जी हां...!
जहां तक मुझे लगता है कि उद्धव ठाकरे अपने राजधर्म से विमुख हो गए है। वैसे इसकी शुरुवात तो उनके मुख्यमंत्री बनने के साथ ही हो गई थी क्युकी जनता ने उनकी पार्टी को वोट बीजेपी के साथ रहने में दिया था और एनसीपी कांग्रेस के साथ रहने पर नहीं। तब उन्होने जनता के विस्वास को ठुकरा दिया और अपना निजी स्वार्थ देखा।
अपने इस फैसले के बाद उन्होंने बालासाहेब के आदर्शो को भी खो दिया। जो बला साहेब हिन्दुत्व का बहुत बड़ा चेहरा थे उनकी पार्टी की सरकार में पालघर जैसा कांड हो जाता है। और अपराधियों के खिलाफ कोई कार्रवाई भी नहीं हुई शायद स्वर्ग में बालासाहेब की आत्मा भी दुखी होगी।
तो इस हिसाब से उद्घव अपने पुत्र धर्म का पालन करने में पहले ही असफल हो गए।
अब मै आप सभी का ध्यान गुजरात दंगो की ओर ले जाना चाहूंगा जिसमे किसी एक समुदाय अपने आप को असुरक्षित महसूस कर दिया था तब अटल विहरी बाजपेई जी ने उस समय के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को राजधर्म का पालन करने की सलाह दी थी।
और उन्होंने भी बाजपई जी को राजधर्म का पालन करने का आश्वासन दिया था। कोर्ट ने नरेंद्र मोदी को निर्दोष भी माना।
उद्घव अपने निजी स्वार्थ और पुत्र मोह से अधिक कुछ नहीं सोच पा रहे। जिस शिव सेना की एक क्षेत्रीय पार्टी होने के बावजूद इज्जत थी उसकी इज्जत आज उद्घव ने खराब करी। और मुझे तो सबसे बड़ी बात बहुत सारे मुद्दों में तो महाराष्ट्र सरकार में उनकी सहयोगी पार्टी एनसीपी भी उनके विमुख है। आज महाराष्ट्र में आम आदमी को तो छोड़ो सेलेब्रिटी,सेना, मीडिया, विपक्ष, और मुझे लगता है कि शिवसेना के कुछ कार्यकर्ता भी अपने आप को भी सुरक्षित नहीं महसूस करते।