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रमजान, इस्लामी कैलेंडर का नौवां महीना, मुस्लिम समुदाय के लिए अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण होता है। इस महीने में मुसलमान 30 दिनों तक रोजा रखते हैं, जो न केवल धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि आत्म-नियंत्रण और आध्यात्मिक विकास का भी एक साधन है। यहाँ हम यह जानेंगे कि रमजान 30 दिन क्यों चलता है और इसके पीछे क्या धार्मिक और सांस्कृतिक कारण हैं।
रमजान का महीना कुरान के अवतरण से जुड़ा हुआ है। माना जाता है कि इस महीने की 23वीं रात, जिसे शब-ए-क़द्र कहा जाता है, में कुरान का नाजिल होना हुआ था। इसीलिए, रमजान में कुरान का पाठ और तिलावत (पढ़ाई) विशेष रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती है।
रोजा रखने का मुख्य उद्देश्य आत्म-नियंत्रण, संयम और अल्लाह के प्रति समर्पण को बढ़ावा देना है। इस दौरान मुसलमान सूरज निकलने से पहले सहरी (सुबह का भोजन) करते हैं और सूर्यास्त के बाद इफ्तार (रोजा खोलना) करते हैं। रोजा केवल भोजन और पानी से दूर रहना नहीं है, बल्कि यह आंखों, कानों और अन्य इंद्रियों को भी पवित्र रखने का प्रयास है।
रमजान के 30 दिन तीन हिस्सों में बाँटे जाते हैं, जिन्हें अशरे कहा जाता है:
हर अशरे में विशेष प्रार्थनाएँ और इबादतें की जाती हैं, जिससे मुसलमानों को अल्लाह की कृपा प्राप्त होती है।
इस्लाम के प्रारंभिक काल में, जब नबी मोहम्मद पर पहली बार रहमत का आदेश नाजिल हुआ था, तब से ही रमजान के 30 दिनों के रोजे रखने की परंपरा शुरू हुई थी। यह आदेश जंगे बदर से पहले आया था, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह एक ऐतिहासिक अनुष्ठान है।
रोजा रखने से शारीरिक स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। कई अध्ययन बताते हैं कि उपवास करने से शरीर डिटॉक्सिफाई होता है, वजन कम होता है, और मानसिक स्पष्टता बढ़ती है।
इस प्रकार, रमजान का 30 दिनों तक चलने वाला उपवास न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है बल्कि यह आत्म-नियंत्रण, सामूहिकता और सामाजिक सहानुभूति का प्रतीक भी है। यह समय मुसलमानों के लिए अपने विश्वास को मजबूत करने तथा समाज के कमजोर वर्गों की मदद करने का अवसर प्रदान करता है।
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