Official Letsdiskuss Logo
Official Letsdiskuss Logo

Language


English


Kanchan Sharma

Content Writer | पोस्ट किया |


ससुराल 19वी सदी का ................

0
0



ससुराल में वो पहली सुबह आज भी याद है। कितना डरते हुए हड़बड़ा के उठी,ये सोचते हुए की कही देर तो नहीं हो गई,ना जाने सब क्या सोचेंगे ?


एक रात ही तो नए घर में काटी है, और इतना बदलाव कैसे ? जैसे आकाश में उड़ती चिड़िया को किसी ने सोने के पिंजरे में बंद कर दिया हो। नया घर,नए लोग,नए रिश्ते सब कुछ जैसे बदला सा,कुछ अपना तो कुछ सपना सा,किससे क्या कहूं कुछ समझ नहीं आता,बस कोई ग़लती न हो जाए मन में एक यही ख्याल आता |


पहला दिन कब निकल गया पता ही नहीं चला,कब वो एक दिन 1 महीने में बदल गया पता ही नहीं चला | शुरू के कुछ दिन तो बसयूँ ही गुजर गए,कुछ समय मिला साथ अपने हमसफ़र का और हम घूमने के लिए बाहर चले गए। जब वापस आए, तो मेरी सास की आंखों में खुशी थी, पर पता चला वो ख़ुशी सिर्फ अपने बेटे के लिए थी | फिर एहसास हुआ अपनी माँ का जिसको मेरे कही जाने पर चिंता और जबतक वापस न आ जाऊ तब तक बस चिंता ,और जैसे में घर आती तो एक हंसी के साथ उसकी आँखों में एक सुकून नज़र आता था |


चलोफिर सोचा, शायद नया-नया रिश्ता है, एक दूसरे को समझते देर लगेगी। लेकिनसमय ने कुछ जल्दी ही एहसास करा दिया की मैं यहाँ बहु हूँ। जैसे चाहूं वैसे नही रह सकती,मेरे लिए कुछ कायदे और मर्यादा हैं, जिनका पालन मुझे करना होगा। धीरे-धीरे बात करना, धीरे से हँसना होगा | जब सब खाना खा ले उसके बाद ही मुझे खाना है,और अपने घर की सभी आदतें मुझे अब भूल जाना है |


घर में अपनीमाँ से भी कैसे बात हो। कभी मिलने का मन हो और ससुराल वालो से पूछा के घर जाना है,तो कहा गया ..अभी नही, कुछ दिन बाद जाना। जिस पति ने कुछ दिन पहले ही मेरे माता पिता से, कहा था, कि घर पास ही तो है, कभी भी आ जाएंगे हम लोग,अब उनके सुर में भी बदलाव आ गया था | धीरे धीरे अब ये समझ आया की शादी कोई खेल नही। इसमें सिर्फ़ घर ही नही बदलता, बल्कि आपका पूरा जीवन ही बदल जाता है।


आप कभी भी अपने पीहर नही जा सकते। यहाँ तक की आपकी याद आने पर भी आपके घर वाले भी बिन पूछे नही आ सकते। अपने मायके का वो बचपन, वो बेबाक हँसना, वो जूठे मुँह रसोई में जाकर कुछ भी छू लेना, जब मन चाहे तब उठना, जब मन हो तब सोना,खुश रहना और हस्ते रहना अब सब कुछ एक सपना सा लगता है,सब अब यादें ही रह जाती हैं।


अब समझ आने लगा था, कि क्यों विदाई के समय, सब मुझे गले लगा कर रो रहे थे ? असल में वोमुझसे दूर हो जाने के एहसास में रो रहे थे | वो जानते थे, की बेटी अब परायी हो गई, क्योकि दूसरे घर उसकी विदाई हो गई | लेकिन एक और बात थी, जो उन्हें अन्दर ही अन्दर परेशान कर रही थी, कि जिस सच से उन्होंने मुझे इतने साल दूर रखा, अब वो मेरे सामने आने वाला है । पापा का ये झूठ कि में उनकी बेटी नही बेटा हूँ, अब और दिन नही छुप पायेगा।


उनकी सबसे बड़ी चिंता अब उनका ये बेटा, कैसे इस बात को स्वीकार कर पाएगा ,कि वो बेटी थी बेटा नहीं, और वो एक अमानत थी अपने घर की ,कभी बेटी होने का एहसास तक नही कराया | अब न जाने जीवन के इतने बड़े सच को कैसे स्वीकार करेगी ? माँ की चिंता थी, कि उनकी बेटी ने कभी एक ग्लास पानी का नही उठाया, तो इतने बड़े परिवार की जिम्मेदारी कैसे उठाएगी ? सब इस विदाई और मेरे पराये होने के गम से दुखी थे सिवाये मेरे,क्योकि तब एहसास ही नहीं था की ससुराल क्या होता है ? अब पता चला इसलिए सब ऐसे रो रहे थे |


आज मुझे समझ आया, कि उनकारोना ग़लत नही था। हमारे समाज का नियम ही यही है, घर से एक बार बेटी डोली में विदा हुयी, तो फिर वो बस मेहमान ही होती है। फिर कोई चाहे कितना ही क्यों ना कह ले, कि ये घर आज भी उसका है ,पर वो घर उसका नहीं होता |


ससुराल 19वी सदी का ................


/blog/kanchan

');