वैसे तो देखा जाये किसी भी त्यौहार पर जानवर की कुर्बानी देना सही नहीं हैं | चाहे वो किसी भी धर्म का त्यौहार हो पर जानवर की कुर्बानी सही नहीं हैं | फिर भी ईद के दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती हैं | पहले तो आपको बताते हैं, कि बकरीद कब मनाई जाती हैं | बकरीद को ईद-उल-अजहा भी कहा जाता हैं |
धू-अल-हिजाह जो इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार आखिरी महीना होता है, उस आखरी माहिए के 8 दिन से हज शुरू होकर उसी महीने के 13 दिन खत्म होता है, और ईद-उल-अजहा इस इस्लामिक महीने के बीच की 10 तारीख को मनाया जाता है | हमारे कैलेंडर के हिसाब से बकरीद की तारीख कभी भी बदलती रहती हैं |
बकरीद मानाने का विशेष कारण पैगंबर हजरत इब्राहिम का अल्लाह के प्रति की जाने वाली इबादत से हैं | कह सकते हैं, कि बकरीद पैगंबर हजरत इब्राहिम द्वारा अल्लाह के लिए अपने बेटे इस्माइल की दी कुर्बानी की याद में मनाया जाता हैं | पैगंबर हजरत इब्राहिम अल्लाह पर बहुत विश्वाश करते थे, एक बार अल्लाह ने उनकी परीक्षा लेने के लिए उनसे कहा कि वो अगर अल्लाह को मानते हैं, तो अपनी सबसे कीमती चीज़ की बलि दें |
पैगंबर हजरत इब्राहिम को अपने बेटे इस्माइल से बहुत प्यार था | वह अपने बेटे की बलि देने के लिए तैयार हो गए | जब वो इस्माइल की बलि दे रहे थे तब उन्होंने अपने आँखों में पट्टी बाँध ली ताकि वो अपने बेटे को देख कर भावुक न हो जाएं | उनकी अल्लाह के प्रति यह भावना देख कर कुर्बानी के लिए उनके बेटे की जगह एक बकरा वहाँ आ गया और उसकी बलि दी गई |
तब से लेकर अब तक ईद के दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती हैं | वैसे ईद भी 2 बार आती हैं, एक मीठी ईद भी होती हैं |
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(Courtesy : Lokmatnews.in )