बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती की पूजा का विधान है, इस दिन पंडालों को सजाया जाता है और देवी सरस्वती की आराधना की जाती है | बसंत पंचमी हरियाली का ख़ुशी का प्रतीक मानी जाती है और साथ ही माँ स्वरस्वती को विद्द्या की देवी के रूप में पूजा जाता है | बसंत पंचमी को स्वरस्वती पूजा का विधान क्यों है, आपको बताते हैं |
वसंत पंचमी मनाने के पीछे यह कथा प्रचलित है की जब ब्रह्मा जी ने पूरी सृष्टि का निर्माण किया तब पूरी धरती सन्नाटे में थी | कोई शोर नहीं किसी प्रकार की कोई आवाज नहीं | तभी भगवान शिव को इस बात का एहसास हुआ की धरती पर सभी जीव बेजुबान है | अगर सभी बेजुबान रहे तो धरती में लोग अपने दर्द अपनी ख़ुशी या किसी भी चीज़ को व्यक्त कैसे कर पाएंगे | अपनी इस समस्या का समाधान पाने के लिए वह भगवान विष्णु के पास गए | तब भगवान विष्णु जी ने अपने कमंडल से जल छिड़का जिससे एक सुन्दर स्त्री प्रकट हुई |
इस सुन्दर स्त्री के 4 हाथ, जिनके दो हाथों में वीणा , एक हाथ में वरमुद्रा, और एक हाथ में पुस्तक थी, और जैसे ही देवी सरस्वती ने वीणा बजाना शुरू किया वैसे ही सभी जीव जंतुओं के गले से स्वर निकलने लगे | उसके बाद ब्रह्मा जी ने उन्हें मधुर स्वरों की देवी सरस्वती नाम दिया | बसंत ऋतू के पंचमी तिथि को माँ स्वरस्वती का जन्म हुआ और इनके जन्म के उपलक्ष्य में बसंतपंचमी मनाई जाती है | विद्द्या की देवी के स्वरूप में इन्हें बसंतपंचमी को इनका पूजन होता है |
माँ सरस्वती हंस पर विराजमान होती है, इसलिए उन्हें हंसवाहिनी भी कहा जाता है। कहीं-कहीं पर मां सरस्वती का स्वरूप मयूर मतलब मोर पर सवार भी दिखाया गया है, जो मधुर वाणी का प्रतीक माना जाता है। इस साल 10 फरवरी को बसंती पंचमी मनाई जा रही है | इस दिन छोटे बच्चों के कान भी
छिदवाए जाते हैं |
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