वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा कोई भी उम्मीदवार वहां पर दिखाई नहीं दे रहा था| यहां तक की हर कोई यही मान रहा था कि नरेंद्र मोदी का मुकाबला करना किसी के बस की बात नहीं हैं. लेकिन वाराणसी में तब जाकर सियासी माहौल बदल जाता है.जब वहां पर बीएसएफ के बर्खास्त फौजी तेज बहादुर निर्दलीय तौर पर नामांकन भरने जाते हैं|
इसके अलावा वाराणसी से नरेंद्र मोदी के सामने विपक्ष के तौर पर कांग्रेस छोड़ समाजवादी पार्टी का दामन थामने वाली शालिनी यादव वाराणसी से सपा की उम्मीदवार थी| समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार शालिनी यादव एक मजबूत विपक्ष के रूप में बिल्कुल भी नहीं दिखाई दे रहे थी | तेज बहादुर जो वहां से निर्दलीय नामांकन भरने जाते हैं.तब अचानक ही अखिलेश यादव को एक मजबूत उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के लिए दिखाई पड़ता है| अखिलेश यादव अपने उम्मीदवार शालिनी यादव को वहां से हटाकर बीएसएफ के रिटायर जवान तेज बहादुर को सपा का उम्मीदवार घोषित कर देते हैं. और तेज बहादुर वहां से नामांकन भी भरते हैं सब कुछ बिल्कुल सही चल रहा था मुकाबला कड़ा होने जा रहा था.
लेकिन आप तो भली-भांति इस बात से परिचित हैं कि नामुमकिन अब मुमकिन है बिल्कुल यही वाक्य तेज बहादुर के साथ भी होता है| समाजवादी पार्टी से नामांकन भरने के बाद चुनाव आयोग तेज बहादुर से पूछती हैं कि पहले आप ने निर्दलीय तौर पर दावेदारी की थी और अब समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं| चुनाव आयोग के मुताबिक तेज बहादुर ने निर्दलीय तौर पर जब नमांकन भरा था तो उस समय जानकारी कुछ और दी थी. जब समाजवादी पार्टी की तरफ से नामांकन भरा था उस नामांकन में जानकारी कुछ और दी थी. यह तो रही चुनाव आयोग की बात लेकिन क्या तेज बहादुर का नामांकन रद्द करना लोकतांत्रिक रूप से बिल्कुल सही है. जब वहां पर लग रहा था कि तेज बहादुर नरेंद्र मोदी का फर्जी राष्ट्रवाद का पर्दाफाश कर सकते हैं नरेंद्र मोदी के लिए मुसीबत बीएसएफ के रिटायर्ड जवान तेज बहादुर यादव खड़ी कर सकते हैं| तभी चुनाव आयोग हरकत में आ जाती है|
चुनाव आयोग को एक बात सोचनी चाहिए कि जब वह प्रज्ञा ठाकुर को चुनाव लड़ने दे सकती है जोकि आतंकवादी गतिविधि में पूर्ण रूप से शामिल थी ,अयोध्या कांड में हिंदू मुस्लिम दंगे में भी पूर्ण रूप से लिप्त थी और वह अभी भी स्वीकार करती है कि उसने बाबरी मस्जिद ढाया था. लेकिन जब बीजेपी का उम्मीदवार ऐसा कुछ करता है तब चुनाव आयोग कुंभकरण की तरह 6 महीने की गहरी नींद में चली जाती है.बीजेपी के उम्मीदवार के अलावा और कोई कुछ गलत करता है तो चुनाव आयोग तुरंत कुंभकरण की नींद से जाग कर उसका नामांकन रद्द कर देती है.मगर बीजेपी उम्मीदवार का कहीं भी कोई नामांकन रद्द नहीं होता| उनको तो चुनाव लड़ने दिया जाता है. जब केवल थोड़ी सी गलती बीजेपी के उम्मीदवार के अलावा और कोई कर देता है. तब उसका नामांकन रद्द कर दिया जाता है तेज बहादुर का कहना है कि यह पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट लेकर जाएंगे| क्योंकि इस पूरे मामले में नरेंद्र मोदी का मुख्य हाथ है उनका नामांकन रद्द करवाने का| तेज के मुताबिक चुनाव आयोग मोदी के हाथों की कठपुतली बन चुकी है|

