कवन सो काज कठिन जग माही जो नहीं होय तात ...

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| Updated on February 3, 2024 | Education

कवन सो काज कठिन जग माही जो नहीं होय तात तुम पाही का अर्थ क्या है?

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@komalsolanki9433 | Posted on February 2, 2024

गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरित्रमानसके हर खंड को एक माला मे पिरोया है। तुलसीदास जी ने रामचरित्रमानस ग्रंथ 2 वर्ष, सात माह और 26दिनमे लिखा था।गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित्रमानस के हर खंड को विस्तार पूर्वक बताया है। उन्ही खंडों में से एक है -

कवन सो काज कठिन जग माही , जो नही होय तात तुम पाही।

यह कथन उस समय का है जब जामवंत, हनुमान जी और अंगद माता सीता की खोज करने दक्षिण के समुद्र किनारे पहुँचे थे।

समुद्र को देख कर जामवंत, अंगद और हनुमान जी विचार में पड़ गए के आगे माता सीता को कैसे ढूंढा जाए।

तभी जामवंत जी ने हनुमान जी को स्मरण करवाया के वह बचपन मे बड़े ही नटखट और शरारती हुआ करते थे। शरारत में ही उन्होंने सूर्य देव को भी खा लिया था।

और उन्ही शरारतो की वजह से उन्होंने तपस्वियो के यज्ञ मे भी बधाये उत्पन्न की थी। जिसकी वजह से ऋषि भृंगवंश ने उन्हे श्राप दे दिया था के वह अपनी शक्तियों को भूल जायेंगे। और उन्हे अपनी शक्तियों का आभास किसी और के याद दिलाने के बाद ही आयेगा।

तब जामवंत जी ने इस कथन -कवन सो काज कठिन जग मोही, जो नही होई तात तुम पाहि।

को कहते हुए समझाया के - दुनिया का ऐसा कोई कार्य नही है जो आपके लिए असंभव हो। आप अंजनीपुत्र हो, आप पवन पुत्र हो, बुद्धिमान हो, बलवान, बलशाली हो। भगवान राम जी के लिए ही आपका जन्म हुआ है

इस कथन को सुनते ही हनुमान जी को अपनी सारी शक्तियों का स्मरण हो गया और वह अपनी शक्तियों को याद करके समुद्र के ऊपर उड़ते हुए माता सीता को ढूढने निकल पड़े और माता सीता को ढूंढते हुए लंका तक पहुँच गए ।

हनुमान जी की शक्तियों की वजह से लंका नरेश भी हार गए थे और एक वानर की शक्तियों को देखकर हैरान हो गए थे।

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