पुलिस वालों द्वारा सरेआम कुत्तों की तरह पीटना, पिटाई करने के बाद उसका वीडियो सोशल मीडिया में पुलिस वालों द्वारा वायरल कर देना. लोगों को यह संदेश दिया जाता है कि अगर आप बाहर निकलेंगे तो आपको भी इसी तरह कुत्ते की तरह पीट-पीटकर अधमरा कर दिया जाएगा.आपको क्या लगता है?.हमारा संविधान इतना कमजोर है जो ऐसी घिनौनी हरकत को संवैधानिक रूप से उचित ठहराएगा, बिल्कुल भी नहीं... पुलिस वालों द्वारा लोगों को बुरी तरह से लाठी डंडों से पीटना यह संविधानिक रुप से बिल्कुल भी उचित नहीं हो सकता है. पुलिस वालों की इस हरकत को बर्बरता कहा जाए तो बिल्कुल भी गलत नहीं है.
लाकडाउन में आपको पुलिस वालों द्वारा लोगों को पीटने के कई वीडियो सोशल मीडिया पर दिखाई देते होंगे. वीडियो में पुलिस वाले किसी व्यक्ति को इस तरह पीट रहे होते हैं जैसे वह एक अपराधी है,जिस वजह से समाज में एक अलग ही डर का माहौल बना हुआ है. हर कोई पुलिस की इस तरह की कार्यवाही से खौफ के माहौल में जी रहा है. इसे आप डर कहें या लॉक डाउन के दिनों में जबरदस्ती कानून का पालन कराने का नियम कहें.जिस कानून को डर पैदा करके पालन करवाया जाता है वह कभी कानून नहीं होता.
अगर कोई राशन लेने या सब्जी लेने भी जाता है तो उसको इस बात का डर लगा होता है..कहीं पुलिस वाले हमला ना कर दे. मेरा मानना है कि इस तरह डर का माहौल कायम करके कानून का पालन नहीं करवाया जाना लाठी-डंडों से जख्मी करना संवैधानिक रूप से बिल्कुल भी उचित नहीं है.
अभी का ताजा मामला पंजाब के पटियाला का है जहां पर एक सिख निहंग ने पंजाब पुलिस के एएसआई पर तलवार से हमला कर दिया उस हमले की वजह से उस पुलिस वाले का हाथ कट गया. यह घटना इस बात का संकेत देती है कि पुलिस के मनमानी की वजह से बौखलाए सिख निहंग ने उन पुलिसवालों पर हमला कर दिया, वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि निहंग द्वारा बैरीगेटस तोड़ने के बाद 5 से 6 पुलिसवाले गाड़ी पर लाठी-डंडों की बरसात करने लगते हैं. यानी कि काम वही हो रहा था जो हम बाकी की वीडियो में पुलिस वालों द्वारा लोगों को पीटने का वीडियो देखते आ रहे हैं इस वीडियो में फर्क सिर्फ इतना आ गया कि सीखने अंगने बौखला कर अकेले ही तलवार लेकर ताबड़तोड़ सभी पुलिस वालों पर हमला कर दिया. इस तरह का हादसा इस बात का संकेत दे रहा है पुलिस वालों ने जिस तरह आज लोगों के मन में डर पैदा कर दिया है कई लोग डर की वजह से एकदम बोखला जाते हैं और पुलिस वालों पर ही हमला कर देते हैं. ऐसे भी व्यक्ति होते हैं जो पुलिस वालों पर भी हमला कर सकते हैं.
हाल ही में मध्य प्रदेश के ग्वालियर में तीन पुलिसवालों द्वारा लाकडॉउन का फायदा उठाते हुए एक पत्रकार से भीड़ गए पत्रकार ने भी अपनी ड्यूटी करने का परिचय दिया. बस फिर क्या था तीनों पुलिस वालों ने पत्रकार के साथ बुरी तरीके से मारपीट की और उसको जख्मी कर दिया मगर यहां पर बात पत्रकार की थी पत्रकारों ने मिलकर उन पुलिसवालों के खिलाफ कार्यवाही की बात की बाद में इन तीनों पुलिसवालों को सस्पेंड कर दिया गया.
दिल्ली में पुलिस वालों द्वारा आजतक के एग्जीक्यूटिव एडिटर को इस तरह पीटा गया जैसे कि वह एक आतंकवादी हो. बात यह नहीं है कि लाकडाउन है,बात यह है कि लॉकडाउन के दिनों में आप किसी को भी नहीं बख्श रहे हैं,आम जनता की तो बात अलग रही, वह पत्रकार जो मेहनत से अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं जान जोखिम में डालकर खबरें इकट्ठठी कर रहे हैं उनको भी पुलिस वाले अपनी दादागिरी दिखाना नहीं छोड़ रहे हैं.
दिल्ली के ही आया नगर इलाके में सब्जी लेने गए एक 12 वर्ष के बच्चे और 25 वर्ष के व्यक्ति पर लाठी-डंडों के साथ स्वागत कर दिया पुलिस वाले व्यक्ति को थाने ले गई और 12 वर्ष के बच्चे को बुरी तरह से पीट कर उसको छोड़ दिया.उस बच्चे का हाथ जख्मी हो गया. इन दिनों में पुलिस वाले लोगों को जख्मी तो कर दे रहे हैं समस्या यह आ रही है कि जख्मी हुआ व्यक्ति अगर जाए तो इलाज करवाने कहां जाए.तो संवैधानिक रूप से पुलिस वालों के इस रवैया को उचित कैसे ठहराया जा सकता है.
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