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मेघनाथ दशानन यानी रावण का पुत्र था। मेघनाथ स्वर्ग जीत चुका था। मेघनाथ का एक नाम इंद्रजीत भी था। उसको ब्रम्हा जी ने यह नाम दिया था। मेघनाथ ने इंद्र देव पर जीत हासिल की थी इसलिए उनका नाम इंद्रजीत रखा गया था। मेघों को आड़ में युध्य करने के कारण उनका नाम मेघनाथ पड़ा था।
मेघनाथ की पत्नी का नामसुलोचनाथा। सुलोचना शंकर भगवान के गले में लिपटे वासुकी नाग की बेटी थी। सुलोचना परम पतिव्रता नारी थी। सुलोचना अति सुंदर थी। मेघनाथ सुलोचना की सुंदरता को देख के मोहित हो गए थे। वासुकी नाग ने अपनी पुत्री का विवाह रावण के बेटे के साथ संपन्न किया क्योकि उस समय मेघनाथ जैसा पराक्रमि तीनो लोको में कही नही था और मेघनाथ को कई वरदान भी प्राप्त थे। वासुकी ने इन सभी बातो को ध्यान में रखते हुए यह फैसला लिया था।
जब युध्य के दोरान मेघनाथ का वध हुआ तो राम जी ने लक्ष्मण जी से उनका सिर धरती पर गिरने से रोकने को कहा। क्योकि मेघनाथ एक नारी था। यदि मेघनाथ का सिर धरती पर गिर जाता तो भयानक विस्फोट हो जाता और राम जी की सारी सेना मारी जाती। राम जी कहे अनुसार लक्ष्मण जी ने बाणों के जरिये मेघनाथ का सिर धरती पर नही गिरने दिया और बाणो के साथ उसे ठहरा दिया। मेघनाथ की एक भुजा को लक्ष्मण जी ने लंका में सुलोचना तक पहुँचाया।
सुलोचना पतिव्रता नारी थी उसने मेघनाथ की भुजा को देख वह व्याकुल हो गई और राम जी के पास पहुँच गई । मेघनाथ के सिर को हाथो में ले के वह लंका पहुँची और चंदन की चिता बना कर मेघनाथ का सिर हाथ में ले के चिता में बैठ गई और उसी के साथ सती हो गई।
मेघनाथ का वध करने की शक्ति विश्व में किसी के पास नही थी। वह बेहद पराक्रमि था।वह पितृभक्त था। मेघनाथ ने अपने पिता रावण के सीता हरण में उसका साथ दे के अपनी मृत्यु को लिख दिया था। कर्मो की वजह से मेघनाथ को मृत्यु प्राप्त हुई।
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