मृत्यु एक कड़वी सच्चाई है और मृत्युदंड उससे भी कड़वा सच है। जब पूरे विश्व मे यह बहस चल रही है कि मृत्युदंड का प्रावधान रखा जाए या नही वहीं समाज मे एक तबका मृत्युदंड के लिए अपनाए जाने वाले तरीकोंं की समीक्षा करने का आग्रह भी कर रहा है।
संगीन अपराधों के लिए अदालत मृत्युदंड का फैसला सुनाती है पर सरकार और न्यायपालिका की कोशिश होती है कि किसी को मृत्युदंड भी मिले तो ऐसा कि उसे कम से कम तकलीफ़ हो।
भारत मेंं मुख्यतः फाँसी द्वारा ही मृत्युदंड दिया जाता है। सुप्रीम कोर्ट में 2017 में इसके विरुद्ध एक जनहित याचिका दायर हुई जिसमें फाँसी से मृत्युदंड देने की समीक्षा करने की बात कही गई। याचिकाकर्ता ऋषि मल्होत्रा का मानना है कि फाँसी एक क्रूर तरीका है जिसमें मरने वाले को बहुत पीड़ा होती है इसलिए इसे किसी ऐसी दंड विधि से बदल देना चाहिए जो कम पीड़ादायक हो।