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नरेंद्र मोदी के पिछले ट्रैक रिकॉर्ड पर गौर फरमाएं तो आप पाएंगे कि उन्हें सवालों का सामना करना पसंद नहीं। उनके राजनीतिक कौशल के आगे सभी मीडियाकर्मी फेल हो जाते हैं। मोदी की राजनीति की अपनी शैली है। उनका मीडिया प्रबंधन अचूक और अभेद्य होता है लेकिन उसी मीडिया के सवालों से वो बचना चाहते हैं। नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय होने के बाद जिस तरह मीडिया का चरित्रहनन हुआ है, वो सबने देखा है।
आज अधिकांश न्यूज़ चैनल नरेंद्र मोदी और सरकार की चरणवंदना या यूं कहें कि चाटुकारिता में व्यस्त हैं। किसी में साहस नहीं कि सरकार के विरुद्ध आलोचनात्मक पत्रकारिता करे या सरकार की नाकामियों को उजागर करे। ऐसा लगता है जैसे मोदी प्रधानमंत्री नहीं परमात्मा हो। इस दौर में भी रविश कुमार भारतीय पत्रकारिता का एक ऐसा चेहरा है, जिसे अब तक खरीदा या प्रभावित नहीं किया जा सका है।
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