पिछले कुछ सालो से देश में अर्थव्यवस्था को लेकर एक अजीब सा माहौल बना हुआ है। सरकार के पास अच्छे वित्त मंत्री और अनुभवी इकोनॉमिस्ट की कमी साफ दीख रही है। गिरते हुए रुपये को लेकर एक समय UPA सरकार को घेरनेवाले आज सत्ता में बैठे है और उन्हें अर्थव्यवस्था में सुधार के कोई कदम समज नहीं आ रहे है। इसी लिए देश में कश्मीर और अन्य मसलो को लेकर सरकार अपने सामने खड़ी मुसीबत को पीछे टालने की कोशिश में लगी है।
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वित्त मंत्री ने हाल ही में रियल एस्टेट में और निवेश और बैंको के मर्जर की बात की पर उस से भी मामला कहाँ सुलझने वाला है। छोटे छोटे बिज़नेस लगभग ख़त्म हो चुके है और बड़ी बड़ी कंपनियों को ताले लग रहे है। बेरोजगारी के आंकड़े सरकार घोषित नहीं कर पा रही है और इन्फ्लेशन को काबू में लेने की जगह उसके कैलकुलेशन को ही बदल दिया गया है। ऐसे में लगता है की देश को सिर्फ भगवान भरोसे छोड़ सत्ता में बैठे लोग पब्लिक को दूसरे मसलो में उलझा कर अपनी सत्ता बचाने में जुटे है और अपनी जिम्मेदारी से बचने के नए नए रास्ते खोज रहे है। देश को पांच ट्रिलियन की इकॉनमी बनाने के दावे करनेवाली सरकार रोजगारी के बारे में कोई योजना घोषित नहीं कर पा रही है, सही में देश में अच्छे दिन चल रहे है।