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pravesh chuahan,BA journalism & mass comm | पोस्ट किया |


क्या यही है लिंग और योनि से बनी मूर्ति की सच्चाई

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हम इंसान किसी की कही बात पर बहुत जल्दी भरोसा कर लेते हैं चाहे वह मूर्ति पूजन हो या भगवान को मानना हो. हम बाकी लोगों को देखो देख उस बात को सत्य समझने लगते हैं. मगर हम उसके पीछे की वास्तविकता को बिल्कुल भी नही जानते. आस्था के डर ने हमें इन सभी बातों को जानने का मौका ही नहीं दिया है.

अगर कोई बच्चा पैदा होता है तो उसको क्या पता भगवान कौन है,शिव कौन है, विष्णु कौन है, ब्रह्मा कौन है, उस बच्चे को हम जैसा ज्ञान देते हैं वह भी उसी तरह होता हैजैसे हमको हमारे पूर्वजों द्वारा भगवान की पूजा करने की बात कही जाती है हम भी उन्हीं की रणनीति को अपनाते आ रहे हैं और अपने आने वाले बच्चों को भी यही समझ देते हैं.

जिस वजह से सही क्या होता है गलत क्या होता है हमें पता ही नहीं चलता है क्योंकि हम अपनी जिंदगी में इतना व्यस्त हो जाते हैं कि हमारे पास इतना समय नहीं होता है हम इतिहास की बातों को जान पाए..

सवाल अब यह है कि आखिर शिवलिंग है क्या ? क्या शिवलिंग सच में शिव का ही लिंग है. इन सभी बातों को जानने के लिए धार्मिक पुस्तकों की बातें सुनना बंद कीजिए, जरूरी है कि हम केवल तथयों पर बात करें, तथ्यों के साथ बात को समझने की कोशिश करें,ना की किसी की कही और सुनी बातों पर ध्यान दें..

हिंदू धर्म में शिवलिंग की पूजा बहुत ही बडे पैमाने पर की जाती है करोड़ों लोगों की शिवलिंग की पूजा करने में आस्था भी है. क्या किसी ने इस बात को जानने की कोशिश की आखिर सच में जिस लिंग की पूजा करते हैं वह लिंग शिवजी का ही था..क्या किसी ने यह जानने की कोशिश की वह योनि किसकी है. अगर हम किसी पंडित से यह बात पूछेंगे तो वह इस बात को पूरा करने के लिए उसे शिव लिंग का नाम दे देंगे. यानी कि वह लिंग शिव का है. और सभी लोग शिव भगवान का लिंग समझकर उसकी पूजा करते हैं.

हां यह बात तो सच है कि आज से 5000 साल पहले हड़प्पा सभ्यता मे योनि और लिंग से बनी मूर्ति मिलने का सबूत मिलता हैं. इसका मतलब यह नहीं कि यह लिंग शिव का है और हड़प्पा के लोग शिव भगवान की पूजा करते थे. योनि और लिंग से बनी मूर्ति मिलने की वजह से आज हमे यह लगता है कि हड़प्पा के समय पहले भी इस लिंग की पूजा होती थी जिसे आज हम शिवलिंग कहते हैं.

मगर ऐसा बिल्कुल नहीं है. हड़प्पा के समय में भगवान शिव की मूर्ति ही नहीं मिली थी और ना ही भगवान शिव की पुजा करने का प्रमाण मिलता हैं. हम इस बात को कह नहीं सकते कि जो लिंग और योनि वाली मूर्ति मिली थी,वास्तव में उसको लोग शिव का लिंग समझकर पूजा करते थे.जब शिव की मूर्ति ही नहीं मिली,शिव का कोई प्रमाण ही नहीं मिला तो फिर कैसे यह कहा जा सकता है कि उस समय के लोग जिस लिंग की पूजा करते थे... उसे शिव का ही लिंग समझते थे. वह लिंग और योनि की पूजा तो करते थे मगर केवल लिंग और योनि को ही समझ कर..ना कि शिव भगवान का प्रतीक समझकर...

अब आप सोच रहे होंगे कि फिर वह लिंग और योनि की भी पूजा क्यों करते थे. इसका बहुत ही सरल सा जवाब है लिंग और योनि की वजह से संतान उत्पन्न होती है. अगर आज दुनिया में अरबों खरबों की संख्या में लोग हैं तो लिंग और योनि को ही वजह कहेंगे. लिंग और योनि की पूजा हड़प्पा के लोगों द्वारा की जाने की वजह यही है. यानी कि लिंग और योनि की पूजा करने का हड़प्पा के लोगों का मुख्य मकसद केवल इसकी वजह से इंसानों की उत्पत्ति होती है. इसलिए वह लिंग और योनि से बनी मूर्ति की पूजा करते थे.
अराजक तत्वों द्वारा बहुत ही सोची समझी साजिश रच कर इस बात को दरकिनार कर दिया गया है कि लिंग और योनि से बनी मूर्ति की पूजा करने का मुख्य मकसद केवल इसकी वजह से होने वाले इंसानों की उत्पत्ति हैं. आस्था के जाल में लोगों को फंसा कर लिंग और योनि को भगवान शिव का लिंग बताकर शिव की पूजा करवाए जाने का खेल रच दिया. तभी से लेकर अभी तक हम सभी लोग लिंग और योनि से बनी मूर्ति को शिव का लिंग समझकर उसकी पूजा करते हैं. मगर इसके पीछे का कारण हम बिल्कुल भी जानने की कोशिश नहीं करते हैं जिस वजह से आस्था का डर दिखाकर शिव का डर दिखाकर भगवान शिव का लिंग बता कर हमें लिंग की पूजा करने के लिए बाध्य होना पड़ा है.

अब हर किसी के मन में यह सवाल होगा कि आखिर इतने सालों से चलती आ रही योनि और लिंग की पूजा जो हमारे पूर्वज करते आ रहे हैं तो क्या यह गलत है. करोड़ों लोग शिव के लिंग की पूजा करते हैं तो क्या वह लोग मूर्ख हैं अगर आप इस बात को कहेंगे कि करोड़ों लोगों की संख्या जब शिव के लिंग की पूजा करते हैं तो हम क्यों ना करें.योनि और लिंग की पूजा करना गलत नहीं है. योनि और लिंग की पूजा क्यों की जाती थी आपको इस बात को बता भी दिया है.मगर गलत यह है कि योनि और लिंग को भगवान शिव का लिंग बताकर आस्था के जाल में फंसा कर पूजा करवाना यह गलत है. लोगों की आस्था के साथ खिलवाड़ करना यह गलत है.
आखिर क्यो योनि और लिंग के इस सच को नहीं बताया जाता है.


आप इतनी जल्दी इस भ्रम से दूर नहीं होंगे कुछ तथ्यों के साथ आपको इस बात को समझने में आसानी होगी:-

इतिहासकारों का मानना है कि गुप्त काल में इस बात का प्रमाण मिलता है कि शिव और पार्वती दोनों पति-पत्नी हैं. इससे पहले के कालों में कहीं भी इस बात का प्रमाण नहीं मिला है कि शिव और पार्वती दोनों थे भी या नहीं थे. यानी कि हड़प्पा की सभ्यता के 2800 वर्षों के बाद शिव के प्रमाण मिलते हैं. कुमारगुप्त प्रथम के समय में जारी किए गए सिक्कों में हमें पहली बार शिव तथा पार्वती के विवाह का उल्लेख मिलता है. आपको जानकर यह हैरानी होगी कि जिन्हें हम बहुत ही प्राचीन समझते आ रहे हैं. जिन देवी-देवताओं को हम सृष्टि का रचयिता मानते हैं उनकी खुद की उत्पत्ति का उल्लेख गुप्त काल में मिलता है.गुप्त काल के ही समय में हमें विष्णु और लक्ष्मी के विवाह का प्रमाण मिलता हैं तथा शैव ओर वैष्णव धर्म इस काल में जाकर बहुत ज्यादा शक्तिशाली बन गए. इतिहासकारों के दिए हुए तथ्यों के अनुसार गुप्त काल से पहले हमें मंदिरों के निर्माण का बिल्कुल भी प्रमाण नहीं मिलता हैं. यानी कि गुप्त काल से 3000 सालो से पहले बिल्कुल भी मंदिर नहीं थे. गुप्त काल ही एेसा काल था जिसमें बहुत सारे मंदिर बनाए गए. गुप्त काल को स्वर्ण युग कहा जाता है. गुप्त काल से पहले अगर उल्लेख मिलता भी है तो महात्मा बुद्ध की मूर्तियों का उल्लेख प्रमाणिक रूप से मिलता है.

यानी कि हमें आज से 1500 साल पहले ही भगवान शिव
के होने का उल्लेख मिलता है. उससे पहले कहीं भी भगवान शिव की मूर्ति होने का पता नही मिला है अगर मिलता भी है तो उस काल से 3000 वर्षों पहले केवल योनि और लिंग से बनी मूर्ति का पता मिला है.जिसे हम शिवलिंग समझते हैं. सोचने वाली बात यह है कि जब शिव का नाम ही गुप्त काल के समय में प्रचलन में आया तो उस समय से 3000 साल पहले शिव जैसा कोई नाम ही नहीं था यानी कि शिव शब्द ही नहीं था.

हड़प्पा की सभ्यता से योनि और लिंग से बनी मूर्ति की पूजा का प्रचलन चलता आ रहा था गुप्त काल के समय में योनि और लिंग की बनी मूर्ति को और अधिक प्रमाणित करने के लिए लिंग से बनी मूर्ति को भगवान शिव के नाम से जोड़ दिया गया. इसके पीछे कई मनगढ़ंत कहानियां बनाकर योनि और लिंग से बनी मूर्ति को भगवान शिव का चिह्न मानकर भगवान शिव का लिंग यानी कि शिवलिंग का नाम दे दिया गया जिसे आज हम बहुत ही आस्था के साथ पूजते हैं.

वास्तव में देखा जाए तो यह लिंग और योनि से बनी मूर्ति हमारे ब्रह्मांड की आकृति है, इसके अलावा वह पुरुष और प्रकृति (स्त्री) के बीच समानता और सामजंस्य का प्रतीक भी माना गया है. साधारण शब्दों में कहा जाए तो लिंग को हम पुरुष का प्रतीक कहेंगे और योनि को स्त्री का प्रतीक मानेंगे. ना कि हम इसे शिवलिंग कह देंगे यह कहना बिल्कुल ही उस अंधकार के समान हैं जहां पर प्रकाश होने की बिल्कुल भी कोई उम्मीद नहीं है. इसलिए आप उस अंधकार से खुद भी बचिए उन करोड़ों लोगों को भी बचाइए.

इस लेख का मकसद किसी की आस्था को ठेस पहुंचाना नहीं है. बल्कि उस सच से रूबरू कराना है जो सदियों से छुपाया गया है जिस सच को घुमा फिरा कर आस्था के जाल में उलझा कर हमारे सामने पेश किया गया है. इन सभी अंधविश्वासों से हमें बचना है.लिंग और योनि से बनी मूर्ति की पूजा आप कीजिए. इसमें कोई गलत नहीं है समस्या सिर्फ यही है कि लिंग और योनि को शिव का लिंग बताकर जिस वजह से अंधविश्वास लाया गया है यह बिल्कुल भी सराहनीय योग्य नहीं है.मैं जानता हूं कि इस जीवन में सबसे दुखद पल होता है तो वह यही पल होता है जब हमें सच्चाई का पता चलता है. क्योंकि हमारी बचपन से ही उसके साथ आस्था जुड़ी हुई होती है जिस वजह से मन को बहुत ठेस पहुंचता है.

मेरा उद्देश्य आप लोगों को अंधकार से निकालकर प्रकाश की ओर ले जाना है आपको कुछ समय के लिए बुरा लगेगा मगर ज्यादा समय के लिए नहीं. मुझे दुख इस बात का है कि मैं जानता हूं,सबसे दुखद पल तो वह है कि हम बिना सच्चाई जाने अपनी जिंदगी बिता रहे हैं और बिना सच्चाई जाने हम मर भी गए. हमने अपना अनमोल समय बिना सच जाने ही गंवा दिया.यह जिंदगी तो लौट कर वापस नही आ सकती इसलिए अपनी जिंदगी का अनमोल समय समझदारी के साथ जीना सीखिए.





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