विवाह में वर-वधू के गुण मिलान में नाड़ी का महत्त्व सर्वाधिक माना जाता है। 36 गुणों में से नाड़ी के लिए सबसे अधिक 8 गुण निर्धारित हैं।आज जोड़ियां बनाने में कुंडली मिलान करना जरूरी नहीं माना जाता, लेकिन इस प्रकार कई बार अनजाने में ऐसी भी जोड़ियां बन सकती हैं जो हर प्रकार से जीवन में दुखों का सामना करते हैं। इन्हीं में एक है वर-वधू की कुंडली में ‘नाड़ी दोष’ का होना। नाड़ी दोष वैवाहिक जीवन की शुभता या इसमें अशुभ स्थितियां पैदा करता है।
नाडियां तीन होती हैं-आद्य,मध्य और अन्त्य। इन नाडियों का संबंध मानव की शारीरिक धातुओं से है। वर-वधू की समान नाड़ी होने पर दोषपूर्ण माना जाता है तथा संतान पक्ष के लिए यह दोष हानिकारक हो सकता है। शास्त्रों में यह भी उल्लेख मिलता है कि नाड़ी दोष केवल ब्रह्मण वर्ग में ही मान्य है। समान नाड़ी होने पर पारस्परिक विकर्षण तथा असमान नाड़ी होने पर आकर्षण पैदा होता है।
क्या है नाड़ी दोष?
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ब्रह्मांड में कुल 27 नक्षत्र माने गए हैं और इन 27 नक्षत्रों को 3 नाड़ियों में बांटा गया है - आदि, मध्य तथा अंत्य। कुंडली मिलान करते हुए अगर वर-वधू दोनों ही आदि-आदि, मध्य-मध्य अथवा अंत्य-अंत्य में आएं, तो उनके साथ को नाड़ी दोष युक्त माना जाता है।
