दोनो ही संभावनाएं हैं, लेकिन कानून ने कई सुरक्षा दीवारें खड़ी की हैं जो युवाओं के पक्ष में हैं:
गेम-चेंजर क्यों है?
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जॉब हॉपिंग अब आसान होगी। 2-3 साल बाद नौकरी बदलने वाले युवा अब तकरीबन ₹30,000-₹50,000 तक की ग्रेच्युटी से वंचित रह जाते थे, अब हर बार ये राशि उनके खाते में आएगी।
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कॉन्ट्रैक्ट और फिक्स्ड-टर्म जॉब्स में भी पूर्ण लाभ मिलेगा, जिससे प्रोजेक्ट-बेस्ड काम करने वाले युवाओं को भविष्य सुरक्षा मिलेगी।
दुरुपयोग की आशंकाएं?
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कंपनियां 11वें महीने में फायर करने की कोशिश कर सकती हैं, लेकिन 240 दिन के नियम से बचना मुश्किल होगा।
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कुछ कंपनियां FTE को कॉन्ट्रैक्ट में बदलकर लूपहोल इस्तेमाल कर सकती हैं, लेकिन नए कानून में प्रिंसिपल एम्प्लॉयर की सीधी जिम्मेदारी से ये बचना आसान नहीं होगा।
निष्कर्ष: शुरुआत में कुछ चालबाजी हो सकती है, लेकिन इंस्पेक्टर-कम-फैसिलिटेटर मॉडल और सीधे ट्रिब्यूनल एक्सेस से युवाओं की जीत ज्यादा संभावित है।