छठ पूजा का बहुत बड़ा और अपना ही एक महत्व है । यह मुख्यता बिहारियों का त्यौहार होता है और जो बहुत ही महत्वपूर्ण होता है । दीवाली के बाद यह त्यौहार आता है । इस दिन घर में साफ़ सफाई करते हैं और सात्विक भोजन करने के बाद ही छठ पूजा शुरू हो जाती है । आज आपको छठ पूजा की विधि और पूजन के बारें में बताते हैं ।
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पूजा सामग्री :-
- प्रसाद रखने के लिए बांस की दो तीन बड़ी टोकरी
- बांस या पीतल के बने तीन सूपा, लोटा, थाली, गिलास
- वस्त्र साड़ी-कुर्ता पजामा
- चावल, लाल सिंदूर, धूप और बड़ा दीपक
- पानी वाला नारियल, गन्ना पत्ता लगा हुआ
- शकरकंदी
- नाशपाती और बड़ा वाला मीठा नींबू
- शहद,पान और साबुत सुपारी
- कपूर, कुमकुम, चन्दन, मिठाई
साथ में प्रसाद के रूप में ठेकुआ, मालपुआ, खीर-पूड़ी, खजूर, सूजी का हलवा, चावल का बना लड्डू का बना हुआ है ।
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पूजा विधि :-
यह पूजा पूरी तरह भगवान सूर्य देव को समर्पित है । यह एक ऐसा व्रत होता है जो पुरुष और स्त्री दोनों करते हैं । यह व्रत का पर्व पूरे चार दिनों तक चलता है। व्रत के पहले दिन अर्थात कार्तिक की शुक्ल चतुर्थी को नहाए खाए होता है, जिसमें व्रत लेने वाले व्यक्ति आत्म शुद्धि के लिए केवल शुद्ध आहार का सेवन करते है। उसके अगले दिन खरना रखा जाता है, जिसमें पूजा करके शाम के समय गुड़ की खीर और पुड़ी बनाकर छठी माता को भोग लगाया जाता है। इस खीर का प्रसाद सबसे पहले व्रत वाले व्यक्ति को खिलाए जाता है और उसके बाद ब्राम्हणों और परिवार के लोगों को दिया जाता है ।
कार्तिक शुक्ल की छटवीं के दिन घर में बड़ी सफाई से कई तरह के पकवान बनाये जाते हैं, और सूर्यास्त के समय सारे पकवान को बांस के सुपे में भर कर अपने निकट के घाट पर ले जाते हैं । नदियों में गन्ने का घर जैसा बनाकर उन पर दीप भी जलाये जाते है। जो लोग व्रत लेते हैं वो सारे जल में स्नान कर इन डालों को अपने हाथों में उठाकर छठी माता और सूर्य को जल चढ़ाते हैं । सूर्यास्त होने के बाद अपने-अपने घर वापस आकर अपने परिवार के साथ रात भर सूर्य देवता का जागरण किया जाता है। इस जागरण में छठ माता के गीत गाये जाते हैं जिनका अपना एक अलग ही महत्व है। कार्तिक शुक्ल की सप्तमी को सूर्योदय से पहले ब्रम्ह मुहूर्त में सुबह पहले की तरह सुपे में पकवान, नारियल और फलदान रख नदी के किनारे पर सारे व्रत वाले लोग जमा होते है। इस दिन व्रत करने वाले व्यक्तियों को उगते हुए सूर्य को जल चढ़ाना होता है। अब इसके बाद छठ व्रत की कथा सुनी जाती है और इसके बाद प्रसाद बांटा जाता है ।
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