क्या भारत में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना मुश्किल है? - letsdiskuss
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Marketing Manager (Nestle) | पोस्ट किया |


क्या भारत में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना मुश्किल है?


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pravesh chuahan,BA journalism & mass comm | पोस्ट किया


इस दुनिया में कोई भी कार्य मुश्किल नहीं है बस जरूरत होती है उस पर सही रूप से ध्यान देने की. सोशल डिस्टेंसिंग रखना लोगों के लिए बहुत ज्यादा जरूरी है मगर उतना ही ज्यादा जरूरी है हमारी सरकार को लोगों को वह सुविधाएं उपलब्ध करवानी चाहिए ताकि कोई भूख की वजह से तंग होकर सड़कों पर ना आना पड़े .सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना बहुत ही ज्यादा मुश्किल कार्य है क्योंकि दूरी ना बना रख पाने के भी कई कारण है जिस वजह से इसमें भारत के लोगों का कोई कसूर भी नहीं है.. अचानक ही नोटबंदी हो जाती है उस वक्त भी लोगों में अफरा तफरी देखने को मिलती है. और अब लाकडाउन की घोषणा होती है तब भी लोगों में नोटबंदी की ही तरह अफरा तफरी देखने को मिलती है. सोशल डिस्टेेंसिंग ना रख पाने की मुख्य वजह कहीं ना कहीं हमारे सरकार की उचित रूप से तैयारी ना होना है.

पहले जानते हैं क्या है सोशल डिस्टेंसिंग का अर्थ:-
अमेरिका के सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल के अनुसार सोशल डिस्टैंसिंग का अर्थ ये है कि, ‘लोग सामूहिक आयोजनों से दूर रहें, भीड़ के रूप में इकट्ठे न हों और जहां तक संभव हो, अन्य लोगों से कम से कम छह फुट की दूरी बना कर रखें’. यानी की सामाजिक अलगाव और सामाजिक विरक्ति से इतर सोशल डिस्टैंसिंग का अर्थ केवल शारीरिक दूरी बनाने से है. और इसका ये मतलब बिल्कुल नहीं हैं कि लोग एक दूसरे से जज़्बाती तौर पर दूरी बना लें.


सोशल डिस्टेंसिंग ना रख पाने की मुख्य वजह:-

भारत के लोग कुछ ज्यादा ही भावी होते हैं. वह किसी बात को समझने में बहुत समय लगाते हैं क्योंकि उन्हें अपनी जरूरत के आगे कोई वायरस फायरस नहीं दिखता.24 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा वाले संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि कोरोना से लड़ने के लिए सोशल डिंस्टेंसिंग एकमात्र रास्ता है. उनकी घोषणा हुई.उसके बाद काफी संख्या में लोग जरूरत का सामान लेने के लिए सड़कों पर इकट्ठे हो गए यानी कि लोगों ने इस बात सोचना और समझना जरूरी नहीं समझा आखिर यह तालाबंदी क्यों की गई है. लाकडाउन क्यों लगाया गया है. लोगों को मतलब था तो सिर्फ अपनी जरूरत का सामान लेने का..यानी कि राशन लेने का... इसके अलावा किसी ने कुछ भी नहीं सोचा किसी ने यह भी नहीं सोचा था कि इसकी वजह से संक्रमण का खतरा और ज्यादा बढ़ सकता है. प्रधानमंत्री ने सिर्फ घर में रहने की बात कही थी जरूरत का सामान बैन करने की बात नहीं की थी मगर लोग अफरा तफरी करने लगे..


लाकडाउन के बाद जितने भी प्रवासी लोग थे वह लोग अपने अपने प्रदेश जाने के लिए पैदल ही निकल पड़ते हैं. मुंबई, पंजाब, दिल्ली गुजरात, राजस्थान इन सभी जगहों पर रह रहे प्रवासी लोग यूपी,बिहार,झारखंड,बंगाल के लिए हजारों किलोमीटर की दूरी पैदल ही करने तय करने लगते हैं.हजारों की संख्या में लोग अपने-अपने गांव जाने के लिए सड़कों पर जमा हो जाते है. किसी भी व्यक्ति को इस बात की परवाह नहीं थी कि उनकी इस हरकत की वजह से वायरस का प्रकोप बढ़ सकता है. जिससे कई लाख लोग संक्रमित भी हो सकते हैं. यहां पर सोशल डिस्टेंसिंग नहीं रखने का कारण यह था कि दूसरे राज्यो में मेहनत मजदूरी कर रहे लोगों के पास किराया देने के लिए पैसा नहीं था, राशन के लिए पैसा नहीं था जिस वजह से वह लोग पैदल ही जाना उचित समझ रहे थे.

नरेंद्र मोदी द्वारा लाकडाउन की सीमा बढ़ाए जाने पर लोग सड़कों पर एक बार फिर जमा हो जाते हैं. उनको उम्मीद होती है कि मोदी जी जरूर गरीबों के लिए कुछ ना कुछ राहत प्रदान करने वाली खबर जरूर देंगे मगर ऐसा नहीं होता है और अबकी बार उनका कहना होता है कि हमारे पास खाने को राशन नहीं है सरकार किसी भी तरह से हमारी मदद नहीं कर रही है हम लोग बहुत परेशान हैं फंसे हुए हैं. भूखे मर रहे हैं अगर सरकार कुछ नहीं करना चाहती तो कम से कम हमें अपने घर तो भेज दीजिए. अब यहां पर सोशल डिस्पेंसिंग इसलिए नहीं रखा गया क्योंकि इसमें सरकार द्वारा पर्याप्त मात्रा में लोगों को सुविधाएं उपलब्ध ना करवाना है जिस वजह से तंग होकर लोगों ने सड़कों पर विरोध चालू कर दिया.

सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं हो पाने की मुख्य वजह एक ही कमरे में 5 लोगों का रहना भी है. एक सर्वे में पाया गया कि भारत की 40% जनता के पास घर के नाम पर केवल एक कमरा ही है. यह सर्वे 2011 की जनगणना में किया गया था. अब साधारण सी बात है कि हमारे देश में एक परिवार में कम से कम 5 लोगों की संख्या तो जरूर होती ही है मान लीजिए एक कमरे में 5 लोग रह रहे हैं उनमें से एक वायरस से संक्रमित है उसके साथ चार लोगों को भी वायरस हो सकता है यहां पर एक दूसरे से दूरी इसलिए नहीं बनाई जा सकी.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, अगर किसी परिवार का एक सदस्य कोरोना वायरस से संक्रमित हो जाए या उसमें इसके लक्षण हों तो संक्रमित मरीज को एक अकेले साफ सुथरे हवादार कमरे में रखना चाहिए. मरीज को उसी कमरे तक सीमित रखना चाहिए और परिवार के सदस्यों को दूसरे कमरों में रहना चाहिए. इसे आइसोलेशन कहते हैं.अगर यह संभव नहीं हो तो संक्रमित मरीज से कम-से-कम एक मीटर की दूरी रखने की अनुशंसा की गई है.भारतीय परिवारों में, संक्रमित मरीज को एक अलग कमरे में रखना ही बेहद मुश्किल है और झुग्गी बस्तियों वाले इलाकों में तो इसे लागू करना असंभव ही लगता है.....क्योंकि इनके पास रहने के लिए एक ही कमरा है.अगर कोई व्यक्ति कोरोना वायरस से संक्रमित मरीज की वजह से संदिग्ध भी पाया जाता है तो उसको टेस्ट की रिपोर्ट आने तक एकांतवास में रहने की सलाह दी जाती है. अब एक कमरा है तो वह आदमी भला आइसोलेट कैसे. एक ही कमरा होने की वजह से यह सब मुमकिन ऐसे लोगों के लिए नहीं है.यह भी एक बहुत बड़ा कारण है एक दूसरे से दूरी ना बना पाने की.


मुंबई में कई ऐसे इलाके हैं जहां पर झुग्गियों के लोगों को पानी लेने के लिए 200 मीटर से 1 किलोमीटर तक दूरी तय करनी पड़ती है. और वहां पर पानी लेने के लिए लाइन लग जाती है अब ऐसी परिस्थिति में अगर सामाजिक दूरी का ध्यान रखना बहुत जरूरी है अगर इन्हीं के बीच पानी लेने वाला व्यक्ति कोक रोना वायरस है और वह पानी वाले पाइप को हाथ लगा रहा है. उसके बाद दूसरा व्यक्ति पानी भरने के लिए उस पाइप को हाथ लगाता है तो वह भी उस व्यक्ति के संपर्क में आ सकता है पानी लेने की ऐसी वजह से भी वायरस हो सकता है और ऐसी जगह में भी समाजिक दूरी बनाए रखना और असंभव है.

यह सभी कारण इस बात का सबूत दे रहे हैं कि सोशल डिस्टेंसिंग ना रख पाने की मुख्य वजह सरकार की नाकामियां है. अगर सरकार पर्याप्त मात्रा में लोगों को सुविधाएं उपलब्ध करवाएं तो सामाजिक दूरी रख पाने में कुछ सफलता पाई जा सकती है. यानी कि लोगों के पास सुविधाएं होंगी तो वह खुद सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करेगा.अगर कोई भूखा मर रहा होगा तो जाहिर सी बात है कि ऐसे लोग तो सड़कों पर विरोध करेंगे ही.

Letsdiskuss


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Blogger | पोस्ट किया


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश भर में जारी लॉक डाउन को तीन मई तक बढ़ा दिया है, मंगलवार 14 अप्रैल को उन्होंने यह घोषणा की. ताज़ा घोषणा के मुताबिक लोगों को कुल मिलाकर 40 दिन तक सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना होगा.

मंगलवार की प्रधानमंत्री की लॉक डाउन 19 दिनों के लिए और बढ़ाने की घोषणा के समय भारत में वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या 10 हज़ार से ऊपर चली गई है.

यह कदम कोविड-19 संक्रमण के कम्युनिटी ट्रांसमिशन पर कारगर ढंग से अंकुश लगाने के उद्देश्य से उठाया गया. जब लॉकडाउन की शुरुआत हुई थी तब भारत में संक्रमित मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी थी.

24 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा वाले संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जोर देते हुए कहा था, “कोरोना से लड़ने के लिए सोशल डिंस्टेंसिग एकमात्र रास्ता है.”हालांकि उनकी घोषणा के बाद लोगों में पैनिक का भाव दिखा, लोग जरूरत का सामान खरीदने बड़ी संख्या में सड़कों पर उतर आए.



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Occupation | पोस्ट किया


जी हाँ बिल्कुल भारत मे कोरोना महामारी क़ो गंभीरता से कोई नहीं लेता है, लोगो क़ो लगता है कि कोरोना महामारी बीमारी नही फैली है इसलिए वह सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना जरूरी नहीं समझते है। लेकिन कोरोना महामारी अभी भी कई देशो मे फैली हुयी है और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना सभी के लिए जरूरी है क्योंकि यदि आप सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं करेंगे तो कोरोना महामारी फैलती ही चली जाएगी।Letsdiskuss


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