महाराष्ट्र में घटनाओं की वर्तमान हमे यह सोचने पर मज़बूर करती है कि भाजपा की अगुवाई वाली राज्य सरकार को अपने कर्तव्यों के बारे में याद दिलाने के लिए जो भी मुस्लिम समुदाय शिक्षा और नौकरी के अवसरों में भेदभाव के लिए कदम उठा रहा है वह सही है या नहीं | इसपर मेरी यह राय है कि यह सही नहीं है | लेकिन मुझे नहीं पता कि किस हद तक उन्हें दोष देना सही होगा, क्योंकि इस देश में एक मूक विरोध से कोई फर्क नहीं पड़ता है और इस भेदभाव के खिलाफ विरोध जरुरी भी है |
बीजेपी के शासन में जिस हद तक अल्पसंख्यक समुदाय पीड़ित हैं, वह किसी से छुपा हुआ नहीं है। इससे पहले, केंद्र ने अल्पसंख्यक समुदायों में विश्वविद्यालयों में Mphil और PhD पाठ्यक्रमों में आरक्षण से इंकार कर दिया था, और अब महाराष्ट्र में, सरकार मुसलमानों और मराठों को आरक्षण देने से इंकार कर रही है जबकि पिछली कांग्रेस की अगुआई वाली राज्य सरकार द्वारा उन्हें आरक्षण देने का वादा किया गया था |
यह भी पढ़े :-मानव जीवन में शिक्षा का क्या महत्व है ?
द्वारका में प्रदर्शनकारियों ने मराठों के लिए 16% आरक्षण और मुसलमानों के लिए 5% आरक्षण की मांग की। कुछ प्रदर्शनकारियों के मुताबिक, उच्च न्यायालय कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है क्योंकि वर्तमान सरकार इस मामले में कोई दिलचस्पी नहीं ले रही है।
अधिकारियों की उदासीनता के कारण, नासिक की मुस्लिम विकास आंदोलन संघ समिति को सड़को पर आकर अपने अधिकारों की मांग करनी पड़ रही है |
Translated from English by Team Letsdiskuss
Loading image...