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आख़िरकार भारत और पाकिस्तान सरकार को श्रद्धालुओ का दर्द नज़र आ ही गया, दूरबीन से करतारपुर साहिब के दर्शन के दिन पुरे हो गए समझो । प्रकाश पर्व से एक दिन पूर्व करतारपुर कॉरिडोर को भारत सरकार की ओर से हरी झंडी दे दी गई है। मगर कोई भी बड़ा फैसला हो और राजनीत उबाल न मारे ऐसे कैसे हो सकता है? 2019 मे होने वाले राजनैतिक महा-दंगल का हिस्सा भर तो बनकर नहीं रेह जायेगा यह फैसला? क्यों पाकिस्तान कर रहा है इस संबंध का बेसब्री से इंतज़ार?
सिक्ख समुदाय की बात करे थो इनका कांग्रेस या बीजेपी दोनों से छतीस का आंकड़ा इतिहास से चला आरहा है। पाकिस्तान में रावी नदी के तट पर मौजूद गुरुद्वारा करतारपुर साहिब तक पहुंचने वाला रास्ता कांग्रेस और बीजेपी दोनों सवारने में जुटे हुए है। इससे पहले कांग्रेस कि पंजाब सरकार में मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने पाकिस्तान के प्रधान मंत्री इमरान खान से मुलाकात कर कॉरिडोर खोलने पर रज़ामंदी ली थी जिसके बाद सिद्धू को बीजेपी से खरी-कोटि सुननी पड़ी थी।
आने वाले चुनाव पर पकड़ सख्त करने के लिए बीजेपी ने बड़ा दाव खेल ही लिया, गुरुवार को केंद्र मंत्री हरसिमरत कौर ने सारा क्रेडिट आकाली दाल और केंद में स्थित भारतीय जनता पार्टी की झोली में डाल दिया। मुद्दे की बात तो यह है कि क्यों पाकिस्तान कर रहा है सिक्ख श्रद्धालुओ की चिंता? क्या चाहता है पाकिस्तान भारत से बदलेमे ? कौन सी नयी चिंगारी लगाए गा यह मुद्दा भारत की शोला सी राजनीत पर?
किसे आप मानते है करतारपुर कॉरिडोर खुलवाने का हीरो, कांग्रेस या बीजेपी ? कमेंट करके बताये
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