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Setu Kushwaha

Occupation | पोस्ट किया | शिक्षा


एकादशी क़े दिन चवाल क्यों नहीं खाना चाहिए?


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| पोस्ट किया


सनातन धर्म में एकादशी तिथि का बहुत ही महत्व होता है। एकादशी क़े दिन भगवान विष्णु तथा मां लक्ष्मी की पूजा-पाठ पूरी श्रद्धा क़े साथ की जाती है। एकादशी क़े दिन व्रत करने से भक्तो क़ो सौभाग्य की प्राप्ति होती है। एकादशी व्रत की शुरुवात सूर्योदय से शुरू हो जाती है और दूसरे दिन यानि द्वादशी तिथि को एकादशी का व्रत समाप्त हो जाता है। धार्मिक मान्यता क़े अनुसार जो भक्त एकादशी के दिन भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी की पूजा करते हैं, तो उन सभी भक्तो क़े दुखों का अंत हो जाता है।

 

एकादशी के दिन चावल खाने क़े लिए सख्त माना होता है, क्योंकि कई लोग एकादशी क़े दिन चावल खा लेते है, शास्त्रो क़े मुताबिक जो लोग एकादशी क़े दिन चवाल खाते है वो लोग नरकगामी क़े हकदार होते हैं। क्योंकि एकादशी क़े दिन चावल खाना मांस खाने क़े बराबर माना जाता है। धार्मिक मान्यता क़े अनुसार एकादशी क़े दिन चावल खाने से रेंगने वाले जीव के रूप में आपका जन्म अगले जन्म में किसी जीव क़े रूप में होता है।

 

वैज्ञानिक़ो क़े मुताबिक चावल में पानी अधिक मात्रा में पाया जाता है और चंद्रमा का पानी और मन पर बहुत प्रभाव डालता है। ऐसे में एकादशी क़े दिन चावल का सेवन से मन चंचल हो जाता है जिस कारण से आप पूजा पाठ में ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते है, इसलिए एकादशी क़े दिन चावल खाने से वर्जित किया गया है।

 


शास्त्रों क़े मूताबिक क़े मुताबिक एकादशी क़े दिन चावल खाना क़े मतलब यह होता है कि महर्षि मेधा के मांस खाने के बराबर होता है। दरअसल में महर्षि मेधा माता शक्ति के गुस्सा से बचने के लिए एकादशी के ही दिन वह अपने शरीर का त्याग कर दिए थे। धार्मिक मान्यता क़े अनुसार महर्षि मेधा का जन्म चावल और जौ के रूप में हुआ था इसलिए एकादशी क़े दिन लोगो क़ो चावल खाना वर्जित माना जाता है।

 

 

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