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हमारे भारत देश के उड़ीसा राज्य की राजधानी भुवनेश्वर मे लिंगराज का मंदिर स्थित है। जो कि बहुत ही विशाल और प्राचीन मंदिर है। हम आपको बता देंगे लिंगराज का अर्थ होता है लिंगम का राजा और भगवान शिव जी को लिंग के रूप में पूजा जाता है। इसलिए इस मंदिर का नाम लिंगराज मंदिर है। लिंगराज का मंदिर भुवनेश्वर राज्य का सबसे प्राचीन मंदिर है इस मंदिर की लंबाई 180 मीटर ऊंची है। यहां पर भगवान शिव जी के दर्शन करने के लिए रोज लाखों की संख्या में भीड़ लगी हुई होती है। इसलिए आप भी एक बार लिंगराज मंदिर घूमने अवश्य जाएं।
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नमस्कार दोस्तों स्वागत है आप सभी का मेरे एक और नए लेख मे इसलिए मैं आपको लिंगराज मंदिर के बारे में बताना चाहती हूं लिंगराज मंदिर भुवनेश्वर में स्थित है लिंगराज का अर्थ होता है, लिंगम का राजा और भगवान शिव को लिंग के रूप में पूजा जाता है यह मंदिर उड़ीसा राज्य के राजधानी भुवनेश्वर में स्थित है और शहर के पुराने मंदिरों में से एक है लिंगराज मंदिर को प्राचीन समय में एकमरा क्षेत्र कहा जाता था, क्योंकि भगवान शिव का लिंग एक आम के पेड़ के नीचे स्थित है आमतौर पर भगवान शिव के मंदिरों पर झंडे पर त्रिशूल बनाया जाता है
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दोस्तों आप ने लिंगराज मंदिर के बारे में सुना ही होगा। पर क्या आप जानते है कि लिंगराज मंदिर कहाँ है यदि आप नहीं जानते है तो हम आपको बताएंगे। लिंगराज मंदिर भारत के ओड़िशा राज्य की राजधानी भुवनेश्वर में है। यह भुवनेश्वर का सबसे प्राचीन और सबसे प्रमुख मंदिरों में से एक है। इस मंदिर में लिंगराज अर्थात भगवान शिव की पूजा की जाती है। यह मंदिर 180 फिट लम्बा है। यहाँ लाखों की तादाद में भक्त भगवान लिंगराज के दर्शन करने आते हैं।
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लिंगराज मन्दिर ओडिशा के भुवनेश्वर शहर में स्थित है। यह 11वीं शताब्दी में राजा सोमा वंश द्वारा निर्मित किया गया था। यह एक हिंदू मन्दिर है। इसे सोमावंशी राजा यतातिप्रथमने बनवाया था। यह लाल पत्थर से बना हुआ है और कलिंग शैली की वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। यह भुवनेश्वर में सबसे पुराने मंदिरो में से एक है। यही पर बिंदुसागर सरोवर है। मंदिर का प्रागंण 150 मीटर वर्गकार का है तथा कलश की ऊँचाइ 40 मीटर है। यहाँ प्रतिवर्ष अप्रैल माह में रथयात्रा आयोजित की जाती हैं। बिंदुसागर सरोवर में भारत के प्रत्येक झरने और तालाबों का जल संग्रहित है। लिंगराज मन्दिर में सनातन विधि से चौबीस घंटे पूरे विधि - विधान के साथ महादेव शिवशंकर की पूजा अर्चना की जाती है। शिव मन्दिर होने की वजह से महाशिवरात्रि के दिन यहाँ विशेष समारोह होता है। इस मन्दिर में भगवान शिव के साथ भगवान विष्णु जी की भी पूजा की जाती है।
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दोस्तों क्या आप जानते हैं कि लिंगराज का मंदिर कहां स्थित है। लिंगराज मंदिर भारत के ओड़िशा राज्य की राजधानी भुवनेश्वर में है। यह भुवनेश्वर का सबसे प्राचीन और सबसे प्रमुख मंदिरों में से एक है। इस मंदिर में लिंगराज मंदिर को प्राचीन समय में एकमरा क्षेत्र कहा जाता था, क्योंकि भगवान शिव का लिंग एक आम के पेड़ के नीचे स्थित है आमतौर पर भगवान शिव के मंदिरों पर झंडे पर त्रिशूल बनाया जाता है। महादेव शिवशंकर की पूजा अर्चना की जाती है। शिव मन्दिर होने की वजह से महाशिवरात्रि के दिन यहाँ विशेष समारोह होता है। लिंगराज का मंदिर भुवनेश्वर राज्य का सबसे प्राचीन मंदिर है इस मंदिर की लंबाई 180 मीटर ऊंची है। यहां पर भगवान शिव जी के दर्शन करने के लिए रोज लाखों की संख्या में भीड़ लगी हुई होती है। यह लाल पत्थर से बना हुआ है और कलिंग शैली की वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। यह भुवनेश्वर में सबसे पुराने मंदिरो में से एक है।
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आज हम आपको बताएंगे कि लिंगराज मंदिर कहां स्थित है चलिए आज हम आपको इसके बारे में कुछ जानकारी देते हैं।
लिंगराज मंदिर उड़ीसा के राजधानी भुवनेश्वर में स्थित है।
यह 11वीं शताब्दी में राजा सोमा वंश द्वारा निर्मित किया गया था। और यह एक हिंदू मन्दिर है। इसे सोमावंशी राजा यताति प्रथम ने बनवाया था। यह लाल पत्थर से बना हुआ है। लिंगराज मन्दिर में सनातन विधि से चौबीस घंटे पूरे विधि - विधान के साथ महादेव शिवशंकर की पूजा अर्चना की जाती है। और शिव मन्दिर होने की वजह से महाशिवरात्रि के दिन यहाँ विशेष समारोह भी होता है। इस मन्दिर में भगवान शिव के साथ भगवान विष्णु जी की भी पूजा की जाती है।
लिंगराज अर्थात भगवान शिव की पूजा की जाती है। यह मंदिर 180 फिट लम्बा है। यहाँ लाखों की तादाद में भक्त भगवान लिंगराज के दर्शन करने आते हैं।
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चलिए आज हम आपको आज हम आपको बताएंगे कि लिंगराज मंदिर कहांआपको इसके बारे में कुछ जानकारी देते हैं।
लिंगराज मंदिर उड़ीसा के राजधानी भुवनेश्वर में स्थित है।
यह 11वीं शताब्दी में राजा सोमा वंश द्वारा निर्मित किया गया था। और यह एक हिंदू मन्दिर है। इसे सोमावंशी राजा यताति प्रथम ने बनवाया था। यह लाल पत्थर से बना हुआ है। यह भुवनेश्वर का सबसे प्राचीन और सबसे प्रमुख मंदिरों में से एक है। इस मंदिर में लिंगराज मंदिर को प्राचीन समय में एकमरा क्षेत्र कहा जाता था, क्योंकि भगवान शिव का लिंग एक आम के पेड़ के नीचे स्थित है आमतौर पर भगवान शिव के मंदिरों पर झंडे पर त्रिशूल बनाया जाता है। महादेव शिवशंकर की पूजा अर्चना की जाती है। मन्दिर में भगवान शिव के साथ भगवान विष्णु जी की भी पूजा की जाती है।
इस लिंगराज अर्थात भगवान शिव की पूजा की जाती है। यह मंदिर 180 फिट लम्बा है। यहाँ लाखों की तादाद में भक्त भगवान लिंगराज के दर्शन करने आते हैं।
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चलिए आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताते हैं जो हमारे भारत देश की सबसे फेमस मंदिरों में से एक है। दोस्तों उसे मंदिर का नाम है लिंगराज मंदिर तो इससे पहले जानते हैं कि लिंगराज मंदिर कहां स्थापित है।मैं आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि लिंगराज मंदिर उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित है।जो की एक हिंदू मंदिर है और भगवान शिव को समर्पित है।यह मंदिर भुवनेश्वर के पुराने मंदिरों में से एक है। और भुवनेश्वर का सबसे बड़ा मंदिरों में से एक है। इस मंदिर का निर्माण सोमवमसी राजवंश के राजाओं द्वारा किया गया था। लिंगराज मंदिर का निर्माण लाल पत्थरों से किया गया है। इतना ही नहीं इस मंदिर में भगवान शिव जी के साथ भगवान विष्णु जी की भी पूजा की जाती है। इस मंदिर में दर्शन के लिए रोजाना लाखों की संख्या में भक्तगण आते हैं।इस मंदिर की खूबसूरती देखते ही बनती है।
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नमस्कार दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल में बताते हैं कि लिंगराज मंदिर कहां स्थित है। लिंगराज मंदिर उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित है।लिंगराज मंदिर जो भगवान शिव को समर्पित है। भुवनेश्वर के सबसे पुराने मंदिरों में से एक लिंगराज मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में हुआ था। राक्षसों से युद्ध के बाद थकी और प्यासी माता पार्वती को जल उपलब्ध कराने के लिए इस स्थान पर भगवान शिव ने एक कूप का रूप धारण किया था और सभी नदियों को यहां बुला लिया था।
लिंगराज मंदिर भुवनेश्वर का सबसे बड़े मंदिरों में से एक माना जाता है। 180 फीट ऊंचे लिंगराज मंदिर का निर्माण सोमवंशी राजवंश के राजाओं द्वारा किया गया था। लिंगराज मंदिर का निर्माण लाल पत्थरो से किया गया है। बाद में गंगवंश के शासको ने लिंगराज मंदिर का पुनर्निर्माण कराया।हालांकि मंदिर का वर्तमान स्वरूप सन 1090 से सन 1104 के दौरान हुआ। लेकिन मंदिर के कुछ हिस्से 1400 वर्ष पुराने है।
मंदिर के विषय में एक धार्मिक मान्यता है कि लिट्टी तथा वसा नाम के दो राक्षसों से माता पार्वती का भीषण युद्ध हुआ। माता पार्वती जी ने इन दोनों राक्षसों का वध इसी स्थान पर किया लेकिन युद्ध के कारण माता पार्वती को प्यास लगी। ऐसी स्थिति में माता पार्वती की सहायता करने के लिए भगवान शिव नेकों का धारण कर लिया और सभी नदियों को योगदान देने के लिए वही बुला लिया।इसके बाद इस स्थान पर भगवान शिव कीर्ति वास के रूप में पूजने लगे। बाद में भगवान शिव को हरिहर भुवनेश्वर के रूप में जाना गया। मंदिर में भगवान शिव की मूर्ति के अलावा भगवान विष्णु की भी मूर्ति विराजित है। इस मंदिर में दर्शन करने के लिए रोजाना करोड़ों की संख्या में लोक दर्शन के लिए यहां भीड़ लगी रहती है। और यह मंदिर देखने में बहुत ही खूबसूरत दिखता है। इसीलिए जो भी व्यक्ति भुवनेश्वर आता है लिंगराज मंदिर घूम कर जरूर जाता है।
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