भगवान् शिव और हनुमान भारतीय सनातन हिंदू परंपरा के दो परम पूज्य देव हैं। इनमें शिव अर्थात् भोलेनाथ जिन्हें भूतनाथ भी कहा गया है, अन्य सबके साथ ही भूत-पिशाच या राक्षसों के लिये भी पूज्य हैं। क्योंकि वे आदिदेव सबको बिना किसी भेदभाव के अपना ही मानते हैं। जबकि हनुमान जी को दानवों का संहारक माना जाता है, और भूत-पिशाच से पीड़ित लोग ऐसी व्याधियों से मुक्ति पाने के लिये उनकी विशेष उपासना किया करते हैं।
हालांकि यहां एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि हनुमान जी को शिव जी का ही एक रूप माना गया है। इस सबसे सामान्यतः एक भ्रांति पैदा हो जाती है। जिसके निराकरण हेतु हम इनके बारे में एक-एक कर बात करें तो काफी कुछ साफ हो जायेगा।
इस क्रम में सबसे पहले बात करते हैं भगवान् शिव की, जो बुरी शक्तियों के संरक्षक माने गये हैं।
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भगवान् शंकर या शिव -- भगवान् शिव को देवों और मनुष्यों के अलावा दानव, असुर, राक्षस, भूत-पिशाच,यक्ष-गंधर्व, आदि सभी समान रूप से पूजते हैं। वे रावण के भी आराध्य हैं और राम के भी। उन्होंने भस्मासुर और राक्षसों के गुरू कहे जाने वाले शुक्राचार्य जैसों को भी आशीर्वाद दे दिया। शीघ्र ही सब पर प्रसन्न हो जाने के स्वभाव के कारण उन्हें आशुतोष और भोलेनाथ भी कहा जाता है। देखें तो शैव धर्म-संप्रदाय भारत की वनवासी और आदिवासी जातियों में भी खासा प्रचलित है। शिवलिंग के कई रूपों में एक असुरलिंग भी है। रावण द्वारा जिस शिवलिंग की पूजा की जाती थी वह इसी तरह का एक शिवलिंग था। देवताओं से द्वेष भाव रखने वाले दानवगण शंकर अर्थात् शिव के ही भक्त रहे हैं। यहां गौरतलब है कि असुरों, राक्षसों व दानवों में कुछ पारिभाषिक भेद होता है, और उनके शिवलिंग भी अलग-अलग होते हैं।
पुराणों के अनुसार शिव जी ने राक्षसों के अस्तित्व को संरक्षण न दिया होता तो राक्षसों का जाने क्या हाल होता। यह कथा कुछ इस प्रकार है--कि कश्यप ऋषि की पत्नी सुरसा से यातुधान अर्थात् राक्षस उत्पन्न हुये। जिनका प्रतिनिधित्व -- हेति और प्रहेति नामक दो लोगों को सौंपा गया। जो आपस में भाई थे। ये अत्यंत बलशाली थे। प्रहेति जहां आध्यात्मिक व्यक्तित्व का था; वहीं हेति ने राज-काज में रुचि दिखाई। हेति ने अपने साम्राज्य-विस्तार की इच्छा से कालपुत्री 'भया' से शादी रचाई, जिससे उसे विद्दुतकेश नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ। विद्दुतकेश का विवाह 'सालकटंकटा' से हुआ; जिसे एक व्याभिचारिणी और कुटिला औरत माना जाता है। इसी कारण जब उसे पुत्र हुआ तो उसे लावारिस छोड़ दिया गया। तब इस परित्यक्त पुत्र को संरक्षण दिया गया भगवान् शिव द्वारा। यहीं से राक्षस जाति को भगवान् शिव जी का सान्निध्य प्राप्त होना शुरू होता है।
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शिव-पार्वती ने इस राक्षस-पुत्र का नाम सुकेश रक्खा। जो भगवान् शिव जी के आशीर्वाद से कहीं भी निर्भीक विचरण कर सकता था। इसके लिये उसे शिव द्वारा एक विमान भी उपलब्ध कराया गया। सुकेश का विवाह एक गंधर्व-कन्या देववती से होता है, कालांतर में जिससे तीन पुत्र -- माल्यवान, सुमाली और माली हुये। जिन्होंने राक्षस-जाति को और विस्तृत व समृद्ध बनाया। इन तीनों भाइयों ने मिलकर विश्वकर्मा द्वारा त्रिकुट पर्वत पर श्रीलंका का निर्माण करवाया, और उसे अपना शासन-केंद्र बनाया। इसके बाद राक्षस-जाति दिनोंदिन विकास करती ही गई।
ज़ाहिर है, यदि मृत्यु के देवता भगवान् शिव का वरदहस्त न प्राप्त होता, तो राक्षसों के अस्तित्व का कहीं पता न चलता। और यही कारण है कि राक्षस, भूत-पिशाच, दानवों के लिये शिवजी इतने सम्मानित और पूज्य हुये।
अब बात करते हैं हनुमान जी की, जो दुष्ट शक्तियों के संहारक माने जाते हैं।
भगवान् हनुमान जी -- हनुमान जी को शिव भगवान् के 'रुद्र' रूप का ग्यारहवां अवतार माना गया है। इसलिये साफ है कि शिवजी की तरह वे भी राक्षसों, भूत-पिशाचों के स्वामी हुये। यह एक प्रमुख कारण है कि हनुमान का नाम लेते ही इन बुरी शक्तियों का भय मन से समाप्त हो जाता है।
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दूसरा जो कारण है वह ये, कि हनुमान जी को देवताओं से यह वरदान प्राप्त था कि यम, शनि, राहु-केतु आदि अनिष्टकारी शक्तियां उन्हें कभी छू भी नहीं सकतीं। साथ ही ये अवांछित शक्तियां हनुमान-भक्तों का भी कोई अहित नहीं कर सकतीं। यही कारण है कि भूत-पिशाच आदि शक्तियां जब किसी को तंग करती हैं, तो वह भगवान् हनुमान की शरण लेता है। जिससे उसके सभी कष्ट कट जाते हैं। वस्तुतः हनुमान जी अपने उपासक की सकरात्मक ऊर्जा में अभिवृद्धि करते हैं। हनुमान-चालीसा का पाठ, या अन्य किसी भी तरह उनकी उपासना करने से बुरी शक्तियां व्यक्ति के पास नहीं फटकतीं।
उपरोक्त विवरण से यह बात कारण सहित स्पष्ट है कि भगवान् शिव जी जहां राक्षसों, दानवों, भूत-पिशाच आदि बुरी शक्तियों के संरक्षक होने के नाते उनके पूज्य हैं; वहीं उन्हीं के एक अवतार हनुमान जी इनके संहारक। इसीलिये इन भूत-पिशाच आदि बुरी शक्तियों से निपटने को हनुमान जी की पूजा-उपासना आदि का नियम है।