बसंत पंचमी हिन्दुओं का एक प्रसिद्ध त्यौहार है । हिन्दू पंचांग के हिसाब से यह त्यौहार हर साल माघ के महीने में आता है , और यह त्यौहार शुक्ल पक्ष के पांचवे दिन आता है, और इसलिए इसको बसंत पंचमी कहते हैं । बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती की पूजा की जाती है और यह त्यौहार भारत के आलावा बांग्लादेश और नेपाल में बहुत ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है । इस दिन की पूजा में महिलाएं पीले रंग का वस्त्र पहनती हैं।
इस मौसम में प्रकृति का सौंदर्य बहुत ही अच्छा होता है, जो की आपके मन को मोहित करने वाला होता है। लोग इस इस ऋतु के स्वागत के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन भगवान विष्णु और कामदेव की पूजा करते हैं । बसंत पंचमी के त्यौहार को देवी सरस्वती के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है । इस मंत्र के साथ माता सरस्वती का पूजन किया जाता है ।
प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।
इसका अर्थ है, कि हे माँ आप परम चेतना हो,सरस्वती के रूप में आप हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षक हो , हम में जो भी संस्कार हैं वो सब आपके दिए हुए हैं , जिसकाआधार आप हो, इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है।
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(इमेज-नूस्ड)
बसंत पंचमी का महत्त्व -
बसंत पंचमी का महत्व पौराणिक रामायण काल से जुड़ा है । जब माता सीता का हरण कर के रावण उन्हें लंका ले जाता है तो उसके बाद भगवान राम अपनी पत्नी सीता को ढूढ़ते हुए कई सारे स्थानों में जाते हैं , जिनमें से एक दंडकारण्य भी था। इस जगह में शबरी नाम की एक भीलनी रहती थी। वह भगवान राम की परम भक्त थी और जब भगवान राम उसकी कुटिया में गए तो वह ख़ुशी के कारण इतनी पागल हो गई कि वह राम को चखकर बेर खिलने लगी, वह इसलिए उन्हें चख रही थी कि कहीं वो राम को खट्टे बेर न खिला दें । कहा जाता है कि गुजरात के डांग जिले में वह जगह आज भी है, जहां पर शबरी मां का आश्रम था। भगवान राम उस जगह में बसंत पंचमी के दिन ही पधारे थे। इसलिए इस क्षेत्र के वनवासी बसंत पंचमी के दिन को पूजते हैं और वो वहाँ रखे हुए एक पत्थर का पूजन करते हैं, उन लोगों की श्रध्दा है कि उस पत्थर पर भगवान श्रीराम आकर बैठे थे और इतना ही नहीं यहाँ शबरी माता का मंदिर स्थापित है।
एक मान्यता बसंत पंचमी को मानाने की यह भी मानी जाती है, कि जब मोहम्मद गौरी को पृथ्वीराज चौहान ने 16 बार युद्ध में पराजित किया परन्तु पृथ्वीराज चौहान की महानता के अनुसार उन्होंने गौरी को जीवन दान दिया,परन्तु जब पृथ्वीराज चौहान 17 वीं बार गौरी से हार गए तो उन्होंने पृथ्वीराज चौहान को नहीं छोड़ा और अपने साथ अफगानिस्तान ले गए और वहाँ उन्होंने पृथ्वीराज चौहान की दोनों आखें निकाल दी, इसके बाद मोहम्मद ग़ोरी ने मृत्युदंड देने से पहले पृथ्वीराज चौहान के शब्दभेदी बाण का कमाल देखना चाहा, तो इस अवसर का लाभ उठाकर कवि चंदबरदाई ने पृथ्वीराज को संदेश दिया, जिस संदेशे के अनुसार इस बार पृथ्वीराज चौहान ने कोई गलती नहीं की और अपने शब्द भेदी बाण से सीधा मोहम्मद गौरी के सीने में तीर चला दिया और उसके बाद चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने एक दूसरे के पेट में छुरा मर कर खुद ही आत्मबलिदान दे दिया । 1192 ई को यह घटना बसंत पंचमी के दिन ही घटी थी । बसंत पंचमी की एक मान्यता यह भी मानी जाती है ।