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मोनालिसा के चित्र को मूल्यवान बनाने के लिए जो सबसे बड़ी चीज जिम्मेवार है वह है लियोनार्डो दा विंची का आत्म चित्रण. मोनालिसा किसी जिंदा चरित्र का नाम नहीं बल्कि दा विंची की कल्पना थी. एक ऐसी कल्पना जिसकी वजह से मोनालिसा सिर्फ एक तस्वीर नहीं बल्कि सजीव लगती है.
इस चित्र के चित्रकार दा विंची का कला के साथ साथ विज्ञान से भी गहरता नाता था. उन्होंने इस तस्वीर में दिव्य अनुपात या सुनहरे अनुपात के सिद्धांत का पालन करते हुए ऐसी तस्वीर उकेरी जिसमें मनभावन चेहरा लगता है, चाहे आप इसे चेतन मन से दृष्टि डालें अथवा अवचेतन मन से. इस तस्वीर में ये अनुपात स्पष्ट नजर आता है.
इसके अलावा इस तस्वीर की रहस्यमयी मुस्कान भी इसे अमूल्य बनाती है. मोनालिसा की इस मुस्कान ने कई सालों से शोधकर्ताओं और कला के पारखियों को उलझा कर रखा है. किसी को ये रहस्यमयी मुस्कान लगती है तो किसी को नखरे वाली मुस्कराहट.
अगर इस मुस्कान में रहस्य है तो कौन सा रहस्य है और अगर नखरा है तो किस बात का नखरा है. मोनालिसा की यह मुस्कान निष्क्रिय दर्शकों को भी सक्रिय बना देती है.
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