हाल ही में राष्ट्रीय राजनीती के फलक पर ममता बनर्जी एक बार फिर छा गई है। इस बार मामला है सीबीआई के केंद्र सरकार द्वारा दुरुपयोग करने का। वर्ष 2013 में कोलकाटा में शारदा चिट फण्ड का मामला सामने आया जिस में सीबीआई की जांच शुरू हुई थी।
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इस स्केम में बंगाल के काफी नेता जिनका नाता टीएमसी से है उन का नाम सामने आया। इन आरोपियों में से एक नाम कोलकाटा के वर्तमान पुलिस कमिश्नर राजीवकुमार का भी था और सीबीआई के लिए उनकी पूछताछ करना आवश्यक था जिसके चलते सीबीआई के कुछ अफसर राजीवकुमार में निवास पहुंचे थे। ऐसा कहा जाता है की वो राजीवकुमार को गिरफ्तार करने गए थे पर उन के पास वारंट नहीं था। इस के चलते स्थानिक पुलिस ने इन अधिकारीयो को गिरफ्तार कर लिया और थाने ले गए।
इस घटना के काफी प्रत्याघात हुए और मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी धरने पर भी बैठ गई। उन के कहने अनुसार केंद्र सरकार सीबीआई का दुरुपयोग कर रही है और ये धरना लोकतंत्र को बचाने के लिए जरूरी था। हालांकि यहाँ सवाल ये उठता है की ऐसे धरने से लोकतंत्र कैसे बचाया जा सकता है? दूसरी ओर उच्चतम न्यायालय ने राजीवकुमार की गिरफ्तारी पर रोक लगाईं है और इस फैसले को ममता अपनी मौलिक जीत बता रही है। अगर विशेषज्ञों की माने तो ये धरना सिर्फ स्थानिक प्रजा को उकसाने का एक कदम था और सरासर गलत एक्शन कहा जा सकता है। लोकतंत्र को बचाने के दीदी के इस दावे को न सिर्फ गलत कहा जा सकता है पर राष्ट्रीय राजनीती में दीदी के आगे बढ़ने के कदम पर एक बहुत बड़ा सवाल भी बन चुका है।