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शिक्षा और लोकतंत्र का एक ऐसा संबंध है, जो कि एक-दूसरे पर निर्भर करता है। लोकतंत्र का अर्थ है-- लोगों द्वारा, लोगों के लिये, और लोगों पर शासन की व्यवस्था। ज़ाहिर है कि यदि लोग शिक्षित ही नहीं होंगे तो लोकतांत्रिक व्यवस्था की सफलता की उम्मीद करना भी बेमानी है।
एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता को उसके वाज़िब अधिकार और स्वतंत्रतायें प्राप्त होती हैं। पर यदि हम अपने इन अधिकारों और स्वतंत्रताओं के प्रति जागरूक ही न होंगे, तो उनका स्वस्थ इस्तेमाल भी नहीं कर सकते। इसलिये हमारी शिक्षा-व्यवस्था ऐसी होनी चाहिये जो हमें अपनी शक्तियों के प्रति सचेत बनाये।
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सवाल है कि क्या हमारी वर्तमान शिक्षा-प्रणाली लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत करने में सक्षम है! क्या यह हमें हमारे जनतांत्रिक अधिकारों और स्वतंत्रताओं के प्रति जागरूक करती है! क्या आज की हमारी शिक्षा-व्यवस्था हमें एक लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत अपने नागरिक अधिकारों के प्रति सचेत करती है! और फिर, क्या हम सबकी पहुंच एक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक समान रूप से है!
हालांकि इसमें दो राय नहीं कि आज की लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत हम सबको समान रूप से निःशुल्क शिक्षा प्राप्त करने की सुविधा उपलब्ध है। पर क्या उसकी गुणवत्ता भी समान रूप से सबको उपलब्ध है! यकीनन ऐसा नहीं है। पैसे वाले लोगों के बच्चों को बेशक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल सकती है, पर सार्वजनिक तौर पर जो शिक्षा की व्यवस्था है उसमें निश्चित रूप से अभी काफ़ी सुधार की ज़ुरूरत है। और हमारी सरकारों को अविलंब इस ओर ध्यान देना चाहिये।
ताकि एक लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत हम सबकी पहुंच समान रूप से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक सहज हो सके। साथ ही हमारी शिक्षा-प्रणाली हमें अपने नागरिक अधिकारों के प्रति भी सचेत करे। क्योंकि जब तक हम एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में अपनी स्थिति के प्रति जागरूक नहीं होंगे, तब तक इस प्रणाली की सफलता की उम्मीद नहीं की जा सकती।
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