शेख हसीना मौत की सज़ा का फैसला 17 नवंबर 2025 को बांग्लादेश की अंतरराष्ट्रीय अपराध ट्रिब्यूनल ने सुनाया। इस ऐतिहासिक फैसले में पूर्व प्रधानमंत्री को 2024 के छात्र आंदोलन के दौरान हुए नरसंहार का दोषी ठहराते हुए मृत्युदंड की सज़ा दी गई।
लेकिन यहाँ सबसे अहम सवाल ये है कि शेख हसीना कहाँ हैं? असल में यह फैसला तब सुनाया गया जब वह बांग्लादेश में मौजूद ही नहीं थीं। वर्तमान में भारत में शेख हसीना को शरण मिले हुए नई दिल्ली के एक सुरक्षित स्थान पर रह रही हैं। बांग्लादेश की अदालत के फैसले के वक्त वह भारत में थीं, जिससे यह मुकदमा अनुपस्थिति में चलाया और पूरा किया गया।
तो आइए समझते हैं कि आखिर बांग्लादेश में क्या हुआ कि एक विकास की नायिका कही जाने वाली नेता को मानवता के खिलाफ अपराधी घोषित कर दिया गया? कैसे 2024 के छात्र आंदोलन ने पूरे देश की तकदीर बदल दी? और भारत के लिए यह स्थिति क्यों एक जटिल कूटनीतिक चुनौती बनी हुई है?
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शेख हसीना का राजनीतिक उदय: बांग्लादेश की 'आयरन लेडी'
प्रारंभिक जीवन और पारिवारिक पृष्ठभूमि
शेख हसीना का जन्म 28 सितंबर 1947 को तुंगीपाड़ा में हुआ था। वे बांग्लादेश के संस्थापक राष्ट्रपति शेख मुजीबुर रहमान की सबसे बड़ी बेटी थीं। बचपन से ही राजनीतिक माहौल में पली-बढ़ी शेख हसीना ने ढाका विश्वविद्यालय से बंगाली साहित्य में मास्टर्स की डिग्री हासिल की और छात्र राजनीति में सक्रिय हुईं। उनके पिता की लोकतांत्रिक विचारधारा और जनता के प्रति समर्पण ने उनके राजनीतिक दर्शन को गहराई से प्रभावित किया।
1975 का हत्याकांड और भारत में निर्वासन
15 अगस्त 1975 को जब सैन्य तख्तापलट में उनके पिता, मां, तीन भाइयों और परिवार के अन्य सदस्यों की नृशंस हत्या कर दी गई, तो शेख हसीना अपने पति (परमाणु वैज्ञानिक एमए वाजेद मियाह) के साथ वेस्ट जर्मनी में थीं। इस दुखद घटना ने न सिर्फ उनका परिवार छीन लिया, बल्कि उनका पूरा जीवन हमेशा के लिए बदल दिया। तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें और उनकी छोटी बहन रेहाना को मानवीय आधार पर शरण दी, और वे 1981 तक भारत में निर्वासन में रहीं। ये वर्ष उनके जीवन के सबसे कठिन दौर में से एक थे, जहाँ परिवार के नुकसान का दर्द और राजनीतिक अनिश्चितता दोनों ने घेर रखा था।
1981 में वापसी और राजनीतिक उदय
31 मई 1981 को शेख हसीना वापस बांग्लादेश लौटीं और अवामी लीग की अध्यक्ष चुनी गईं। 1986 में वह संसद में तीन सीटों से जीतकर विपक्ष की नेता बनीं। 1990 के जनआंदोलन में उन्होंने सैन्य शासक हुसैन मुहम्मद एर्शाद के खिलाफ आवाज उठाई। 1996 में वह पहली बार प्रधानमंत्री बनीं और बांग्लादेश-भारत गंगा जल साझा करार जैसी महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल कीं। हालाँकि 2001 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा, लेकिन 2008 के जबरदस्त चुनावी जीत ने उन्हें फिर से सत्ता का सोपान दिया।
15 साल का कार्यकाल: विकास बनाम विवाद
2009 से 2024 तक के उनके लगातार तीन कार्यकालों में बांग्लादेश की प्रति व्यक्ति आय तिगुनी होकर $2,820 तक पहुंची, गरीबी की दर 44% से घटकर 18% हो गई, और पद्मा ब्रिज जैसी 6.15 बिलियन डॉलर की परियोजना पूरी हुई। लेकिन इसी दौरान 2018 के चुनाव में धांधली के गंभीर आरोप लगे, मीडिया पर सेंसरशिप बढ़ी, और 'डिजिटल सिक्योरिटी एक्ट' जैसे कानूनों ने विरोधियों को दबाने का हथियार बन गए। उनके और विपक्षी नेता खालिदा जिया के बीच लंबे समय तक चला राजनीतिक संघर्ष 'बैटलिंग बेगम्स' के नाम से जाना गया। इस द्वैत ने ही उनके कार्यकाल को विकास की नायिका से तानाशाही के प्रतीक में बदल दिया।
बांग्लादेश छात्र आंदोलन 2024: वो चिंगारी जो सत्ता बदल गई
शुरुआत: कोटा प्रणाली से नाराज़गी (जुलाई 2024)
बांग्लादेश छात्र आंदोलन 2024 की शुरुआत 1 जुलाई से हुई जब सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरियों में 30% भर्ती पिछड़े वर्गों के लिए रिजर्व रखने का फैसला सुनाया। छात्रों का मानना था कि यह नीति योग्यता के आधार पर नियुक्ति के सिद्धांत के खिलाफ है। ढाका विश्वविद्यालय के छात्रों ने शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन शुरू किया, लेकिन पुलिस ने 15 जुलाई को प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज और आंसू गैस का इस्तेमाल किया। यही वो मोड़ था जब एक छोटा आंदोलन धीरे-धीरे पूरे देश के युवाओं के आक्रोश में बदलने लगा।
सरकार का क्रूर दमन और हत्याकांड
अगस्त के पहले हफ्ते में जब प्रदर्शन पूरे बांग्लादेश में फैल गया, सरकार ने कठोर कार्रवाई शुरू कर दी। बांग्लादेश में क्या हुआ उस दौरान, वहाँ की पुलिस और अर्धसैनिक बलों ने प्रदर्शनकारियों पर सीधी गोलीबारी शुरू कर दी। रिपोर्ट्स के मुताबिक, सिर्फ 4 अगस्त को ही ढाका में 100 से ज्यादा छात्रों की मौत हो गई। UN की एक रिपोर्ट में बताया गया कि कुल 1,400 से अधिक लोग मारे गए, जिनमें ज्यादातर 18-25 साल के युवा थे। सरकार ने इंटरनेट बंद कर दिया, मीडिया को सेंसर किया और हजारों छात्रों को गिरफ्तार कर लिया।
अबु सईद की हत्या: वो पल जब सब बदल गया
16 जुलाई को रंगपुर में छात्र नेता अबु सईद की पुलिस गोली से मौत पूरे आंदोलन का टर्निंग पॉइंट बनी। जब वह निहत्थे प्रदर्शन कर रहे थे, तब सुरक्षा बलों ने उन्हें सीने में गोली मार दी। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और लाखों छात्र सड़कों पर उतर आए। अब सिर्फ कोटा की मांग नहीं, बल्कि शेख हसीना के इस्तीफे की मांग होने लगी। लोगों ने "तुमि के?" (तुम कौन हो?) का नारा देना शुरू कर दिया, जो हसीना के खिलाफ सीधे प्रहार का प्रतीक बना।
5 अगस्त 2024: सत्ता के भवन से भागना
5 अगस्त 2024 को लाखों प्रदर्शनकारियों ने गणभवन (PM आवास) की ओर मार्च किया। सेना ने साफ कर दिया कि वह प्रदर्शनकारियों पर गोली नहीं चलाएगी। दोपहर 3 बजे शेख हसीना हेलिकॉप्टर से भागकर भारत के लिए रवाना हो गईं। बांग्लादेश में क्या हुआ उसके बाद - लोगों ने गणभवन में घुसकर उनकी तस्वीरें तोड़ीं, उनके आधिकारिक आवास को आग लगा दी और खाली कुर्सी पर जूते मारे। उनकी 15 साल की सत्ता का अंत केवल 30 दिनों के छात्र आंदोलन ने कर दिया। बांग्लादेश के इतिहास में यह पहली बार था जब छात्रों के आंदोलन ने एक सत्ताधीश को सीधे भगा दिया।
शेख हसीना कहाँ हैं? भारत में निर्वासन की वास्तविकता
दिल्ली में सुरक्षित आवास
शेख हसीना कहाँ हैं - इस सवाल का जवाब आज भी नई दिल्ली के एक गुप्त स्थान पर है। 5 अगस्त 2024 को जब वह बांग्लादेश से भागीं, तो भारत सरकार ने तुरंत उन्हें सुरक्षा और आवास मुहैया कराया। सूत्रों के अनुसार, वह दिल्ली के एक सरकारी बंगले में रह रही हैं, जहाँ उनकी बेटी साइमा वाजेद और बेटा सजीब वाजेद जॉय भी उनके साथ हैं। यह स्थान सुरक्षा एजेंसियों की सघन निगरानी में है और वहाँ मीडिया या बाहरी व्यक्तियों की आवाजाही पूरी तरह प्रतिबंधित है।
Z+ सुरक्षा: भारत का कूटनीतिक दांव
भारत सरकार ने शेख हसीना को भारत में शेख हसीना को शरण देते हुए Z+ श्रेणी की सुरक्षा प्रदान की है। इसमें NSG कमांडोज, दिल्ली पुलिस की स्पेशल ब्रांच और खुफिया एजेंसियों की 24 घंटे निगरानी शामिल है। भारत का यह कदम सिर्फ मानवीय नहीं, बल्कि कूटनीतिक रणनीति भी है। बांग्लादेश भारत का महत्वपूर्ण पड़ोसी और रणनीतिक साझीदार है, लेकिन शेख हसीना भारत के लिए भी एक जटिल मुद्दा बनी हुई हैं। उन्हें सुरक्षा देकर भारत ने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार को चिढ़ाया है, साथ ही अपने रणनीतिक हितों को भी देखा है।
बांग्लादेश का प्रत्यर्पण अनुरोध
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार, जो डॉ. मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में काम कर रही है, ने कई बार भारत से शेख हसीना भारत में निर्वासन खत्म करने और उन्हें प्रत्यर्पित करने की मांग की है। बांग्लादेश के विदेश मंत्री ने सार्वजनिक रूप से कहा, "कोई भी देश अपराधी को शरण नहीं देना चाहिए।" लेकिन भारत ने अभी तक साफ जवाब नहीं दिया है। भारत का कानून कहता है कि मौत की सज़ा पाने वाले व्यक्ति को शरण नहीं दी जा सकती, लेकिन शेख हसीना का मामला अंतरराष्ट्रीय राजनीति से जुड़ा है।
भारत-बांग्लादेश संबंधों पर असर
भारत में शेख हसीना को शरण देने से दोनों देशों के संबंधों में तनाव आ गया है। बांग्लादेश ने सीमा पर तस्करी, पानी के बंटवारे और व्यापारिक मुद्दों पर भारत से सहयोग कम करने के संकेत दिए हैं। भारत को यह डर भी है कि अगर शेख हसीना को बांग्लादेश भेजा गया तो वहाँ की राजनीति में और अस्थिरता आ सकती है। दूसरी ओर, अगर भारत उन्हें लंबे समय तक रखता है, तो बांग्लादेश के साथ उसके आर्थिक और रणनीतिक संबंध खराब हो सकते हैं। यही वजह है कि भारत इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए है और समय की प्रतीक्षा कर रहा है।
शेख हसीना मौत की सज़ा: 17 नवंबर 2025 का ऐतिहासिक फैसला
अंतरराष्ट्रीय अपराध ट्रिब्यूनल का फैसला
17 नवंबर 2025 को बांग्लादेश की अंतरराष्ट्रीय अपराध ट्रिब्यूनल (ICT) ने शेख हसीना मौत की सज़ा का ऐलान किया। यह फैसला 2024 के छात्र आंदोलन के दौरान हुए नरसंहार से जुड़ा था। तीन सदस्यीय पीठ ने 400 पेज का विस्तृत फैसला सुनाया, जिसमें कहा गया कि "पूर्व प्रधानमंत्री ने जानबूझकर और सुनियोजित तरीके से निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर हमले का आदेश दिया।" इसके साथ ही पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमान खान को भी मौत की सज़ा हुई।
आरोपों की सूची: नरसंहार से साक्ष्य छुपाना
शेख हसीना ताज़ा खबर में जो आरोप सामने आए, वे बेहद गंभीर थे:
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6 जुलाई से 5 अगस्त 2024 तक प्रदर्शनकारियों पर सत्ता संभाले हुए आर्म्ड फोर्सेस, पुलिस और अवामी लीग के छात्र विंग को नरसंहार के लिए उकसाना
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हेलीकॉप्टर और ड्रोन से भीड़ पर गोलीबारी का सीधा आदेश
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छात्र नेता अबु सईद सहित 6 प्रमुख कार्यकर्ताओं की हत्या का षड़यंत्र
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मृतकों के शवों को छुपाने और साक्ष्य नष्ट करने के लिए जलाने का प्लान
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अस्पतालों को प्रदर्शनकारियों का इलाज करने से रोकना
ट्रिब्यूनल ने कहा कि ये सभी कार्य मानवता के खिलाफ अपराध की श्रेणी में आते हैं और इसके लिए मौत की सज़ा न्यायसंगत है।
अनुपस्थिति में सुनाई गई सज़ा
शेख हसीना कहाँ हैं, ये बात फैसले के वक्त भी मुख्य मुद्दा थी। क्योंकि वह भारत में निर्वासित हैं, पूरा मुकदमा अनुपस्थिति में चलाया गया। उनके वकीलों ने ट्रिब्यूनल में उपस्थिति से इनकार कर दिया था, क्योंकि उन्हें "निष्पक्ष सुनवाई" पर संदेह था। ट्रिब्यूनल ने कहा, "अनुपस्थिति में सुनवाई अंतरराष्ट्रीय कानून की अनुमति है जब अभियुक्त जानबूझकर अदालत से बचता हो।" लेकिन मानवाधिकार संगठनों ने इस प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं, क्योंकि बिना बचाव पक्ष के फैसला संदेह के घेरे में है।
UN और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
यूएन के मानवाधिकार प्रमुख वोल्कर तर्क ने शेख हसीना ताज़ा खबर पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "मौत की सज़ा पर गंभीर चिंता है, खासकर जब प्रक्रिया पारदर्शी न हो।" अमेरिका ने कहा, "हम निष्पक्ष सुनवाई की अपेक्षा करते हैं।" चीन ने चुप्पी साधी। यूरोपीय संघ ने फैसले को "राजनीतिक प्रेरित" बताया। भारत ने अभी तक कोई औपचारिक बयान नहीं दिया, लेकिन सूत्रों का कहना है कि भारत इसे बांग्लादेश का आंतरिक मामला मान रहा है।
आगे क्या होगा? तीन संभावित रास्ते
संभावना 1: भारत से प्रत्यर्पण (कम संभावना)
शेख हसीना कहाँ हैं और कहाँ रहेंगी, इसका पहला सवाल प्रत्यर्पण का है। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार लगातार भारत से मांग कर रही है कि भारत में शेख हसीना को शरण खत्म की जाए और उन्हें वापस भेजा जाए। लेकिन भारत के लिए यह आसान नहीं है। भारत का कानून कहता है कि मौत की सज़ा पाने वाले व्यक्ति को शरण नहीं दी जा सकती। लेकिन शेख हसीना का मामला अंतरराष्ट्रीय राजनीति से जुड़ा है। अगर भारत उन्हें बांग्लादेश भेजता है, तो यह संदेश जाएगा कि भारत अपने पुराने सहयोगियों को ही नहीं बचा सकता। इसलिए विशेषज्ञों का मानना है कि प्रत्यर्पण की संभावना कम है।
संभावना 2: तीसरे देश में शरण (यूरोप की कोशिश)
शेख हसीना ताज़ा खबर के मुताबिक, उनके परिवार ने कई यूरोपीय देशों से शरण की अपील की है। फिनलैंड, स्वीडन और बेल्जियम में उनके समर्थक सक्रिय हैं। लेकिन यूरोपीय संघ के देश मौत की सज़ा का विरोध करते हैं, इसलिए वहाँ शरण मिलना मुश्किल है। अगर बांग्लादेश की अदालत सज़ा को उम्रकैद में बदलती है, तो संभावना बढ़ सकती है। लेकिन फिलहाल, शेख हसीना भारत में निर्वासन से बाहर जाने के लिए कोई सुरक्षित विकल्प नहीं दिख रहा।
संभावना 3: लंबे समय तक भारत में निर्वासन
सबसे ज्यादा संभावना यही है कि शेख हसीना भारत में निर्वासन में ही रहेंगी। भारत उन्हें एक सीमित स्थिति में रख सकता है, जहाँ वह सार्वजनिक राजनीति से दूर रहें, लेकिन सुरक्षित रहें। ऐसा नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेन्द्र, मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति नशीद जैसे नेताओं के साथ हो चुका है। भारत के लिए यह विकल्प सबसे सुरक्षित है - बांग्लादेश को नाराज नहीं करता और अपने रणनीतिक हितों को भी बचाए रखता है।
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार का दबाव
बांग्लादेश में क्या हुआ उसके बाद बनी अंतरिम सरकार लगातार भारत पर दबाव बना रही है। उन्होंने UN में भी इस मुद्दे को उठाया है। लेकिन भारत का कूटनीतिक दृष्टिकोण यह है कि यह बांग्लादेश का आंतरिक मामला है और अंतरिम सरकार को अपना काम करने दें। इसलिए दबाव के बावजूद, भारत में शेख हसीना को शरण जारी रहने की संभावना अधिक है।
निष्कर्ष: एक युग का अंत, लोकतंत्र की नई शुरुआत
शेख हसीना की कहानी एक चेतावनी और सबक दोनों है। चेतावनी इस बात की कि सत्ता का कितना भी लंबा समय हो, अगर जनता से संबंध टूट जाए तो पतन अपरिहार्य है। और सबक यह कि बांग्लादेश छात्र आंदोलन 2024 ने दुनिया को दिखाया - लोकतंत्र को बचाने की ताकत युवाओं में है।
तीन सबक जो हम सीख सकते हैं:
- सत्ता का दुरुपयोग हमेशा महंगा पड़ता है: 15 साल के शासन का अंत मौत की सज़ा और निर्वासन में हुआ
- लोकतंत्र कोई स्थायी व्यवस्था नहीं: लगातार संघर्ष और सतर्कता की जरूरत होती है
- भूराजनीति जटिल है:भारत में शेख हसीना को शरण दिखाता है कि दोस्ती और न्याय के बीच संतुलन बनाना आसान नहीं
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)
1. शेख हसीना को मौत की सज़ा क्यों हुई?
17 नवंबर 2025 को बांग्लादेश की अंतरराष्ट्रीय अपराध ट्रिब्यूनल ने शेख हसीना मौत की सज़ा सुनाई। इसका मुख्य कारण बांग्लादेश छात्र आंदोलन 2024 के दौरान हुए नरसंहार को मानवता के खिलाफ अपराध माना गया। आरोपों में हेलीकॉप्टर और ड्रोन से प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी का आदेश, 6 छात्र नेताओं की हत्या और साक्ष्य छुपाना शामिल था।
2. शेख हसीना अभी कहाँ हैं?
शेख हसीना कहाँ हैं इसका जवाब है - नई दिल्ली, भारत। वह 5 अगस्त 2024 से भारत में शेख हसीना को शरण मिले हुए एक सुरक्षित आवास में रह रही हैं। भारत सरकार ने उन्हें Z+ सुरक्षा प्रदान की है। वह बांग्लादेश से दूर हैं, जिसकी वजह से मुकदमा अनुपस्थिति में चलाया गया।
3. बांग्लादेश में 2024 में आखिर हुआ क्या था?
बांग्लादेश में क्या हुआ - ये सवाल हर किसी के मन में है। जुलाई 2024 में कोटा प्रणाली के खिलाफ छात्रों ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन शुरू किया। लेकिन सरकार के क्रूर दमन ने इसे राष्ट्रव्यापी आंदोलन बना दिया। 1,400 से ज्यादा लोग मारे गए। 5 अगस्त को लाखों प्रदर्शनकारियों के दबाव में शेख हसीना भारत में निर्वासन के लिए मजबूर हो गईं।
4. भारत शेख हसीना को शरण क्यों दे रहा है?
भारत में शेख हसीना को शरण देने के पीछे कई कारण हैं। पहला, 1975 में जब उनके परिवार की हत्या हुई थी, तब भारत ने उन्हें शरण दी थी। दूसरा, बांग्लादेश भारत का महत्वपूर्ण रणनीतिक साझीदार है, लेकिन शेख हसीना के साथ भारत के पुराने संबंध हैं। भारत चाहता है कि मौत की सज़ा के मामले को पहले सुलझा लिया जाए। इसलिए भारत एक कूटनीतिक संतुलन बनाए हुए है।
5. शेख हसीना का भविष्य क्या है? क्या उन्हें बांग्लादेश वापस भेजा जाएगा?
शेख हसीना मौत की सज़ा मिलने के बाद उनका भविष्य अनिश्चित है। तीन रास्ते हैं:
- भारत से प्रत्यर्पण - लेकिन मौत की सज़ा की वजह से कम संभावना
- तीसरे देश में शरण - मुश्किल
- लंबे समय तक भारत में निर्वासन - सबसे ज्यादा संभावना। शेख हसीना भारत में निर्वासन में ही रहेंगी, जब तक कानूनी और कूटनीतिक हल नहीं निकलता।