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नई तकनीकी में लगातार हो रहे परिवर्तन और स्टाइल के कारण पुरानी इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं निष्कासित होना ई-वेस्ट कहलाता है। पुरानी शैली के कंप्यूटर, मोबाइल फोन, टेलीविजन और इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों के साथ ही अन्य अन्य उपकरणों के बेकार हो जाने के कारण भारत में हर साल इलेक्ट्रॉनिक कचरा पैदा होता है। यह कचरा मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए खतरा उत्पन्न करता है।
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कई देशों में इस कचरे को जलाकर आवश्यक धातु निकाली जाती है। जलाने पर इससे निकलने वाला जहरीला धुआं पर्यावरण के लिए काफी घातक होता है। ई कचरे को नष्ट करने के लिए दिल्ली और बेंगलुरु में केंद्र बनाए गए हैं। दुनियां में इलेक्ट्रॉनिक क्रांति पर जहां एक तरफ लोगों की निर्भरता बढ़ती जा रही है, वहीं दूसरी तरफ इलेक्ट्रॉनिक कचरा होने से खतरा भी बढ़ता जा रहा है।इलेक्ट्रॉनिक वस्तु में इस्तेमाल होने वाली सामग्रियों में ज्यादातर कैडमियम,क्रोमियम,निकेल मरकरी का इस्तेमाल किया जाता है। जो पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए घातक होते हैं। कचरे में पड़े हुए ऐसी खराब सामान हवा,मिट्टी,और भूमिगत जल में मिलकर जहर बनाते हैं। कैडमियम के धूल और धूल के कारण फेफड़े और किडनी दोनों को गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार पर्यावरण में असावधानी और लापरवाही से कचरे को फेंका जाता है, इससे निकलने वाले रेडिएशन शरीर के लिए घातक होते हैं। इनके प्रभाव से शरीर के महत्वपूर्ण अंग प्रभावित होते हैं। कैंसर, तंत्रिका व स्नायु तंत्र पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।
पर्यावरण के खतरे गंभीर बीमारियों का स्रोत बन रहे इस कचरे का भारत प्रमुख उपभोक्ता है। मोबाइल फोन,लैपटॉप, फैक्स, टेलीविजन और कबाड़ बन चुके कंप्यूटरों के कचरे भारी तबाही के तौर पर सामने आ रहे हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने ई-कचरे के समुचित प्रबंधन और निपटाने के लिए 'खतरनाक कचरा प्रबंधन'रखरखाव एवं सीमा पार यातायात नियम 2008 बनाए हैं।
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