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हमारे महासागरों तथा इसकी अपार जलराशि के कारण ही पृथ्वी को वाटर प्लैनेट कहा जाता है। जल के कारण ही पृथ्वी पर जीवन संभव हो सका है। इस प्रश्न का उत्तर जानने से पहले आइए जानते हैं इस महासागर के बारे मेंदक्षिण महासागर को अंटार्कटिका महासागर भी कहा जाता है। यह विश्व के सबसे दक्षिण भाग में स्थिती है। यह पांच महासागरों में से चौथा सबसे बड़ा महासागर है। दक्षिण महासागर को स्पेस क्राफ्ट ग्रेव यार्ड इसलिए कहा जाता है क्योंकि सभी उपग्रह फेल हुए उपग्रह और अंतरिक्षयान इसी महासागर के अंदर मिलते हैं। उत्तर दिशा की ओर से अंटार्कटिका महाद्वीप इसी महासागर से घिरा हुआ है। दक्षिण महासागर का विस्तार 60 डिग्री दक्षिणी अक्षांश से दक्षिण में है। दक्षिण महासागर के अंदर ही सभी फेल हुए उपग्रह और अंतरिक्षयान मिलते है इसीलिए इसे स्पेस क्राफ्ट ग्रेव यार्ड कहा जाता है।
अंटार्कटिक महासागर की गहराई हार्न अंतरीप के पास 600 मील (लगभग 960 कि.मी.) है तो अफ़्रीका के दक्षिण स्थित अमुलहस अंतरीप के समीप 2,400 मील। इस महासागर में अनेक बड़े आकार के प्लावी 'हिमशैल' तैरते रहते हैं। कुछ हिमशैल तैरते-तैरते समीपस्थ अन्य महासागरों में भी चले जाते हैं। समुद्री खोजकर्ताओं ने इस सागर में कई इस प्रकार के प्लावी हिमशैल भी देखे हैं, जिनका क्षेत्रफल एक सौ वर्गमील से भी अधिक था। इनमें से कुछ हिमशैलों की मोटाई एक हज़ार फीट से भी अधिक थी। अंटार्कटिक महासागर के जल का सतह पर औसत तापमान 29.8° फ़ारनहाइट रहता है और तल पर यह तापमान 32° से 35° फ़ारनहाइट तक रहता है।
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