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shweta rajput

blogger | पोस्ट किया | शिक्षा


क्यों की जाती है भगवान शिव का अर्धपरिक्रमा ?


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शिवजी की आधी परिक्रमा करने का विधान है। वह इसलिए की शिव के सोमसूत्र को लांघा नहीं जाता है। जब व्यक्ति आधी परिक्रमा करता है तो उसे चंद्राकार परिक्रमा कहते हैं। शिवलिंग को ज्योति माना गया है और उसके आसपास के क्षेत्र को चंद्र। आपने आसमान में अर्ध चंद्र के ऊपर एक शुक्र तारा देखा होगा। यह शिवलिंग उसका ही प्रतीक नहीं है बल्कि संपूर्ण ब्रह्मांड ज्योतिर्लिंग के ही समान है।

''अर्द्ध सोमसूत्रांतमित्यर्थ: शिव प्रदक्षिणीकुर्वन सोमसूत्र न लंघयेत ।।
इति वाचनान्तरात।''

सोमसूत्र :

शिवलिंग की निर्मली को सोमसूत्र की कहा जाता है। शास्त्र का आदेश है कि शंकर भगवान की प्रदक्षिणा में सोमसूत्र का उल्लंघन नहीं करना चाहिए, अन्यथा दोष लगता है। सोमसूत्र की व्याख्या करते हुए बताया गया है कि भगवान को चढ़ाया गया जल जिस ओर से गिरता है, वहीं सोमसूत्र का स्थान होता है।

क्यों नहीं लांघते सोमसूत्र :

सोमसूत्र में शक्ति-स्रोत होता है अत: उसे लांघते समय पैर फैलाते हैं और वीर्य ‍निर्मित और 5 अन्तस्थ वायु के प्रवाह पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इससे देवदत्त और धनंजय वायु के प्रवाह में रुकावट पैदा हो जाती है। जिससे शरीर और मन पर बुरा असर पड़ता है। अत: शिव की अर्ध चंद्राकार प्रदशिक्षा ही करने का शास्त्र का आदेश है।

तब लांघ सकते हैं :

शास्त्रों में अन्य स्थानों पर मिलता है कि तृण, काष्ठ, पत्ता, पत्थर, ईंट आदि से ढके हुए सोम सूत्र का उल्लंघन करने से दोष नहीं लगता है,

लेकिन
‘शिवस्यार्ध प्रदक्षिणा’ का मतलब शिव की आधी ही प्रदक्षिणा करनी चाहिए।

किस ओर से करनी चाहिये परिक्रमा

भगवान शिवलिंग की परिक्रमा हमेशा बांई ओर से शुरू कर जलाधारी के आगे निकले हुए भाग यानी जल स्रोत तक जाकर फिर विपरीत दिशा में लौटकर दूसरे सिरे तक आकर परिक्रमा पूरी करें।

!! ॐ नमः शिवाय !!

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शिवलिंग शिव का प्रतीक है। सारा ब्रह्मांड शिव से आता है, उसी में रहता है और वापस उसी में चला जाता है। शिव का न कोई तारा है और न अंत, न रूप, न जन्म और न मृत्यु। उनकी उपस्थिति संपूर्ण ब्रह्मांड है।

यह ब्रह्मांड शिव है लेकिन हम इस ब्रह्मांड को नहीं जान सकते हैं, हम इसे नहीं देख सकते हैं क्योंकि हम सीमित अंतर्दृष्टि के साथ एक छोटा सा नमूना हैं। इस प्रकार, शिव लिंग के रूप में हम ब्रह्मांड/भगवान को सम्मान, प्रेम और कृतज्ञता देते हैं।

शिव लिंग की अर्ध परिक्रमा यह दर्शाती है कि आप कितने भी बुद्धिमान क्यों न हों, आप कितना भी जानते हों …… आप भगवान और उनकी रचनाओं को पूरी तरह से नहीं जान सकते। आप जो जानते हैं और देखते हैं वह सीमित है जबकि एक और हिस्सा मौजूद है जो समझ से परे है जो असीम है।

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