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कैलाश पर्वत, जिसे तिब्बत में स्थित माउंट कैलाश (Mount Kailash) के नाम से भी जाना जाता है, हिमालय पर्वतमाला में 6,638 मीटर (21,778 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है। यह पर्वत हिंदू, बौद्ध, जैन और बोन धर्म के अनुयायियों के लिए एक पवित्र स्थल है। इसे भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है, और इसे "कैलाश मानसरोवर" के नाम से भी जाना जाता है, जो पास के पवित्र मानसरोवर झील के साथ जुड़ा हुआ है। लेकिन आज तक कोई भी इस पर्वत की चोटी पर नहीं चढ़ पाया है। इसके पीछे कई धार्मिक, भौगोलिक, और प्रशासनिक कारण हैं, जिन्हें हम विस्तार से देखते हैं।
कैलाश पर्वत को कई धर्मों में अत्यंत पवित्र माना जाता है:
इन धर्मों के अनुसार, कैलाश पर्वत पर चढ़ना अपवित्र माना जाता है। यह एक तीर्थ स्थल है, जहां लोग परिक्रमा (कौरा) करते हैं, न कि चढ़ाई। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस पर्वत पर चढ़ने से पवित्रता भंग होती है और यह देवताओं का अपमान माना जाता है। इस वजह से, स्थानीय समुदाय और तीर्थयात्री चढ़ाई का समर्थन नहीं करते।
कैलाश पर्वत की भौगोलिक संरचना इसे चढ़ने के लिए बेहद कठिन बनाती है:
हालांकि, ये चुनौतियां उन पर्वतारोहियों को रोकने के लिए काफी नहीं हैं, जो एवरेस्ट (8,848 मीटर) जैसी ऊंची चोटियों पर चढ़ चुके हैं। लेकिन अन्य कारणों ने इसे और जटिल बना दिया है।
कैलाश पर्वत तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में स्थित है, जो चीन के नियंत्रण में है। इस क्षेत्र में चढ़ाई के लिए सख्त नियम हैं:
कैलाश पर्वत पर चढ़ाई का विचार स्थानीय समुदायों और धार्मिक समूहों के लिए अस्वीकार्य है। तिब्बती लोग और अन्य धार्मिक समुदाय इसे एक पवित्र स्थल मानते हैं, और चढ़ाई को अपमानजनक मानते हैं। 2001 में जब स्पेनिश टीम को अनुमति दी गई थी, तब दलाई लामा और अन्य धार्मिक नेताओं ने इसका कड़ा विरोध किया था। इस तरह के सामाजिक दबाव के कारण भी कोई पर्वतारोही इसकी चढ़ाई का प्रयास करने से हिचकता है।
कैलाश पर्वत के आसपास कई रहस्यमयी कहानियां और मान्यताएं भी जुड़ी हैं, जो लोगों को चढ़ाई से रोकती हैं:
कैलाश पर्वत पर चढ़ने के बजाय, तीर्थयात्री इसकी परिक्रमा करते हैं, जिसे "कौरा" कहा जाता है। यह परिक्रमा 52 किलोमीटर लंबी है और 15,000 से 18,000 फीट की ऊंचाई पर की जाती है। हिंदू और बौद्ध मान्यताओं के अनुसार, एक बार की परिक्रमा से पिछले पाप धुल जाते हैं, और 108 बार परिक्रमा करने से निर्वाण की प्राप्ति होती है। इस परंपरा के कारण चढ़ाई की जरूरत ही महसूस नहीं की जाती।
कैलाश पर्वत पर आज तक कोई नहीं चढ़ पाया, क्योंकि इसके पीछे धार्मिक पवित्रता, सांस्कृतिक मान्यताएं, भौगोलिक कठिनाइयां, और कानूनी प्रतिबंध जैसे कई कारण हैं। यह पर्वत केवल एक भौतिक संरचना नहीं, बल्कि आस्था और श्रद्धा का प्रतीक है। लोग इसे सम्मान देने के लिए इसकी परिक्रमा करते हैं, न कि इसकी चोटी पर चढ़ने की कोशिश। इसकी रहस्यमयी और पवित्र प्रकृति इसे दुनिया के सबसे अनछुए और सम्मानित स्थानों में से एक बनाती है।
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