संकट चतुर्थी व्रत क्यों जरुरी होता है और इसका क्या महत्व है ? - letsdiskuss
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Ramesh Kumar

Marketing Manager | पोस्ट किया | ज्योतिष


संकट चतुर्थी व्रत क्यों जरुरी होता है और इसका क्या महत्व है ?


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Blogger | पोस्ट किया


हिन्दू धर्म में कई सारे भगवान हैं, जिनका अपना एक निश्चित दिन होता है । हिन्दू धर्म में भगवान गणेश ऐसे होते हैं जिनका पूजन सर्व प्रथम किया जाता है चाहे पूजा किसी भी भगवान की परन्तु गणेश जी सबसे पहले पूजा जाता है । आज हम बात कर रहे हैं संकट चतुर्थी व्रत की और इस व्रत के महत्व की ।


जैसा कि आपको तिथियों के बारें में पहले भी बताया गया है । हिन्दू कैलेंडर के हिसाब से 15 दिन की तिथियां होती है, जिसके बाद पूर्णिमा और अमावश्या आती है और महीना बदल जाता है । तो भगवान गणेश को चतुर्थी तिथि के देवता के रूप पूजा जाता है। इसलिए मान्यता कहती है कि प्रत्येक महीने में आने वाली चतुर्थी गणपति पूजन के लिए सही और उत्तम है। इस साल संकट चौथ 13 जनवरी 2020 को है । यह व्रत महिलाएं अपने बच्चों की लंबी उम्र की कामना के साथ रखती है । यह व्रत पूर्णतः निर्जला होता है और इस व्रत में भगवान गणेश जी का पूजन पूरे विधि विधान के साथ किया जाता है ।


Letsdiskuss (इमेज-यूट्यूब)


पूजा विधि :-

संकट चौथ में गणेश जी का पूजन किया जाता है और इस तिथि में गणेश जी को भालचंद्र नाम से भी पूजा जाता है। इस दिन व्रत लेने के लिए महिलाओं को सुबह जल्दी उठकर स्नान करना होता है और उसके बाद रोजाना की तरह पूजन और पूरा दिन भी बिना कुछ खाए और पीये रहना होता है । इसके बाद शाम के समय लकड़ी के पटरे पर लाल कपड़ा बिछाकर मिट्टी के गणेश एवं चौथ माता की तस्वीर लगाकर उनका पूजन करना होता है। रोली, मोली, अक्षत, फल, फूल से पूरी श्रद्धा और भावना के साथ पूजन करना होता है ।

अब इस व्रत में सबसे महत्वपूर्ण है भोग जो कि तिल और गुड़ से बने लड्डू होते हैं । गणेशजी एवं चौथ माता को इस व्रत में प्रसन्न करने के लिए तिल और गुड़ के लड्डू चढ़ाए जाते हैं और उसके बाद तांबे के लोटे में जल भरकर उसमें लाल चन्दन, कुश,फूल और अक्षत डाला जाता है और उसके बाद चन्द्रमा को वह जल चढ़ाया जाता है । उसके बाद घी का दिया जलाकर कथा पढ़ें , हवन और उसके बाद आरती करें । इस तरह पूजन को संपन्न करें ।

कथा :-
एक बार देवता कई सारी परेशानी में घिरे हुए थे। इसलिए वो मदद मांगने भगवान शिव के पास आए। उस वक़्त शिव के साथ उनके दोनों पुत्र कार्तिकेय और गणेश बैठे थे। देवताओं की बात सुनकर शिव जी ने अपने दोनों पुत्रों से पूछा तुम दोनों में से कौन देवताओं के कष्टों को दूर कर सकता है । यह सुनकर कार्तिकेय व गणेश जी दोनों ने इस काम में खुद को सक्षम बताया। दोनों की बात सुनकर शिव ने उनकी परीक्षा लेते हुए कहा कि तुम दोनों में से जो भी सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके वापस आएगा वो देवताओं की मदद करेगा । इतना सुनते ही कार्तिके अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा करने चले गए परन्तु गणेश कुछ विचार करने लगे और सोचा अगर मैं इस चूहे पर परिक्रमा करूँगा तो बहुत समय लग जाएगा ।

फिर गणेश जी को एक उपाय आया और वह अपने स्थान से उठे उठे और अपने माता-पिता की सात परिक्रमा करके वापस बैठ गए। कार्तिके जी अब पृथ्वी की परिक्रमा करके वापस लौटे तो खुद को विजय समझ कर कहा मैं जीत गया क्योकिं मैंने पृथ्वी के चक्कर लगा लिए हैं । अब शिवजी ने गणेशजी से पृथ्वी की परिक्रमा के स्थान पर उनके और पार्वती जी की परिक्रमा का कारण पूछा तो गणेश जी ने कहा -'माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक हैं । गणेश जी की इस बात पर शिव ने उन्हें विजय घोषित किया और उन्हें देवताओं की विपदा दूर करने का आदेश दिया ।



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