पालघर में हुई हमला को लेकर कोई भी चुप नहीं हुआ है ना ही रवीश कुमार और ना ही उद्धव ठाकरे...बस लोगों ने इन दोनों को घेरने के लिए व्हाट्सएप पर एक जंग छेड़ दी है जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. इस मामले को सांप्रदायिक रंग ना दिया जाए इसको लेकर महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने ये साफ़ कर दिया है कि घटना में जो लोग मारे गए और जिन्होंने हमला किया, वह एक ही धर्म के हैं.
अगर उद्धव ठाकरे मोहन होते तो मुझे नहीं लगता कि अभी तक 110 लोग गिरफ्तार किए गए होते हैं तत्काल एक कार्यवाही हुई है और सभी लोगों को गिरफ्तार किया गया है उद्धव ठाकरे ने साफ तौर पर कहा है कि पुलिस ने इस मामले में कार्रवाई करते हुए ग्रामीणों और 110 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है.जिनमें से 101 को 30 अप्रैल तक पुलिस हिरासत में भेज दिया गया है और नौ नाबालिगों को एक किशोर आश्रय गृह में भेज दिया गया है. जबकि उद्धव ठाकरे ने मामले को तुरंत ही जांच के लिए भेज दिया. इस मामले को लेकर अपनी नजर बनाए रखा और सख्ती से निपटने का आदेश दिया ऐसा कभी नहीं लगा कि उद्धव ठाकरे इस मामले को लेकर मौन हैं हालांकि रवीश कुमार पर कुछ आरोप लग रहे थे कि उन्होंने इस मामले को लेकर अभी तक किसी तरह का कोई बयान नहीं दिया है.
पालघर मामले में रवीश कुमार का कहना है कि मुझे शाम तक इस घटना के बारे में कुछ पता नहीं था और जब पता चला कि ऐसा हुआ है तो मैंने तुरंत नींदा की.. रवीश कुमार ने इस बात को अपने फेसबुक पर पोस्ट किया है जानिए खुद रवीश कुमार ने अपने ऊपर लग रहे इलजामो को लेकर क्या कहा है:-
यह घटना शनिवार की है. उस दिन मुझसे किसी ने कुछ नहीं कहा. रविवार की शाम अचानक सांप्रदायिकों का समूह मुझे गाली देने लगा. तब तक मुझे इस घटना के बारे में जानकारी भी नहीं थी.
अनाप-शनाप गालियां देने लगा कि मैं चुप क्यों हं. अखलाक का ज़िक्र करने लगा. पहले ये खुद नहीं बताते कि अखलाक की हत्या की निंदा की थी या नहीं, लेकिन इनके मन में गुस्सा है कि मैंने निंदा कर कोई अपराध कर दिया. मैंने तो सुबोध कुमार सिंह की हत्या की भी निंदा की थी. ये आईटी सेल वाले इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह के इंसाफ के लिए अभियान क्यों नहीं चलाते हैं...?
मुझे लगा कि आईटी सेल का सांप्रदायिक गिरोह कोटा में फंसे बिहार के छात्रों के लिए आवाज़ उठा रहा होगा. बिहार BJP के एक विधायक ने अपने बेटे को वहां से मंगा लिया, जबकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बाकी छात्रों को नहीं आने दे रहे हैं. यह कह कर कि वे तालाबंदी के नियमों का पालन कर रहे हैं. तो फिर अपने सहयोगी दल के विधायक को कोई नैतिक संदेश देंगे...? किसी आईटी सेल वाले ने मुझे चैलेंज नहीं किया कि इस पर क्यों नहीं लिख रहे हैं...?
अगर कहीं घटना हुई है, तो उसे लेकर मुझे गाली क्यों देने आते हैं...? क्या मैं प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री हूं...? वैसे घटना नहीं भी होती है, तो भी आईटी सेल की फैक्टरी मुझे गाली दे रही होती है. यह भी एक किस्म का मॉब लिंचिंग है. मैं तो बहुत-सी चीज़ों पर नहीं लिखता हूं. जब सही बात लिख देता हूं, तब भी यह गाली देने आते हैं. इनकी फैक्टरी मेरे नाम से चलती है. इन्हें हर वक्त सांप्रदायिकता की तलाश होती है, ताकि अपनी सरकार के झूठ पर पर्दा डाल सकें.