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shweta rajput

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लेबनान क्यों बर्बाद हो गया और क्या भारत भी कुछ दिनों में लेबनान बन जायेगा ?


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भारत को लेबनान बनने से बचाइए

कुछ दिन पहले लेबनान में महाविस्फोट हुआ और उसमें सैंकड़ों लोग मारे गये और हजारों घायल हो गये, एक लुटे पिटे देश के लिए यह भारी सदमा है

लेबनान बर्बाद हो रहा है और सचमुच मुझे इसका बहुत दु:ख भी है इसलिए लेबनान के बहाने भारत की वर्तमान परिस्थितियों का विश्लेषण करना भी समीचीन होगा।

भारत के अस्तित्व के लिए सीएए और एनआरसी आखिर इतनी जरूरी क्यों हैं, यह लेबनान के इतिहास से जाना जा सकता है

लेबनान इस बात का एक शानदार उदाहरण है कि किसी मुल्क द्वारा अति उदारता में की गई चंद गलतियां किस तरह एक हंसते खिलते और विकसित सहिष्णु राष्ट्र को नष्ट कर देती है।

1970_के_दशक में लेबनान को स्वर्ग कहा जाता था और इसकी राजधानी बेरूत को #पूर्व_का_पेरिस कहा जाता था।

लेबनानी ईसाई दुनिया के सबसे पुराने ईसाइयों में से थे और लेबनान एक प्रगतिशील, सहिष्णु और बहु-सांस्कृतिक समाज था जैसे भारत आज है लेबनान में मध्य पूर्व एशिया के कुछ बेहतरीन विश्वविद्यालय थे, जहाँ पूरे अरब से बच्चे पढ़ने आते थे और फिर वे वहीं सेटल हो जाते थे, वहां की बैंकिंग दुनिया की सबसे अच्छी बैंकिंग प्रणालियों में से एक थी, तेल न होने के बावजूद, लेबनान की अर्थव्यवस्था बहुत सुदृढ़ थी।

लेबनानी समाज की प्रगति का अनुमान साठ के दशक की हिंदी फिल्म
एन_इवनिंग_इन_पेरिस से लगाया जा सकता है, जिसकी लेबनान में भी शूटिंग की गयी थी।

अब लेबनान के बुरे दिन आरंभ होने लगे थे, लेबनान की इस्लामी आबादी लगातार बढ़ रही थी और मुसलमान ईसाईयों की तुलना में कहीं अधिक बच्चे पैदा कर रहे थे और उन बच्चों को उनकी शिक्षा की कमी के कारण धीरे-धीरे इस्लामिक कट्टरपंथी बनाया जा रहा था
सन् 1970 में जॉर्डन में अशांति और लड़ाई शुरू हो गई थी और लिबरल लेबनान ने फिलिस्तीनी मुस्लिम शरणार्थियों के लिए करुणा दिखाते हुए अपने दरवाजे खोल दिए फलस्वरूप
सन्_1980 तक आते आते लेबनान ठीक उसी स्थिति में आ गया था जैसा कि आज सीरिया है।

जिहादी जिन्होंने दया और करुणा की भीख मांगते हुए शरणार्थी के रूप में लेबनान में प्रवेश किया था, उन्हीं ने देशी ईसाइयों की सफाई शुरू कर दी जिसके परिणाम स्वरूप लाखों निर्दोष ईसाई मारे गये, इन्हें कोई भी बचाने के लिए नहीं आया और जो लोग इस हिंसा में बच गये उन्होंने लेबनान छोड़कर अन्यत्र प्रवासी बनने में ही अपनी भलाई समझी, लाखों मौतों और अन्यत्र पलायन के परिणाम स्वरूप लेबनानी ईसाई आबादी, जो 1970 में 60% थी, 30 वर्षों में मात्र 37% तक कम हो गई।

आज लेबनान में मुस्लिम बहुसंख्यक हो गये हैं और उन्होंने मूल लेबनानी ईसाइयों के वापस लौटने के सारे दरवाजे कानूनन बंद कर दिये हैं।

लेबनान की यह दुःखद कहानी केवल
30 साल पुरानी है, भारत को लेबनानी इतिहास से सीखने की जरूरत है, #रोहिंग्या और #बांग्लादेश घुसपैठियों जैसे जिहादी मानसिकता वाले लोगों से भी सतर्क रहने की जरूरत है ऐसे जिहादी मानसिकता वाले लोगों के खिलाफ आज हमें एकजुट होने की जरूरत है

और सीएए और एनआरसी के खिलाफ अभियान से जुड़े दलों संस्थानों लोगों नेताओं अभिनेताओं और बिकाऊ मीडिया का बहिष्कार करने की जरूरत है
दिखावे का बहिस्कार नही सच का
कही_देर_न_हो_जाये
यह अभी नहीं तो कभी नहीं वाली परिस्थिति है, आज नहीं जागे तो तीस-चालीस साल में हम भी लेबनान जैसे बर्बाद मुल्क बनने को तैयार रहें जब या तो हम अपने ही देश में मार दिए जाएंगे या धर्मांतरण करा दिए जाऐंगे या देश से बाहर कहीं भगा दिए जाएंगे या दोयम दर्जे के नागरिक बना दिए जाऐंगे

यह कोई डराने वाली कल्पना नहीं बल्कि साफ चेतावनी है जो लेबनान के इतिहास द्वारा पूरी दुनिया को दी जा रही है।

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