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चंपई सोरेन, जिन्हें 'झारखंड टाइगर' या 'कोल्हान टाइगर' के नाम से जाना जाता है, झारखंड की राजनीति में एक कद्दावर और सम्मानित व्यक्तित्व हैं। उनकी यह उपाधि केवल एक नाम नहीं, बल्कि उनके साहस, संघर्ष, और नेतृत्व का प्रतीक है। चंपई सोरेन का जीवन एक साधारण किसान परिवार से शुरू होकर झारखंड के मुख्यमंत्री पद तक का सफर रहा है, जिसमें उन्होंने मजदूर आंदोलनों, झारखंड राज्य के निर्माण, और आदिवासी हितों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि चंपई सोरेन को 'टाइगर' क्यों कहा जाता है और इस उपाधि के पीछे की कहानी क्या है।
चंपई सोरेन का जन्म 1 नवंबर 1956 को झारखंड के सरायकेला-खरसावां जिले के जिलिंगगोड़ा गांव में एक आदिवासी परिवार में हुआ था। उनके पिता, सिमल सोरेन, एक किसान थे, और परिवार की आजीविका मुख्य रूप से खेती पर निर्भर थी। चंपई ने अपने पिता के साथ खेतों में काम किया और बचपन से ही मेहनत और संघर्ष का महत्व सीखा। उन्होंने सरकारी स्कूल से दसवीं कक्षा तक की पढ़ाई पूरी की, जो उस समय उनके गांव के लिए एक उल्लेखनीय उपलब्धि थी। कम उम्र में ही उनकी शादी मानको सोरेन से हो गई, और उनके चार बेटे और तीन बेटियां हैं।
चंपई का जीवन सादगी और मेहनत से भरा रहा। उनके गांव में आज भी उनका घर साधारण है, जो उनकी जड़ों से जुड़ाव को दर्शाता है। यह सादगी और जनता के बीच उनकी गहरी पैठ ही उन्हें झारखंड की राजनीति में एक लोकप्रिय नेता बनाती है। लेकिन उनकी 'टाइगर' उपाधि का आधार उनकी सादगी नहीं, बल्कि उनके साहस और नेतृत्व की वह शक्ति है, जिसने उन्हें कोल्हान क्षेत्र और पूरे झारखंड में एक प्रेरणा बनाया।
चंपई सोरेन को 'टाइगर' की उपाधि 1990 के दशक में मिली, जब उन्होंने मजदूरों के हितों के लिए एक ऐतिहासिक आंदोलन का नेतृत्व किया। 1990 में, टाटा स्टील के अस्थायी ठेका मजदूरों की स्थिति बेहद खराब थी। इन मजदूरों को न तो स्थायी नौकरी मिलती थी और न ही उचित वेतन या सुविधाएं। चंपई सोरेन ने इन मजदूरों के अधिकारों के लिए आवाज उठाई और टाटा स्टील के गेट पर अनिश्चितकालीन धरना-प्रदर्शन का नेतृत्व किया। यह आंदोलन इतना प्रभावशाली था कि अंततः लगभग 1700 ठेका मजदूरों को टाटा स्टील में स्थायी नौकरी मिली।
इस आंदोलन ने चंपई सोरेन को रातोंरात मजदूरों का नायक बना दिया। उनकी दृढ़ता, साहस, और नेतृत्व ने लोगों में यह धारणा बनाई कि चंपई जहां भी आंदोलन का नेतृत्व करेंगे, वहां जीत निश्चित है। उनकी इसी निडरता और जुझारू स्वभाव के कारण उन्हें 'कोल्हान टाइगर' कहा जाने लगा। कोल्हान क्षेत्र, जो सरायकेला-खरसावां और आसपास के इलाकों को शामिल करता है, में उनकी यह छवि और मजबूत हुई। यह उपाधि न केवल उनके मजदूर आंदोलन की सफलता को दर्शाती है, बल्कि उनकी उस शक्ति को भी दर्शाती है, जो बड़े औद्योगिक घरानों के खिलाफ खड़े होने में सक्षम थी।
चंपई सोरेन की 'टाइगर' छवि को और बल तब मिला जब उन्होंने 1990 के दशक में झारखंड राज्य के निर्माण के लिए चले आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। उस समय बिहार से अलग झारखंड राज्य की मांग जोर पकड़ रही थी, और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक शिबू सोरेन इस आंदोलन के प्रमुख नेता थे। चंपई सोरेन ने शिबू सोरेन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर इस आंदोलन में हिस्सा लिया। उन्होंने कोल्हान क्षेत्र में आंदोलन को संगठित करने और आदिवासी समुदाय को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
झारखंड आंदोलन के दौरान चंपई की संगठनात्मक क्षमता और जनता को प्रेरित करने की शक्ति ने उन्हें एक मजबूत नेता के रूप में स्थापित किया। कोल्हान क्षेत्र में निर्मल महतो, शैलेंद्र महतो, और बागुन सुम्बरुई जैसे अन्य आंदोलनकारी नेताओं के बीच चंपई ने अपनी अलग पहचान बनाई। उनकी निडरता और समर्पण ने उन्हें 'झारखंड टाइगर' के रूप में पूरे राज्य में प्रसिद्धि दिलाई। यह वह दौर था जब चंपई सोरेन ने न केवल मजदूरों के लिए, बल्कि आदिवासी और मूलवासी समुदायों के अधिकारों के लिए भी अपनी आवाज बुलंद की।
चंपई सोरेन का राजनीतिक सफर 1991 में शुरू हुआ, जब उन्होंने सरायकेला विधानसभा सीट से उपचुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीत हासिल की। इस जीत ने उन्हें राजनीति में स्थापित किया, और उन्होंने झामुमो में शामिल होकर अपने करियर को आगे बढ़ाया। 1995 में उन्होंने झामुमो के टिकट पर चुनाव जीता, लेकिन 2000 में बीजेपी के अनंतराम टुडू से हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद, 2005, 2009, 2014, और 2019 में उन्होंने लगातार जीत हासिल की, जिससे उनकी राजनीतिक मजबूती और लोकप्रियता का अंदाजा लगाया जा सकता है।
चंपई सोरेन ने विभिन्न सरकारों में महत्वपूर्ण मंत्रालय संभाले। 2009-2014 के दौरान वे विज्ञान और प्रौद्योगिकी, श्रम, आवास, खाद्य आपूर्ति, और परिवहन जैसे विभागों के मंत्री रहे। 2019 में हेमंत सोरेन की सरकार में उन्हें परिवहन, अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, और पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्रालय सौंपा गया। उनकी प्रशासनिक क्षमता और जनता के प्रति समर्पण ने उन्हें झामुमो में शिबू सोरेन के बाद सबसे सम्मानित नेताओं में से एक बनाया।
2024 में, जब हेमंत सोरेन को एक घोटाले के मामले में गिरफ्तार किया गया, चंपई सोरेन को झामुमो विधायक दल का नेता चुना गया, और वे झारखंड के मुख्यमंत्री बने। इस दौरान उनकी 'टाइगर' छवि ने उन्हें एक मजबूत और विश्वसनीय नेता के रूप में और मजबूती प्रदान की। उन्होंने 5 फरवरी 2024 को विधानसभा में बहुमत सिद्ध किया, जिससे उनकी नेतृत्व क्षमता का एक और उदाहरण सामने आया।
चंपई सोरेन का शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन के साथ गहरा और विश्वासपूर्ण रिश्ता रहा है। शिबू सोरेन, जिन्हें 'दिशोम गुरु' के नाम से जाना जाता है, चंपई के राजनीतिक गुरु और प्रेरणा स्रोत रहे हैं। चंपई ने शिबू सोरेन को अपना आदर्श माना और उनके साथ झारखंड आंदोलन से लेकर राजनीति तक में सहयोग किया। झामुमो में उनकी स्थिति इतनी महत्वपूर्ण थी कि हेमंत सोरेन उन्हें सार्वजनिक मंचों पर पैर छूकर सम्मान देते थे।
यह रिश्ता केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि भावनात्मक और विश्वास पर आधारित था। हेमंत सोरेन ने सरकार और पार्टी के महत्वपूर्ण फैसलों में चंपई की सलाह को प्राथमिकता दी। हालांकि, 2024 में चंपई सोरेन ने झामुमो छोड़कर बीजेपी में शामिल होने का फैसला किया, जिसने उनके और सोरेन परिवार के बीच दरार की खबरों को जन्म दिया। फिर भी, उनकी 'टाइगर' छवि और जनता में लोकप्रियता पर इसका कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा।
चंपई सोरेन की 'टाइगर' उपाधि उनकी सादगी और जनता के बीच गहरे जुड़ाव के साथ और भी चमकती है। छह बार विधायक और मुख्यमंत्री रहने के बावजूद, वे अपने गांव जिलिंगगोड़ा में एक साधारण घर में रहते हैं। उनकी जीवनशैली—ढीली शर्ट-पैंट, चप्पल, और सफेद बाल—उनके सरल स्वभाव को दर्शाती है। वे अपने क्षेत्र में 'जनता दरबार' आयोजित करते थे, जहां वे आम लोगों की समस्याएं सुनते और समाधान का प्रयास करते थे।
कोल्हान क्षेत्र में उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि झामुमो, कांग्रेस, और आरजेडी जैसे सहयोगी दलों ने भी उनके मुख्यमंत्री बनने पर कोई आपत्ति नहीं जताई। उनकी सादगी, साहस, और जनता के प्रति समर्पण ने उन्हें एक ऐसे नेता के रूप में स्थापित किया, जो 'टाइगर' की तरह न केवल निडर है, बल्कि अपने लोगों का रक्षक भी है।
चंपई सोरेन को 'झारखंड टाइगर' या 'कोल्हान टाइगर' की उपाधि उनके साहस, संघर्ष, और नेतृत्व के कारण मिली। 1990 के दशक में टाटा स्टील के मजदूर आंदोलन से लेकर झारखंड राज्य के निर्माण तक, उन्होंने अपनी निडरता और दृढ़ता से एक अलग पहचान बनाई। उनकी राजनीतिक यात्रा, शिबू और हेमंत सोरेन के साथ गहरा रिश्ता, और जनता के बीच उनकी सादगी ने इस उपाधि को और मजबूत किया। भले ही उन्होंने 2024 में बीजेपी में शामिल होने का फैसला किया, लेकिन उनकी 'टाइगर' छवि झारखंड की जनता के दिलों में हमेशा जीवित रहेगी। चंपई सोरेन का जीवन एक प्रेरणा है, जो दर्शाता है कि साहस और समर्पण के साथ कोई भी साधारण व्यक्ति असाधारण उपलब्धियां हासिल कर सकता है।
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