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| Posted on November 24, 2025

न्यू लेबर कोड्स 2025: 1 साल में ग्रेच्युटी, गिग वर्कर्स को भी सुरक्षा

Blog Title: न्यू लेबर कोड्स

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अरे आपको याद है वो पुराने श्रम कानून? जो दशकों से चले आ रहे थे, जब कामकाज का तरीका कुछ और ही था। 21 नवंबर 2025 को एक ऐतिहासिक फैसले के साथ उन सारे कानूनों को अलविदा कह दिया गया। अब देश चलाएगा सिर्फ 4 नए लेबर कोड्स, जो पुराने 29 कानूनों की जगह लेंगे।

और ये सिर्फ नियमों का खेल नहीं है। देखिए नंबर्स की ही बात – 2023-24 तक देश में 64.33 करोड़ लोगों को रोजगार मिला, बेरोजगारी दर घटकर महज 3.2% रह गई। इतना ही नहीं, 1.56 करोड़ महिलाएं औपचारिक कामकाज में जुड़ीं।

लेकिन सवाल तो ये है ना – क्या आप जानते हैं कि अब आपको ग्रेच्युटी के लिए 5 साल नहीं, बल्कि सिर्फ 1 साल इंतजार करना होगा? और वो भी सिर्फ पर्मानेंट कर्मचारी नहीं, बल्कि फिक्स्ड-टर्म, कॉन्ट्रैक्ट, यहां तक कि ज़ोमैटो-स्विगी जैसे गिग वर्कर्स को भी PF-ESIC जैसे लाभ मिलेंगे?

जी हां, नए श्रम कानून में ऐसे बदलाव हैं जो पहले सोचे भी नहीं जा सकते थे। तो चलिए, समझते हैं कि आखिर ये न्यू लेबर कोड्स आपके लिए क्या लेकर आए हैं।


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ग्रेच्युटी के नियम में 'सुपर हिट' सुधार – अब 1 साल में हक्क

अगर आपने कभी नौकरी बदली है, तो ये बात जरूर जानते होंगे कि ग्रेच्युटी पाने के लिए 5 साल तक एक ही कंपनी में जुड़े रहना जरूरी था। इस नियम ने कितने ही युवाओं को राइटफुल पेमेंट से वंचित रखा। लेकिन नए श्रम कानून ने इसे पूरी तरह बदल दिया है।

पुराने और नए नियम में फर्क (साफ-साफ टेबल में)

पहले क्या था?अब 2025 में क्या मिलेगा?
5 साल की नौकरी अनिवार्यसिर्फ 1 साल में ग्रेच्युटी का पूरा हक
सिर्फ पर्मानेंट कर्मचारी को लाभफिक्स्ड-टर्म, कॉन्ट्रैक्ट और अस्थायी कर्मचारी भी कवर
कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स को अलग नियमसभी कैटेगरी के लिए समान नियम

ग्रेच्युटी अब कैसे कैलकुलेट होगी?

फॉर्मूला वही है, लेकिन हक्क जल्दी मिलेगा:

(आखिरी वेतन × 15 दिन × काम के साल) / 26

उदाहरण समझें:
अगर आपकी सैलरी 30,000 रुपये है और आपने 2 साल काम किया:

  • पहले: 0 रुपया (क्योंकि 5 साल पूरे नहीं)

  • अब: (30,000 × 15 × 2) / 26 = 34,615 रुपये आपके हक में

ये बदलाव खासतौर पर उन युवाओं के लिए जीत है जो जल्दी नौकरी बदलते हैं या प्रोजेक्ट-बेसिस काम करते हैं। अब कोई भी कंपनी आपको 1 साल पूरा होते ही ग्रेच्युटी से नहीं रोक सकती।


गिग वर्कर्स और फ्रीलांसर्स के लिए 'सुपर हिट' स्कीम

आपमें से कितने लोगों ने ज़ोमैटो से खाना मंगाया है? या ओला/ऊबर में सफर किया है? क्या आपने कभी सोचा कि जो डिलीवरी बॉय या ड्राइवर आपकी सेवा कर रहा है, उसे पीएफ या बीमारी की सूरत में मेडिकल लीव नहीं मिलती? अब तक ये पूरी आर्मी कानूनी सुरक्षा से बाहर थी। लेकिन नए श्रम कानून ने इन्हें भी 'कर्मचारी' का दर्जा दे दिया है।

पहली बार कानूनी मान्यता – कौन है गिग वर्कर?

पहले तो ये था ही नहीं कि गिग वर्कर किसे कहेंगे? अब कानून में साफ परिभाषा है:

  • गिग वर्कर: स्वतंत्र रूप से काम करने वाला, जो प्रोजेक्ट या अस्थायी आधार पर जुड़ा हो
  • प्लेटफॉर्म वर्कर: जो डिजिटल प्लेटफॉर्म (Swiggy, Uber, Upwork) के जरिए काम पाता हो
  • एग्रीगेटर: वो कंपनी जो प्लेटफॉर्म चलाती है

सोशल सिक्योरिटी का नया मॉडल

सबसे बड़ा बदलाव – अब ये कंपनियां सीधे कर्मचारियों के लिए फंड में योगदान देंगी:

एग्रीगेटर कंपनी का योगदान:

  • सालाना टर्नओवर का 1-2%
  • या कर्मचारी को किए गए कुल भुगतान का अधिकतम 5% (जो भी कम हो)

उदाहरण: अगर Swiggy का सालाना टर्नओवर 10,000 करोड़ है, तो वो लगभग 100-200 करोड़ रुपये हर साल अपने डिलीवरी पार्टनर्स के लिए सोशल सिक्योरिटी फंड में जमा करेगी।

पोर्टेबल बेनिफिट्स – जबरदस्त सुविधा

अब नंबर एक बात – आधार-लिंक्ड यूनिवर्सल अकाउंट नंबर (UAN) से आपका खाता पूरे भारत में एक्टिव रहेगा।

क्या-क्या मिलेगा?

  • EPF (भविष्य निधि)
  • ESIC (बीमारी का मुफ्त इलाज)
  • हादसे पर बीमा
  • मातृत्व लाभ (महिला वर्कर्स को)
  • पुरानी उम्र में पेंशन

सीनारियो: राहुल मुंबई में Uber चलाता है, 2 साल बाद चला जाता है हैदराबाद। वहां भी प्लेटफॉर्म वर्क करता है। उसका सोशल सिक्योरिटी फंड पूरा ट्रांसफर हो जाएगा, कोई नुकसान नहीं!

पहले vs अब – गिग वर्कर की कहानी

पहले की सच्चाईअब की नई व्यवस्था
कोई कानूनी हक नहींपूरी कानूनी मान्यता
दुर्घटना पर कोई मुआवजा नहींहादसा बीमा अनिवार्य
बीमार पड़ो तो काम बंद = कमाई बंदESIC से मुफ्त इलाज + सिक लीव
प्रोविडेंट फंड का सपना दूरPF में नियमित योगदान
राज्य बदलो, सब कुछ गवाओंपोर्टेबिलिटी – पूरा फंड साथ चले

ये बदलाव खासतौर पर उन लाखों युवाओं के लिए जीवन बदलने वाला है जो फ्लेक्सिबल काम पसंद करते हैं, लेकिन सुरक्षा भी चाहते हैं।


4 लेबर कोड्स का पूरा ब्रेकअप – हर कोड में क्या-क्या नया है?

अब जबकि आपने ग्रेच्युटी और गिग वर्कर्स के बदलाव समझ लिए, तो आइए देखें कि आखिर ये चार कोड्स क्या-क्या समेटे हुए हैं। ये कोड्स पुराने 29 कानूनों को चार बड़े छतरी के नीचे लाकर सब कुछ और भी साफ-सुथरा बना रहे हैं।

द वेजेस कोड, 2019 – हर कर्मचारी को न्यूनतम वेतन का हक

ये कोड चार पुराने कानूनों को मिलाकर बनाया गया है – पेमेंट ऑफ वेजेस, मिनिमम वेजेस, बोनस और इक्वल रिम्युनरेशन।

बड़े बदलाव जो आपको सीधे फायदा पहुंचाएंगे:

  • फ्लोर वेज का कॉन्सेप्ट: अब केंद्र सरकार एक बेसिक लिविंग स्टैंडर्ड तय करेगी। कोई भी राज्य इससे कम न्यूनतम वेतन तय नहीं कर सकता। यानी चाहे आप दिल्ली में काम करें या बिहार, आपको कम से कम जीवित रहने लायक वेतन तो मिलेगा ही।
  • सभी के लिए समान नियम: पहले मिनिमम वेजेस सिर्फ 30% कर्मचारियों तक ही पहुंचता था क्योंकि वो सिर्फ 'शेड्यूल्ड' इंडस्ट्रीज पर लागू होता था। अब हर कर्मचारी, चाहे वो छोटी दुकान में हो या बड़े कारखाने में, उसे न्यूनतम वेतन का कानूनी हक होगा।
  • ओवरटाइम डबल: पहले ओवरटाइम की रेट अलग-अलग होती थी। अब 8 घंटे से ज्यादा काम पर हर कर्मचारी को दोगुना वेतन मिलेगा, और वो भी सिर्फ उसकी सहमति से।
  • वेज (Wage) डेफिनिशन साफ: अब सैलरी में बेसिक, डीए और रिटेनिंग अलाउंस को मिलाकर कुल वेतन का कम से कम 50% हिस्सा 'वेज' माना जाएगा। इससे PF, ग्रेच्युटी जैसे लाभ ज्यादा बनेंगे।
  • जेंडर न्यूट्रल: कंपनी वेतन में लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकती। इसमें ट्रांसजेंडर कम्युनिटी भी शामिल है।

इंडस्ट्रियल रिलेशन्स कोड, 2020 – नौकरी की सुरक्षा और लचीलापन

ये कोड तीन कानूनों – ट्रेड यूनियन, स्टैंडिंग ऑर्डर्स और इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट्स को मिलाकर बना है।

  • फिक्स्ड-टर्म एम्प्लॉयमेंट (FTE): ये सबसे बड़ा बदलाव है। अब कंपनियां सीधे समयबद्ध अनुबंध पर लोगों को रख सकती हैं, लेकिन पूरी तरह पर्मानेंट कर्मचारी जैसे लाभ देना होंगे। मतलब समान वेतन, समान छुट्टियां, समान सोशल सिक्योरिटी।
  • री-स्किलिंग फंड: अगर कंपनी को कर्मचारी कम करना पड़े, तो उसे हर छंटनी हुए कर्मचारी के लिए 15 दिन का वेतन अलग से देना होगा, उसकी ट्रेनिंग के लिए। ये राशि 45 दिन में उसके खाते में आ जाएगी।
  • ट्रेड यूनियन रिकग्निशन: अब 51% मेंबरशिप वाली यूनियन को ऑटोमेटिक मान्यता मिलेगी। अगर कोई एक ही यूनियन इतनी सदस्यता नहीं जुटा पाती, तो 20% से ज्यादा वाली यूनियनें मिलकर 'नेगोशिएशन काउंसिल' बना सकती हैं।
  • डायरेक्ट ट्रिब्यूनल एक्सेस: अगर कोई विवाद हो, तो 90 दिन की सुलह की कोशिश के बाद सीधे इंडस्ट्रियल ट्रिब्यूनल में जाया जा सकता है। पहले ये प्रक्रिया सालों चलती थी, अब दो सदस्यों वाला ट्रिब्यूनल तेज फैसला देगा।
  • वर्क फ्रॉम होम लीगल: सर्विस सेक्टर में म्यूचुअल कंसेंट से वर्क फ्रॉम होम की इजाजत कानूनी रूप से दी गई है।

सोशल सिक्योरिटी कोड, 2020 – हर कर्मचारी का सुरक्षा कवच

ये नौ कानूनों को मिलाकर बनाया गया है, जिनमें EPF, ESIC, ग्रेच्युटी, मैटरनिटी बेनिफिट सब शामिल हैं।

  • ESIC अब पूरे देश में: पहले ESIC सिर्फ नोटिफाइड एरिया में ही लागू होता था। अब पूरे भारत में। खास बात – अगर कोई इंडस्ट्री हैजर्डस है (खतरनाक काम), तो वहां सिर्फ एक कर्मचारी होने पर भी ESIC अनिवार्य है।
  • EPF अपील में राहत: अगर नियोक्ता EPFO के ऑर्डर को चैलेंज करता है, तो उसे पहले 40-70% राशि जमा करनी पड़ती थी। अब सिर्फ 25% ही देना होगा।
  • कंस्ट्रक्शन सेस में सेल्फ एसेसमेंट: बिल्डिंग और कंस्ट्रक्शन वर्क में अब नियोक्ता खुद अपना सेस कैलकुलेट कर सकता है, पहले सरकारी अधिकारी का इंतजार करना पड़ता था।
  • निर्भरों की परिभाषा बढ़ी: महिला कर्मचारी के लिए ससुर-सास भी निर्भर में आएंगे, जिससे फैमिली बेनिफिट ज्यादा लोगों तक पहुंचेगा।
  • 5 साल की लिमिट खत्म: EPF जांच के लिए 5 साल की लिमिट लगी है, उसके बाद कोई केस खुद से नहीं खोला जा सकता।

ओक्यूपेशनल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशन्स कोड, 2020 – सुरक्षित कार्यस्थल हर कर्मचारी का अधिकार

ये 13 कानूनों को मिलाकर बनाया गया है, जिनमें फैक्ट्रीज एक्ट, माइंस एक्ट, प्लांटेशन एक्ट, कॉन्ट्रैक्ट लेबर एक्ट सब शामिल हैं।

  • एकीकृत रजिस्ट्रेशन: पहले फैक्ट्री, कॉन्ट्रैक्ट, प्लांटेशन के लिए अलग-अलग रजिस्ट्रेशन होते थे। अब सिर्फ एक रजिस्ट्रेशन, जो 10 कर्मचारी होने पर अनिवार्य है।
  • माइग्रेंट वर्कर्स के लिए पोर्टेबिलिटी: अब जो मजदूर दूसरे राज्य में काम करने जाते हैं, उन्हें साल में एक बार अपने गांव जाने का लम्प-सम ट्रैवल अलाउंस मिलेगा। उनका राशन कार्ड (PDS) और सोशल सिक्योरिटी दोनों पोर्टेबल होंगे। एक टोल-फ्री हेल्पलाइन भी होगी।
  • फ्री हेल्थ चेकअप: 40 साल से ऊपर के हर कर्मचारी को सालाना मुफ्त हेल्थ चेकअप देना अनिवार्य होगा।
  • फैक्ट्री थ्रेशोल्ड बदला: पहले 10 कर्मचारी वाली फैक्ट्री को कानून के दायरे में आना होता था। अब ये लिमिट बढ़ाकर 20 (बिजली से चलने वाली) और 40 (बिना बिजली वाली) कर दी गई है, जिससे छोटे उद्योगों को राहत मिलेगी।
  • सेफ्टी कमेटी: 500 से ज्यादा कर्मचारी वाली हर फैक्ट्री में सेफ्टी कमेटी बनाना अनिवार्य होगा, जिसमें मालिक और मजदूर दोनों के प्रतिनिधि होंगे।
  • विक्टिम कम्पेंसेशन: अगर कोई हादसा होता है और कोर्ट जुर्माना लगाता है, तो उसका कम से कम 50% पीड़ित या उसके परिवार को सीधे मिलेगा।

अब आप समझ गए होंगे कि ये चार कोड्स कैसे एक-दूसरे से जुड़कर पूरे श्रम जगत को बदल रहे हैं। हर कोड एक पहेली का एक हिस्सा है, जो मिलकर कर्मचारी के जीवन को पूरी तरह सुरक्षित बनाता है।


सेक्टर-वार लाभ – हर इंडस्ट्री में क्या खास है?

आप सोच रहे होंगे कि ये सारे बदलाव सिर्फ बड़े ऑफिस या फैक्ट्रियों तक ही सीमित हैं। बिल्कुल नहीं! चाहे आप टेक्सटाइल फैक्ट्री में काम करते हों, डॉक पर माल उतारते हों, या फिर डिजिटल मीडिया में कंटेंट बनाते हों – हर क्षेत्र के लिए कोई न कोई खास सुविधा है। चलिए, एक-एक करके समझते हैं:

IT/ITES सेक्टर – पारदर्शिता और समानता

  • सैलरी टाइमलाइन: अब IT वालों की सैलरी हर महीने 7 तारीख तक अकाउंट में होगी। पहले डेडलाइन नहीं होती थी, अब कानूनी जवाबदेही है।
  • वीमेन इन नाइट शिफ्ट: महिलाएं रात की शिफ्ट में काम कर सकती हैं, बशर्ते सुरक्षा और उनकी सहमति हो। इससे बराबरी का मौका मिलेगा।
  • समान काम = समान वेतन: एक ही प्रोजेक्ट पर कंट्रैक्ट और पर्मानेंट को अलग-अलग पे नहीं दे सकती कंपनी।

MSME – छोटे उद्योग, बड़ी राहत

  • सिंगल रजिस्ट्रेशन: पहले 6-7 अलग-अलग रजिस्ट्रेशन होते थे। अब सिर्फ एक ही जरूरी होगा।
  • न्यूनतम वेतन गारंटी: चाहे कर्मचारी 5 हों या 50, सभी को फ्लोर वेज तो मिलेगा ही।
  • कैंटीन और बेसिक सुविधाएं: 10 से ज्यादा कर्मचारी हों तो पीने का पानी, आराम करने की जगह और कैंटीन की सुविधा देना अनिवार्य।

टेक्सटाइल – माइग्रेंट वर्कर्स की जीत

  • समान वेतन: बिहार से गुजरात आए मजदूर को वही वेतन मिलेगा जो स्थानीय मजदूर को।
  • PDS पोर्टेबिलिटी: अपने गांव का राशन कार्ड गुजरात में भी चलेगा।
  • 3 साल का दावा वक्त: अगर कंपनी ने ओवरटाइम या बोनस नहीं दिया, तो 3 साल तक बाद भी दावा कर सकते हैं (पहले 1-2 साल ही लिमिट थी)।

डॉक/एक्सपोर्ट सेक्टर – कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स को पूरी सुरक्षा

  • PF-पेंशन गारंटी: चाहे आप कॉन्ट्रैक्ट पर हों, टेंपररी हों या पर्मानेंट – सभी को प्रोविडेंट फंड और पेंशन का हक।
  • अनिवार्य हेल्थ चेकअप: नियोक्ता हर साल मुफ्त मेडिकल जांच कराएगा।
  • पहचान पत्र: सभी को अपॉइंटमेंट लेटर मिलेगा ताकि सोशल सिक्योरिटी बेनिफिट्स का सबूत हो।

खदान/खतरनाक इंडस्ट्री – जान की सुरक्षा पहली प्राथमिकता

  • फ्री एनुअल हेल्थ चेकअप: 40 साल से ऊपर के हर कर्मचारी की सालाना मुफ्त जांच।
  • कम्यूटिंग ऐक्सीडेंट अब जॉब इंजरी: ऑफिस आते-जाते रास्ते में हादसा हो तो वो भी कंपनी जिम्मेदार।
  • महिलाएं सब जगह: खदानों में भी, रात की शिफ्ट में भी – सुरक्षा के साथ काम कर सकती हैं।

प्लांटेशन – पूरे परिवार की देखभाल

  • ESIC कवर: चाय बागानों के मजदूरों को भी पूरा ESIC लाभ।
  • बच्चों की पढ़ाई: कंपनी को एजुकेशन फैसिलिटी देनी होगी।
  • केमिकल ट्रेनिंग: कीटनाशक और रसायनों से बचाव के लिए मुफ्त ट्रेनिंग।

ऑडियो-विजुअल/डिजिटल मीडिया – कंटेंट क्रिएटर्स की जीत

  • जर्नलिस्ट से लेकर स्टंट पर्सन तक: इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, डिजिटल कंटेंट, डबिंग आर्टिस्ट – सभी को पूरे लेबर लॉ के तहत कवर किया गया है।
  • अपॉइंटमेंट लेटर अनिवार्य: क्लियरली डिजिग्नेशन, वेज, सोशल सिक्योरिटी का जिक्र होगा।
  • ओवरटाइम डबल: 8 घंटे से ज्यादा काम पर दोगुना पे।

दिलचस्प बात: इन 15 से ज्यादा सेक्टर्स में जो बदलाव आए हैं, वो सिर्फ कागज पर नहीं हैं। हर इंडस्ट्री के लिए अलग-अलग चुनौतियों को समझकर नियम बनाए गए हैं। मसलन, टेक्सटाइल में माइग्रेशन की समस्या थी तो PDS पोर्टेबिलिटी दी गई। खदानों में जान का खतरा था तो हेल्थ चेकअप और कम्यूटिंग कवर दिया गया।

अगले भाग में हम देखेंगे कि महिलाओं, युवाओं और उद्योगों के लिए क्या-क्या खास प्रावधान हैं जो इन कोड्स को और भी खास बनाते हैं।


महिलाओं, युवाओं और उद्योगों के लिए 'विन-विन' प्रावधान

अब तक आपने समझा कि नए लेबर कोड्स हर कर्मचारी को कैसे कवर करते हैं। लेकिन कुछ खास वर्ग ऐसे हैं जिनके लिए ये कानून और भी ज्यादा फायदेमंद बनाए गए हैं। चाहे आप महिला हों, नौकरी की तलाश में युवा हों, या छोटा उद्योग चलाते हों – हर किसी को कुछ न कुछ खास मिला है।

महिला शक्ति को असली अर्थ में मजबूती

पहले की व्यवस्था में महिलाओं के लिए कई पाबंदियां थीं, खासकर रात की शिफ्ट और खतरनाक कामों में। नए कानून ने इन सारी रुकावटों को हटा दिया है, बशर्ते सुरक्षा और सहमति मिले।

रात की शिफ्ट अब आसान:

  • अब महिलाएं रात (शाम 7 बजे से सुबह 6 बजे तक) में काम कर सकती हैं। बस शर्तें ये हैं:
    • लिखित में सहमति
    • वर्कप्लेस पर सीसीटीवी और सुरक्षाकर्मी
    • सुरक्षित आवागमन (कंपनी की जिम्मेदारी)
    • कंपनियों को सबूत देना होगा कि सुरक्षा उपाय हैं

समान काम = समान वेतन:

  • लिंग के आधार पर वेतन में भेदभाव अब कानूनन गलत है। इसमें ट्रांसजेंडर समुदाय को भी शामिल किया गया है।
  • उदाहरण: अगर कोई महिला पुरुष की तरह ही मशीन चला रही है, तो उसे वही वेतन मिलेगा।

परिवार का दायरा बढ़ा:

  • महिला कर्मचारी के लिए निर्भरों की लिस्ट में अब ससुर-सास भी शामिल हो गए हैं।
  • मतलब ESIC, PF जैसे लाभ में अब ज्यादा लोगों को कवर किया जा सकेगा।

ग्रीवेंस कमेटी में जगह:

  • हर कंपनी की शिकायत समिति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व अनिवार्य होगा, ताकि लैंगिक समस्याओं को समझा जा सके।

युवाओं के लिए – नौकरी की नई शुरुआत आसान

नए कर्मचारियों को अपना पहला कदम रखने में अब आसानी होगी। कानून ने नौकरी की शुरुआत को ही सुरक्षित बना दिया है।

अपॉइंटमेंट लेटर हर कर्मचारी का अधिकार:

  • पहले छोटी कंपनियां अक्सर लेटर नहीं देती थीं, ताकि जिम्मेदारी से बच सकें। अब हर कर्मचारी को लिखित में अपॉइंटमेंट लेटर मिलेगा, जिसमें डिजिग्नेशन, वेतन और सोशल सिक्योरिटी का पूरा ब्योरा होगा।

मिनिमम वेज गारंटीड:

  • चाहे आपकी पहली नौकरी हो, कोई भी कंपनी आपको फ्लोर वेज से कम नहीं दे सकती। ये युवाओं को शोषण से बचाएगा।

लीव का पेमेंट अनिवार्य:

  • अगर आप छुट्टी पर हैं, तो वेतन रोकना अब गैरकानूनी है। पहले कई कंपनियां इसका फायदा उठाती थीं।

डिग्निटी से जीवन का अधिकार:

  • फ्लोर वेज की व्यवस्था युवाओं को गरिमामय जीवन जीने का मौका देगी, चाहे वो किसी भी छोटे शहर में काम कर रहे हों।

उद्योगों के लिए – व्यापार आसान, जवाबदेही सुनिश्चित

कंपनियों और उद्योगों को भी कई तरह की राहतें दी गई हैं, ताकि वो बिना ज्यादा कागजी झंझट में फंसे कर्मचारियों का ध्यान रख सकें।

सिंगल रजिस्ट्रेशन, सिंगल लाइसेंस, सिंगल रिटर्न:

  • पहले 6-7 अलग-अलग रिटर्न भरने होते थे। अब सिर्फ एक ही रिटर्न। इससे 60-70% तक कम्प्लायंस बोझ कम होगा।

इंस्पेक्टर-कम-फैसिलिटेटर मॉडल:

  • पहले इंस्पेक्टर सिर्फ जुर्माना और केस करते थे। अब उन्हें 'फैसिलिटेटर' का दर्जा दिया गया है। यानी वो कंपनी को मदद करेंगे कि कैसे नियमों का पालन करना है, बजाय सिर्फ सजा देने के।

डिक्रिमिनलाइजेशन:

  • पहली बार की छोटी गलती पर अब जेल नहीं होगी। जुर्माना भरकर मामला सुलझाया जा सकता है। इससे उद्यमियों को डर कम होगा और कंप्लायंस बढ़ेगा।

छोटी फैक्ट्रियों को राहत:

  • फैक्ट्री लागू होने की लिमिट बढ़ाकर 20/40 कर्मचारी कर दी गई है, जिससे बहुत छोटे उद्योगों को राहत मिलेगी।

सेफ्टी कमेटी में भागीदारी:

  • बड़ी कंपनियों (500+ कर्मचारी) में अब सेफ्टी कमेटी बनानी होगी, जिसमें मजदूर भी अपनी बात रख सकेंगे।

इस तरह नए कानून ने एक तरफ कर्मचारियों को पूरी सुरक्षा दी है, तो दूसरी तरफ उद्योगों को भी व्यापार करने में आसानी। अगले भाग में हम देखेंगे कि इन कानूनों को लागू करने की वास्तविक प्रक्रिया क्या है और चुनौतियां क्या हो सकती हैं।


इम्प्लीमेंटेशन और टाइमलाइन – अब क्या होगा अगला कदम?

अब जबकि आप समझ चुके हैं कि नए श्रम कानून कितने बड़े बदलाव ला रहे हैं, तो सवाल उठता है – अब क्या होगा? 21 नवंबर 2025 से ये कानून लागू तो हो गए हैं, लेकिन इन्हें जमीन पर उतारना भी उतना ही अहम है।

ट्रांज़िशन फेज – पुराना और नया साथ-साथ

सरकार ने साफ किया है कि नए रूल्स बनने तक पुराने कानून भी चलते रहेंगे。 यानी अगर किसी सेक्टर में अभी तक डिटेल्ड नियामावली नहीं आई, तो वहां पुराने नियम ही लागू होंगे। इससे अचानक से किसी को परेशानी नहीं होगी।

रूल-मेकिंग प्रोसेस: हर कोड के तहत जो नियम बनेंगे, वो त्रिपक्षीय परामर्श से होंगे – मतलब सरकार, उद्योग और ट्रेड यूनियन सब मिलकर तय करेंगे कि क्या प्रैक्टिकल है। ये प्रक्रिया पहले से ही शुरू हो गई है।

डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर – टेक्नोलॉजी की भूमिका

इन कानूनों की सबसे बड़ी ताकत डिजिटल सिस्टम है। सरकार पूरी तरह ऑनलाइन प्लेटफॉर्म बना रही है:

  • सिंगल रजिस्ट्रेशन पोर्टल: एक जगह रजिस्टर करो, पूरे देश में वैध।
  • अल्गोरिदम-बेस्ड इंस्पेक्शन: अब इंस्पेक्टर अपनी मर्जी से नहीं, बल्कि कंप्यूटर जनरेटेड रैंडम चेक सिस्टम से आएंगे। इससे भ्रष्टाचार कम होगा।
  • ई-रिकॉर्ड मेंटेनेंस: सभी रजिस्टर, रिटर्न ऑनलाइन होंगे, कागज का झंझट नहीं।

बड़ी चुनौतियां जिनका सामना करना होगा

हर बड़े बदलाव के साथ चुनौतियां भी आती हैं। कुछ मुख्य चुनौतियां हैं:

राज्यों की सहमति: श्रम कानून भले ही केंद्रीय हों, लेकिन राज्य सरकारें ही इन्हें जमीन पर उतारेंगी। अगर कोई राज्य अपने स्तर पर नियम कमजोर कर दे, तो उद्देश्य पूरा नहीं होगा।

डिजिटल डिवाइड: गिग वर्कर्स में कई लोग ऐसे हैं जिनके पास स्मार्टफोन नहीं है या डिजिटल लिटरेसी नहीं। उन तक UAN लाभ कैसे पहुंचेगा, ये बड़ा सवाल है।

छोटे उद्योगों का रजिस्ट्रेशन: जिनके पास 2-5 कर्मचारी हैं, वो कंपनियां रजिस्टर करवाने से बचेंगी या नहीं? इसकी मॉनिटरिंग कैसे होगी?

कॉस्ट इम्पैक्ट: गिग एग्रीगेटर्स के लिए 1-2% टर्नओवर का योगदान बड़ा खर्च है। क्या वो इसे कर्मचारियों पर डालेंगे (कमीशन कम करके) या खुद उठाएंगे?

टाइमलाइन – अगले 6 महीने क्या उम्मीद करें?

  • दिसंबर 2025: सभी कोड्स के ड्राफ्ट रूल्स पब्लिक कंसल्टेशन के लिए आएंगे।
  • जनवरी-मार्च 2026: राज्य अपने स्तर पर नियमावली फाइनल करेंगे।
  • अप्रैल 2026: पूरी तरह से नए सिस्टम पर काम शुरू होने की उम्मीद।
  • जून 2026: पहला राउंड ऑडिट और कंप्लायंस चेक।

लेकिन याद रखिए, ट्रांज़िशन पीरियड 1-2 साल तक चल सकता है, जब तक सब नॉर्मल नहीं हो जाता।

अगले भाग में हम इसके व्यापक असर का डेटा-ड्रिवेन विश्लेषण करेंगे – कितने लोगों को असली फायदा होगा, कितना खर्च आएगा और अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ेगा।


डेटा बोलता है – असली प्रभाव कितना होगा?

अब बाती सिर्फ कानूनों की नहीं, बल्कि आंकड़ों की। क्योंकि पॉलिसी की सफलता तभी मानी जाएगी जब जमीन पर असर दिखे। तो चलिए, देखते हैं कि ये नए श्रम कानून कितने लोगों की जिंदगी बदलेंगे, उद्योगों पर क्या असर पड़ेगा और अर्थव्यवस्था को कितना फायदा होगा।

कर्मचारियों के लिए – जीत है या चुनौती?

पॉजिटिव असर:

  • 100 करोड़+ कर्मचारी शिफ्ट होंगे: अनुमान है कि अनौपचारिक सेक्टर से औपचारिक में इतने लोग शिफ्ट होंगे। मतलब अब उनको भी PF-ESIC जैसे लाभ मिलेंगे।
  • महिला वर्कफोर्स में 5-7% की वृद्धि: अभी महिला लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट (LFPR) सिर्फ 24% के आसपास है। रात की शिफ्ट, समान वेतन और सेफ्टी प्रोटोकॉल से ये 30% तक पहुंच सकता है।
  • गिग वर्कर्स को $100 बिलियन+ का बाजार: 2030 तक गिग इकॉनॉमी का आकार दोगुना हो जाएगा क्योंकि अब ये लीगिटिमेट हो गया है।

चुनौतियां:

  • लागू करने में देरी: राज्य अपने-अपने स्तर पर नियम बनाएंगे, इसमें 1-2 साल लग सकते हैं।
  • जागरूकता की कमी: ग्रामीण इलाकों के मजदूरों को पता ही नहीं चलेगा कि उनका क्या हक है।

नियोक्ताओं के लिए – फायदा या नुकसान?

फायदे:

  • 60-70% कम्प्लायंस बोझ कम: सिंगल रजिस्ट्रेशन/रिटर्न से कंपनीज़ का खर्च और समय दोनों बचेंगे।
  • फ्लेक्सिबिलिटी: FTE से कंपनीज़ अपने प्रोजेक्ट के हिसाब से लोग रख सकती हैं, बिना लॉन्ग-टर्म कमिटमेंट के।

नुकसान:

  • 15-25% लेबर लागत बढ़ोतरी: गिग सेक्टर और छोटे MSMEs के लिए PF-ESIC का खर्फा बहुत ज्यादा होगा। हो सकता है कि ये खर्चा कर्मचारियों पर डाला जाए (कमीशन कम करके)।
  • कैश फ्लो प्रेशर: हर महीने 7 तारीख तक सैलरी, ओवरटाइम डबल – इससे छोटी कंपनीज़ को कैश फ्लो मैनेज करना मुश्किल होगा।

अर्थव्यवस्था के लिए – बड़ा गेम-चेंजर

  • GDP में योगदान: औपचारिक सेक्टर बढ़ने से टैक्स कलेक्शन बढ़ेगा, जिससे सरकार के पास विकास के लिए ज्यादा पैसा होगा।
  • प्रोडक्टिविटी में 20-30% उछाल: सुरक्षित और संतुष्ट कर्मचारी ज्यादा काम करेंगे, कम गलतियां करेंगे।
  • ग्लोबल रैंकिंग में सुधार: वर्ल्ड बैंक की 'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस' रैंकिंग में भारत की रैंक सुधरेगी क्योंकि लेबर लॉ सरल हुए हैं।

डेटा की विश्वसनीयता

ये सारे आंकड़े सरकारी सूत्रों से हैं, लेकिन कुछ चीजें गायब हैं:

  • इम्प्लीमेंटेशन बजट: इतने बड़े बदलाव के लिए कितना पैसा लगेगा, ये नहीं बताया गया।
  • राज्यों की तैयारी: कितने राज्यों ने अपनी नियमावली तैयार कर ली है, इसका डेटा नहीं।
  • गिग लेवी कलेक्शन: कैसे कलेक्ट होगा ये 1-2% टर्नओवर, कौन मॉनिटर करेगा? ये साफ नहीं।

विश्वसनीयता स्कोर: 8/10 – सरकारी डेटा तो सही है, लेकिन अगर इन सवालों के जवाब भी मिल जाएं तो विश्लेषण पूरा होगा।

अगले और आखिरी भाग में हम देखेंगे कि आपको अभी क्या करना चाहिए, क्या नहीं, और इस सुधार की अंतिम तस्वीर क्या होगी।


निष्कर्ष

नए श्रम कानून असली बदलाव तभी लाएंगे जब आप अपने हक को जानेंगे और उन्हें मांगेंगे – कर्मचारियों को अपॉइंटमेंट लेटर, लिंक्ड UAN और ओवरटाइम रिकॉर्ड रखना होगा, गिग वर्कर्स को आधार से प्रोफाइल जोड़ना होगा; नियोक्ताओं को HR पॉलिसीज़ अपडेट और डिजिटल सिस्टम लगाने होंगे; और सबसे बड़ी बात, ये कानून भारत के श्रम जगत को 75 साल आगे ले जाते हैं लेकिन इसकी सफलता तभी मुमकिन है जब राज्य, कंपनियां और आप सब मिलकर इन्हें जमीन पर उतारें, इसलिए इस पोस्ट को शेयर जरूर करें ताकि हर कर्मचारी अपना हक जान सके और कमेंट में बताएं कि कौन सा बदलाव आपके लिए सबसे ज्यादा मायने रखता है, क्योंकि सही जानकारी ही असली ताकत है।


FAQS

नए श्रम कानून इतने बड़े बदलाव लाए हैं कि हर कर्मचारी और नियोक्ता के मन में कई सवाल उठ रहे होंगे। आइए, सबसे पूछे जाने वाले सवालों के जवाब देते हैं:

1: क्या 5 साल की नौकरी वाला रूल पूरी तरह खत्म हो गया?
हां, पूरी तरह! अब ग्रेच्युटी पाने के लिए सिर्फ 1 साल की नियमित सेवा जरूरी है। लेकिन ध्यान दें – आपको उस 1 साल में कम से कम 240 दिन काम करना होगा। अगर आपने इतना काम किया, तो कंपनी ग्रेच्युटी देने से नहीं बच सकती।

2: मैं स्विगी में डिलीवरी बॉय हूं, क्या मुझे PF मिलेगा?
बिल्कुल मिलेगा! नए कानून के मुताबिक, स्विगी जैसी कंपनी को अपने टर्नओवर का 1-2% हर साल सोशल सिक्योरिटी फंड में जमा करना होगा। आपका आधार-लिंक्ड UAN बनेगा, जिसमें PF, ESIC और हादसा बीमा सब मिलेगा। बस इतना ध्यान रखें कि आपका रिकॉर्ड प्लेटफॉर्म पर अपडेट रहे।

3: मैं एक छोटे शहर में 5 लोगों की कंपनी चलाता हूं, क्या मुझे ESIC करना होगा?
अगर आपका काम खतरनाक नहीं है, तो ESIC अभी अनिवार्य नहीं है। लेकिन अगर आपकी इंडस्ट्री को 'हैजर्डस' घोषित किया गया है (जैसे केमिकल वर्क), तो सिर्फ 1 कर्मचारी होने पर भी ESIC लागू होगा। वैसे, 10 से कम कर्मचारी वाली कंपनी वैसे भी ESIC में वैकल्पिक रूप से शामिल हो सकती है।

4: मैंने अपनी नौकरी 3 साल पहले छोड़ी थी, क्या मैं अभी भी ग्रेच्युटी का दावा कर सकता हूं?
अफसोस, नहीं। नया नियम सिर्फ 21 नवंबर 2025 के बाद ज्वाइन करने वालों या जारी नौकरी करने वालों पर लागू होगा। पुराने केस में पुराना ही 5 साल का नियम लागू होगा। हां, अगर आपकी नौकरी अभी भी जारी है और 1 साल पूरा हो गया है, तो आप ग्रेच्युटी का दावा कर सकते हैं।

5: मैं गर्भवती हूं, क्या नए कानून में मैटरनिटी लीव बढ़ी है?
मैटरनिटी लीव का ड्यूरेशन वही 26 हफ्ते है, लेकिन कवरेज बढ़ी है। अगर आप कॉन्ट्रैक्ट पर हैं या गिग वर्कर हैं, तो भी आपको मैटरनिटी बेनिफिट मिलेगा (एग्रीगेटर कंट्रिब्यूशन से फंडेड)। पहले ये सुविधा सिर्फ पर्मानेंट वुमन एम्प्लॉयीज को ही मिलती थी।

6: मैं मुंबई से काम करके गुजरात गया, क्या मेरा PF खाता वहीं चलेगा?
हां, बिल्कुल! आधार-लिंक्ड UAN की वजह से आपका PF खाता पूरे देश में एक जैसा काम करेगा। नए राज्य में ज्वाइन करते ही आपको नया नंबर नहीं लेना होगा, पुराना ही चलता रहेगा। इसी तरह ESIC कवर भी पोर्टेबल होगा। गुजरात में भी आपको मेडिकल सुविधा मिलेगी।

7: अगर मेरा नियोक्ता नए नियम नहीं मानता, तो मैं क्या करूं?
सबसे पहले अपने नियोक्ता को नए कानूनों की जानकारी दें। अगर फिर भी नहीं मानता, तो:

  • लेबर कमिश्नर ऑफिस में शिकायत दर्ज कराएं
  • इंडस्ट्रियल ट्रिब्यूनल में सीधे केस फाइल कर सकते हैं (90 दिन के बाद)
  • टोल-फ्री हेल्पलाइन: जल्द ही जारी होगी, जहां कॉल करके भी शिकायत दर्ज करा सकेंगे

अगर आपकी शिकायत सही पाई गई, तो नियोक्ता को जुर्माना और आपको मुआवजा दोनों मिलेगा।

8: क्या नए कानून से छोटे व्यापारियों पर ज्यादा बोझ पड़ेगा?
शुरुआत में थोड़ा खर्च बढ़ेगा, लेकिन लंबे समय में फायदा ही फायदा है। पहले तो 6-7 तरह के रिटर्न भरने में जो खर्च और समय लगता था, वो अब बचेगा। दूसरा, जुर्माने से बचने के लिए कंप्लायंस पर ध्यान देना होगा। लेकिन सरकार ने छोटी फैक्ट्रियों के लिए थ्रेशोल्ड बढ़ाकर राहत भी दी है।

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