प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी विपक्षी दलों से मशवरा मांगा था. इसके जवाब में सोनिया गांधी ने मोदी जी को खत लिखा था और इस पर अपनी पांच मांगे रखी थी जिनमें से एक मांग थी कि पीएम केयर्स फंड को प्रधानमंत्री राहत कोष में ट्रांसफर क्यों नहीं किया जाए.
कई लोग नए कोष यानी पीएम-केयर को 'घोटाला' क़रार दे रहे हैं तो कुछ जगहों पर कहा जा रहा है कि नया फंड इसलिए बनाया गया क्योंकि शायद ये नियंत्रक एंव महालेखा परीक्षक या कैग की परिधि से बाहर होगा जिसकी वजह से कोष से किए गए ख़र्च और उनके इस्तेमाल पर किसी की नज़र नहीं रहेगी.
इस कारण की वजह से पीएम केयर को पीएम राहत फंड में ट्रांसफर करने की बात कही थी ...
सोनिया गांधी ने मांग की थी कि पीएम केयर्स फंड की संपूर्ण राशि को ‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत फंड में स्थानांतरित किया जाए. इससे इस राशि के आवंटन एवं खर्चे में एफिशियंसी, पारदर्शिता, जिम्मेदारी तथा ऑडिट सुनिश्चित हो पाएगा.जनता की सेवा के फंड के वितरण के लिए दो अलग-अलग मद बनाना मेहनत व संसाधनों की बर्बादी है. पीएम-एनआरएफ में लगभग 3800 करोड़ रु. की राशि वित्तवर्ष 2019 के अंत तक बिना उपयोग के पड़ी है.यह फंड तथा ‘पीएम-केयर्स’ की राशि को मिलाकर उपयोग में लाकर, समाज में हाशिए पर रहने वाले लोगों को तत्काल खाद्य सुरक्षा चक्र प्रदान किया जाए.
जब पहले से ही 3800 करोड़ रुपए जमा है तो उनको उपयोग में क्यों नहीं लाया जा रहा और अब नए फंड की क्यों जरूरत पड़ गई जबकि पहले ही इतना पैसा इस्तेमाल करने के लिए पड़ा हुआ है सोनिया गांधी को लगता है कि इसमें जरूर कोई ना कोई घोटाले बाजी है.
सवाल यह उठता है कि सालों से सरकारी पीएम रिलीफ़ फंड या प्रधानमंत्री राहत कोष मौजूद है तो फिर एक नए फंड कि ज़रूरत क्यों पड़ी.