नमस्कार अनीता जी , आप जानना चाहते है के नृत्य भी अनेकता मे एकता का भाव लाता है | तो आपको बता दे के भारत में कई धर्म के लोग रहते है ,कई संस्कृति के लोग है जिनका धर्म जात एक दूसरे से अलग है मगर फिर भी नृत्य एक ऐसी चीज है जो धर्म,जात और संस्कृति से अलग है | नृत्य किसी भी देश का हो उसको देख कर इंसान को ख़ुशी ही मिलती है |
भारत का नाम आते ही देश मे विविधता मे एकता का भाव आ जाता है | भारत जैसे अनेके व्यंजन ,अनेक सभ्यता संस्कृति है, अलग रीति रिवाज है ,फिर भी भारत मे सब माने जाते है और सब एक दूसरे के रीति रिवाजो को मानते है ,यही कुछ बाते अनेकता मे एकता को बताती है | और इन सबमे भारतीय नृत्य बहुत मान्यता रखता है | भारत मे नृत्य बहुत ही खास है | हर देश का अपना एक लोक नृत्य जरूर होता है |
नृत्य का इतिहास :-
मानव इतिहास जितना ही पुराना है। इसका का प्राचीनतम ग्रंथ भरत मुनि का नाट्यशास्त्र है। लेकिन इसके उल्लेख वेदों में भी मिलते हैं, जिससे पता चलता है कि प्रागैतिहासिक काल में नृत्य की खोज हो चुकी थी। इस काल में मानव जंगलों में स्वतंत्र विचरता था। धीरे-धीरे उसने समूह में पानी के स्रोतों और शिकार बहुल क्षेत्र में टिक कर रहना आरंभ किया- उस समय उसकी सर्वप्रथम समस्या भोजन की होती थी- जिसकी पूर्ति के बाद वह हर्षोल्लास के साथ उछल कूद कर आग के चारों ओर नृत्य किया करते थे। ये मानव विपदाओं से भयभीत हो जाते थे- जिनके निराकरण हेतु इन्होंने किसी अदृश्य दैविक शक्ति का अनुमान लगाया होगा तथा उसे प्रसन्न करने हेतु अनेकों उपायों का सहारा लिया- इन उपायों में से मानव ने नृत्य को अराधना का प्रमुख साधन बनाया।
आज भी हमारे समाज में नृत्य- संगीत को उतना ही महत्व दिया जाता है कि हमारे कोई भी समारोह नृत्य के बिना संपूर्ण नहीं होते। भारत के विविध शास्त्रीय नृत्यों की अनवरत शिष्य परंपराएँ हमारी इस सांस्कृतिक विरासत की धारा को लगातार पीढ़ी दर पीढ़ी प्रवाहित करती रहेंगी।
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