दिवाली के छठे दिन यह पूजा की जाती है | सूर्य श्रष्टि होने के कारण इस व्रत में भगवान सूर्य की पूजा की जाती है | यह व्रत साल में दो बार मनाया जाता है | एक बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में आता है | इस व्रत को लोग स्वस्थ, निरोग और खुशहाल रहने की कामना से करते हैं | छठ पूजन विशेष तौर सूर्य और उनकी पत्नी उषा को समर्पित किया जाता है |
सबसे पहले छठ पूजा सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने की थी वो हर रोज भगवान सूर्य देव को जल का अर्घ्य देते थे , जिसके कारण वो बहुत ही बलशाली बने | आज भी हिन्दू धर्म में सूर्य देव को सुबह जल से अर्घ्य देने की प्रथा प्रचलित है | उसके बाद इस व्रत को द्रोपदी ने भी किया जिससे फलस्वरूप पांडवो को उनका राज पाठ वापस मिला |
छठ का महत्व :-
छठ पूजा में एक ये महत्वपूर्ण कथा भी प्रचलित है | प्रियव्रत नाम का एक राजा था और उस राजा की कोई संतान नहीं थी | जिस कारण वो बहुत ही दुखी था इसके लिए महर्षि कश्यप ने राजा को पुत्रयेष्टि यज्ञ करवाने की सलाह दी और उनके राजा ने यह यज्ञ करवाया जिसके फलस्वरूप उसके घर पुत्र का जन्म हुआ |
परन्तु उनका पुत्र मारा हुआ पैदा हुआ | जब वह अपने बच्चे को दफ़नाने के लिए लेकर जा रहे थे, उसी समय आसमान से एक अनोखी रौशनी के साथ एक विमान उतरा और उसमें बैठी देवी जो की षष्ठी देवी थी उन्होंने कहा में दुनिया के सभी बालकों की रक्षिका हूं।
षष्ठी देवी ने उस मरे हुए बच्चे के शरीर को छुआ और उस बच्चे पर प्राण आ गए | उसके बाद राजा ने उस दिन से इस त्यौहार की घोषणा कर दी | छठ पूजा के समय षष्ठी देवी की पूजा की जाती है | यह व्रत विशेष रूप से अपने लड़के के लिए किया जाता है, बेटे की लंबी आयु और उसके स्वास्थ की अच्छी कामना के लिए यह व्रत किया जाता है |