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केदारनाथ मंदिर के कुछ दिलचस्प के बारे में बताते हैं।
केदारनाथ मंदिर का निर्माण बड़े-बड़े पत्थरों और चट्टानों, शिलाखंड से किया गया है। इन शिलाखंड को आपस में जोड़ने के लिए इंटरलॉकिंग तकनीक को अपनाया गया है जिसमें कहीं भी सीमेंट इत्यादि का प्रयोग नही किया गया है।
केदारनाथ मंदिर केवल भक्तों के लिए 6 माह तक ही खुलता है।मई में इसे अक्षयतृतीय के दिन खोला जाता है व दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा में इसे बंद कर दिया जाता है।उसके बाद मंदिर के कपाट छह माह तक बंद रहते हैं व भगवान शिव के प्रतीकात्मक स्वरुप को नीचे उखीमठ में स्थापित कर दिया जाता है।
केदारनाथ मंदिर का शिवलिंग त्रिभुजाकार है इस मंदिर में भगवान शिव के साथ माता पार्वती और भगवान नन्दी,पांच पांडव और उनकी पत्नी द्रोपती के साथ विराजमान है। केदारनाथ मंदिर में कन्नड़ भाषा में मंत्रों का जाप किया जाता है।
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केदारनाथ मंदिर का नाम तो आप सभी ने सुना होगा जहां पर भगवान शिव की प्रतिमा विराजमान है आज हम आपको केदारनाथ मंदिर से जुड़े कुछ तथ्य के बारे में बताएंगे।
केदारनाथ मंदिर का शिवलिंग त्रिभुजाकार है इस मंदिर में भगवान शिव के साथ माता पार्वती और भगवान नंदी, पांच पांडव,और उनकी पत्नी द्रोपदी के साथ विराजमान है।
इस मंदिर में कन्नड़ भाषा में मंत्रों का होता है।
जब केदारनाथ मंदिर 6 महीने के लिए बंद हो जाती है तो सभी देवताओं की मूर्ति को उखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर में ले जाया जाता है और वही उनकी पूजा की जाती है।
केदारनाथ मंदिर 400 साल तक पूरी तरह से बर्फ में दबा रहा और फिर इस मंदिर का पता चला।
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केदारनाथ मंदिर के कुछ दिलचस्प तथ्य के बारे में आज हम आपको इस पोस्ट के माध्यम से बताते हैं,
केदारनाथ का सबसे बड़ा रोचक तथ्य रहस्य यहां पर स्थित शिवलिंग है। यह शिवलिंग त्रिकोण के आकार का एक बड़ा पत्थर है जिसे भगवान शिव के बैल रूपी अवतार का पीठ वाला भाग माना जाता है। यह शिवलिंग मानव निर्मित ना होकर प्राकृतिक है जो धरती में से प्रकट हुआ था।
केदारनाथ मंदिर से जुड़ा एक और रोचक तथ्य जिससे जुड़ा हुआ है वह है यहां के पुजारी। सदियों पहले जब भारत की भूमि पर आदि शंकराचार्य ने जन्म लिया था तब उनके द्वारा केदारनाथ मंदिर का पुनः निर्माण किया गया था। साथ ही उनकी समाधि भी केदारनाथ मंदिर के पीछे स्थित है।
केदारनाथ में केवल 2013 की प्राकृतिक आपदा ही नहीं झेली थी बल्कि 400 वर्षों तक यह मंदिर भारत में ढका रहा था। जी हां सही सुना आपने वीडियो इंस्टिट्यूट हिमालय देहरादून के द्वारा एक शोध किया गया जिसमें बताया गया की 13वीं शताब्दी से लेकर 17वीं शताब्दी तक इस जगह पर भीषण बर्फबारी हुई थी।
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