आप लोग रोज पुलिसवालो द्वारा लाठी-डंडों से लोगों को पीटे जाने की वीडियो तो जरूर देखते होंगे. कई बार पुलिस वाले लाकडाउन का फायदा उठाकर लोगों को इस कदर बुरी तरह से डंडों से पीट दे रहे हैं कि वायरस से हॉस्पिटल में पहुंचे या ना पहुंचे पुलिस वालों के डंडों से जख्मी होकर वह हॉस्पिटल जरूर पहुंच जाएगा. ऐसे ही लट्ठमार पुलिस वालों को पत्रकारों से मारपीट करना महंगा पड़ गया. लठमारो और कलम चलाने वालों की लड़ाई में कलम के लड़ाके जीत गए.
ग्वालियर में तीन पुलिस वालों ने सहारा समय के पत्रकार को बहुत ही बुरी तरह से पीटा. मगर इन तीनों पुलिस वालों को पत्रकार के साथ मारपीट करना भारी पड़ गया. तीनों पुलिस वाले को अपनी नौकरी गंवानी पड़ी और विभागीय कार्यवाही का सामना भी करना पड़ेगा..
बताया जाता है कि चेतन सेठ अपने चैनल के लिए कवरेज करने फील्ड में निकले. लॉक डाउन की घोषणा के चलते तैनात पुलिस वालों ने उन्हें रोका. इसी बात पर कहासुनी हुई. एक एएसआई और दो आरक्षकों ने मिलकर पत्रकार चेतन की लाठी-डंडों से बरसात करके बुरी तरह से पिटाई कर दी. घटना ग्वालियर के चेतकपुरी गेट की है. पिटाई से पत्रकार के बाएं हाथ में फ्रैक्चर भी हो गया.
इस बात की सूचना जब मीडिया वालों को लगी तो सभी एकजुट होकर पुलिस और प्रशासनिक अफसरों से मिले व विरोध जताया. पत्रकारों द्वारा होने वाले विरोध से पुलिस प्रशासन बिल्कुल घबरा गया,वह जवाब देने से भी कतरा रहे थे कि पत्रकारों को क्या जवाब दिया जाएगा. घबराए पुलिस कप्तान नवनीत भसीन ने मामले की त्वरित जांच कराकर आरोपी पुलिस वालों को सस्पेंड कर दिया. सस्पेंड करने के बाद तब जाकर पुलिस कप्तान नवनीत भसीन के जान में जान आई. मीडिया वालों ने घटना के विरोध में फूलबाग चौराहे पर अपना कैमरा व बैग रखकर प्रदर्शन भी किया.
सस्पेंड किए गए पुलिसवालों में एक एएसआई केके शाक्य और दो आरक्षक गौरव शर्मा व बालेंद शर्मा हैं जो पत्रकार की पिटाई में शामिल थे.पुलिस वालों का जब सामना पत्रकारों से हुआ तो डंडे बरसाने वाले तीनों पुलिसकर्मी का किसी भी पुलिस के बड़े अधिकारियों ने साथ नहीं दिया उन्होंने पुलिस डिपार्टमेंट के बचाव के लिए तीनों पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया.
इतिहास उठा कर देखोगे तो भारत की आजादी में प्रेस का बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है क्योंकि जितने भी क्रांतिकारी थे वह सब पत्रकार थे अपने विचारों से लोगों को जागरूक किया. पत्र के माध्यम से लोगों तक अपनी बात पहुंचाई.उन्होंने कलम की नोक पर इस लड़ाई को जीता भी हैं.मगर भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में आज पुलिस वालों के हौसले इस कदर बुलंद हो चुके हैं कि अपनी वर्दी के रोब के आगे किसी को भी कुछ नहीं समझ रहे हैं आम जनता को तो पीट ही रहे हैं. लाक डाउन में पत्रकारों पर भी हमला कर रहे है. लॉक डाउन में आम लोगों के साथ बहुत ही क्रूरता भरा व्यवहार कर रहीे हैं. जब मन आ रहा है किसी को लाठी-डंडों से पीट रहे हैं. पुलिस वालों द्वारा इस कदर लाठी-डंडों से किसी को भी जख्मी कर देना पुलिस वालों की मन बढ़ई को बताता है.वायरस से कोई संक्रमित हो या ना हो पुलिस के लाठी-डंडों से वह जरूर अस्पताल में पहुंच जाएगा.
पत्रकारिता का वर्चस्व हमेशा से रहा है और आगे भी रहेगा क्योंकि पत्रकारों का दर्जा देश में सबसे ऊपर है इस बात को नकारा नहीं जा सकता.आजादी से पहले देश की लड़ाई में देश को स्वतंत्र कराने के लिए कोई पुलिस वाला सामने नहीं आया था क्योंकि पुलिस वाले उस वक्त अंग्रेज शासन की गुलामी बहुत ही कम रुपयों में कर रहे थे.
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