हर चुनावी वर्ष में आने वाले आम बजट पर सभी टकटकी लगाए देखा करते हैं। आम आदमी, प्रेस, कारोबारी और विपक्षी पार्टियां सभी की इसमें दिलचस्पी होती है।
मौजूूदा सरकार के लिए ये मौका होता है आखरी बार हाथ पैर मार लिया जाए और अंधेरे में कुछ तीर छोड़े जाएं जिनमे से कोई एक भी अगर ठिकाने लग जाये तो सत्ता वापिस उनके हाथ लग जायेगी।
भारत मे गरीबों, महिलाओं और खासकर ग्रामीणों को लुभाने में जो पार्टी सफल होती है, सत्ता का ताज उसके सिर ही होता है। इसलिए पार्टियां कोशिश करती हैं कि उनकी सारी योजनायें इन्ही के आस-पास घूमें।
सरकार इस मौके का इस्तेमाल जनता को कुछ लॉलीपॉप देने की लये भी करती हैं।
कुछ लुभावनी योजनाओं का ऐलान होता है जो सिर्फ झुंझनु बन कर कागजों और सदन की दीवारों से बाहर नहीं आ पाती।
मौजूदा सत्ता मोदी जी की है और बजट से ठीक पहले जैसा कि अनुमान लगाया जा रहा था वैसा ही कुछ देखने को मिला। उनकी सरकार ने ग्रामीणों और आम आदमी के बजट की तरह ही इसे project किया जोकि सरासर गलत है, धोका है आपके साथ।
आपके कर के साथ खेल जाता है और आपके वोट देने के अधिकार का मज़ाक उड़ाया जाता है।
अंतरिम बजट एक trend decider का काम करता है। और सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।