वेद वाणी
रथ चक्र के समान धन की स्थिति चलायमान है, ये धन एक से दूसरे, तीसरे के पास आता जाता रहता है!
(पृणीयादिन्नाधमानाय तव्यान्द्राघीयांसमनु पश्येत पन्थाम्!
ओ हि वर्तन्ते रथ्येव चक्रान्यमन्यमुप तिष्ठति र
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