अधिनियम में यह व्यवस्था की गयी कि सरकार एक निश्चित समय के लिए इन उत्पादों पर प्रतिबंध लगा दीं थी, इसके अंतर्गत वर्ष 2013 मे 24 राज्यों और 3 केंद्र शासित प्रदेशों में गुटखे पर प्रतिबंध लगा दिया गया, लेकिन फिर भी गुटखे की डिमांड बढ़ती ही जा रही है।

गुटखा खाने वाला औसतन 3 से 4 गुटखा प्रति दिन खा लेता है।,यदि इसे वर्ष के आधार पर जोड़ा जाए तो साल में एक व्यक्ति करीब 6000 से 6500 रुपये का गुटखा खा जाता है, गुटखा खाने वाले व्यक्तियों क़ो बहुत सी बीमारियां जैसे कि मुँह का कैंसर होने से प्रतिवर्ष लाखो, करोड़ो लोगो की मौत गुटखा खाने से होती है,यदि सरकार इसे रोकने में असमर्थ है तो गुटखा जैसी दिखने वाली वस्तुओं के विज्ञापनों तथा इसको प्रोत्साहित करने वाले विज्ञापनों पर रोक लगनी चाहिए। रोल मॉडल्स को तंबाकू तथा पान मसाला, गुटका के दुष्प्रभावों के प्रति जागरूकता के लिए सामाजिक दायित्व का निर्वहन करना चाहिए तभी तंबाकू, पान मसाला, गुटखा के दुष्प्रभावों को कम किया जा सकेगा।

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जानना चाहते हैं कि सरकार के द्वारा गुटखा बंद करने के बाद भी क्यों इसकी डिमांड में कमी नहीं हुई तो चलिए हम आपको इससे जुड़ी जानकारी देते हैं कि आखिर ऐसा क्यू हुआ है। दरअसल गुटका आज के समय में एक शौक से बन गया है जिसे लोग एक दूसरे को देख कर खाने के लिए उतावली हो रहे हैं क्योंकि गुटखा में ऐसी बहुत सी जहरीली चीजें पाई जाती है जो लोगों को अपनी और आकर्षित करती है गुटखा खाना सेहत के लिए इतना खतरनाक है लेकिन फिर भी इसे लोग दिन में कम से कम तीन से चार पैकेट खा जाते हैं। इससे ना केवल आपके शरीर को नुकसान होता है बल्कि इसकी वजह से आपके शरीर में कई सारी बीमारियां भी हो सकती है।

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