भारत के आजादी से पहले कश्मीर के राजा कौन थें? - letsdiskuss
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Karan Rathor

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भारत के आजादी से पहले कश्मीर के राजा कौन थें?


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कश्मीर की कहानियाँ हम सब ने सुनी है। कश्मीर को धरती का स्वर्ग भी कहा जाता है। भारत और पाकिस्तान से अलग कहे जाने वाले कश्मीर के महाराजा हरि सिंह थे। वह कश्मीर को  भारत और पाकिस्तान से अलग देश बनाना चाहते थे । 

भारत और पाकिस्तान दोनो ही कश्मीर को अपने हिस्से मे चाहते थे इसी वजह से यह दोनो के बीच विवाद की वजह बना रहा। 

86,024 वर्ग मिल मे फैला जम्मू और कश्मीर राज्य महाराजा हरि सिंह के काबू मे था। 

वह कश्मीर को स्वतंत्र राज्य बनाना चाहते थे। उन्होंने 15 अगस्त 1947 के पहले ही स्टैंड स्टील की घोषणा कर दी थी। वह चाहते थे की भारत और पाकिस्तान दोनो का हिस्सा कश्मीर ना बने। 

लेकिन पाकिस्तान को यह मंजूर नही था वह कश्मीर पर पूरी तरह कब्जा करना चाहता था इसके लिए उसने कश्मीर पर दबाब डालना शुरू कर दिया था। 

कबिलाइयो ने कश्मीर मे कब्जा करके उत्पाद मचा दिया और वहा की शांति को पूरी तरह खत्म कर दिया। कबिलाइयो ने वहा बिजली, सड़को और बहुत सारी जरूरी चीजो खराब कर दिया था। 

पाकिस्तान ने हरि सिंह को लालच भी दिया लेकिन वह उनकी बातो मे नही आये और पाकिस्तान के दबाब के कारण उन्होंने भारत के प्रधान मन्त्री जवाहर लाल नेहरू से मदद मांगी और भारतीय सैनिको के द्वारा पाकिस्तान के जवानो को हरा दिया। 

महाराजा हरि सिंह ने 1947 मे भारत के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिये थे। 

महाराजा हरि सिंह का जन्म 23 सितम्बर 1895 को जम्मू कश्मीर की रियासत मे ही हुआ था। 1923 मे अपनी पिता की मृत्यु के बाद महाराजा हरि सिंह ने राजगद्दी को संभाला। हरि सिंह ने चार शादियाँ की लेकिन उनकी तीन पत्नियों का निधन हो गया था। और चौथी पत्नी कानगरा की महारानी थी उनका नाम तारा देवी था। तारा और हरि सिंह का एक पुत्र भी था जिसका नाम युवराज कर्ण था। 

महाराजा के विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने के बाद उन्हे जम्मू को छोड़ कर जाना पड़ा। अंतिम समय उन्होंने मुंबई मे बिताए। उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार उनकी राख को उनके पुत्र ने पूरे जम्मू कश्मीर मे फैलाया था। 

 

 

 

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दोस्तों हम आपको बताते हैं कि भारत के आजादी से पहले कश्मीर के राजा कौन थे।

 दोस्तों आप सभी को पता है कि हमारा देश 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ था लेकिन उससे पहले जब हमारा देश आजाद नहीं हुआ था तब भारत के आजादी से पहले कश्मीर के राजा हरि सिंह थे।

 

महाराजा हरि सिंह जम्मू और कश्मीर में 1925 से 1947 तक शासन किया।यह जम्मू और कश्मीर के अंतिम राजा थे। 1947 को जब भारत को ब्रिटिश शासन से आजादी मिली तो जम्मू और कश्मीर को भारत या पाकिस्तान में शामिल होने का विकल्प दिया गया था। जम्मू और कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच दुश्मनी की वजह रहा है। पाकिस्तान ने महाराजा हरि सिंह को अपने में मिलाने के लिए कई प्रलोभन दिए लेकिन फिर भी महाराजा हरि सिंह उनके पक्ष मे नहीं गए।हरि सिंह ने शुरू में जम्मू और कश्मीर के लिए स्वतंत्रता बनाए रखने की मांग की लेकिन पाकिस्तान आदिवासियों के आक्रमण और बिगड़ती सुरक्षा स्थिति के कारण उन्होंने आधिकारिक रूप से भारत के डोमिनियन में राज्य को एकीकृत करते हुए विलय के साधन पर हस्ताक्षर कर दिया और इसके बाद जम्मू और कश्मीर भारत का हिस्सा बन गया और भारतीय संघ के भीतर एक राज्य के रूप में प्रकाशित किया गया।जम्मू और कश्मीर भारत का हिस्सा पहले से नहीं था।जम्मू और कश्मीर भारत से एक अलग देश था लेकिन जब महाराजा हरि सिंह ने जम्मू और कश्मीर को एकत्र करने के लिए विलय के साधन पर हस्ताक्षर कर दिया तो जम्मू और कश्मीर भारत का हिस्सा बन गया। राजा हरि सिंह के इस फैसले का सभी ने स्वागत किया।

हम कश्मीर के बारे में और कुछ जानकारी देते हैं- कश्मीर का नाम ऋषि कश्यप के नाम पर बसाया गया था और कश्मीर के पहले राजा महर्षि कश्यप थे।

 कश्मीर की घाटी में सबसे पहले कश्यप समाज निवास करता था।

 

 

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क्या आप जानते हैं कि भारत के आजादी से पहले कश्मीर के राजा कौन थे।जम्मू-कश्मीर का भारत में विलयन का प्रश्न शेष बच गया था।जिस समय देश आजाद हुआ उस समय जम्मू-कश्मीर के शासक महाराजा हरिसिंह थे। वे डोगरा वंश के थे।महाराजा हरिसिंह कश्मीर को स्वीटजरलैंड की तरह तटस्थ देश के रूप में रखना चाहते थे। इसी समय पाकिस्तान के कबायलियों ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। पाकिस्तानी कबायली फौज श्रीनगर की ओर बढ़ने लगी जिससे मजबूर होकर के महाराजा हरिसिंह ने जम्मू-कश्मीर को भारत के साथ विलीयन कर दिया।

वह कश्मीर को स्वतंत्र राज्य बनाना चाहते थे। उन्होंने 15 अगस्त 1947 के पहले ही स्टैंड स्टील की घोषणा कर दी थी। वह चाहते थे की भारत और पाकिस्तान दोनो का हिस्सा कश्मीर ना बने। भारतीय राजनीति नेता चाहते थे कि कश्मीर की जनता यह निर्णय ले कि वो भारत के साथ मिलना चाहती है या पाकिस्तान के साथ, क्युकी कश्मीर विवाद की भांति ही जूनागढ़ और हैदराबाद की भारत में विलय के पक्ष में नहीं थे लेकिन फिर भी उनका विलय भारत में हुआ क्योंकि जूनागढ़ के नवाब मुसलमान थे लेकिन वहां की अधिकतर जनसंख्या हिंदुओं की थी जो भारत के पक्ष में थी इसी प्रकार हैदराबाद के निजाम भी पाकिस्तान में शामिल होना चाहते थे लेकिन हैदराबाद की जनता भारत में मिलना चाहती थी।

 

महाराजा हरि सिंह का जन्म 23 सितम्बर 1895 को जम्मू कश्मीर की रियासत मे ही हुआ था। 1923 मे अपनी पिता की मृत्यु के बाद महाराजा हरि सिंह ने राजगद्दी को संभाला। हरि सिंह ने चार शादियाँ की लेकिन उनकी तीन पत्नियों का निधन हो गया था। और चौथी पत्नी कानगरा की महारानी थी उनका नाम तारा देवी था। तारा और हरि सिंह का एक पुत्र भी था जिसका नाम युवराज कर्ण था। अपने राज्य में जनजातीय हथियारबंद लोगों और पाकिस्तानी सेना के आक्रमण के खिलाफ भारतीय सैनिकों का समर्थन प्राप्त करने के लिए उन्हें भारत के डोमिनियन में शामिल होने की आवश्यकता थी । सिंह 1952 तक राज्य के महाराजा बने रहे, जब भारत सरकार द्वारा राजशाही समाप्त कर दी गई।Letsdiskuss


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चलिए हम आपको बताते हैं कि भारत की आजादी के पहले कश्मीर के राजा कौन थे:-

दोस्तों कश्मीर का नाम सुनते ही सबसे पहले लोगों के मन में लाल सेब और अंगूरों से लड़े बगीचे और एक तरफ माता वैष्णो देवी का दरबार लोगों को दिखाई देने लगता है। दोस्तों कश्मीर को भारत देश का स्वर्ग भी कहा जाता है। चलिए अब हम आपको बताते हैं कि भारत देश की आजादी से पहले कश्मीर के राजा महाराज हरि सिंह थे। दोस्तों मैं आपको बता दूं कि राजा हरि सिंह  कश्मीर को भारत और पाकिस्तान से एक अलग देश बनाना चाहते थे। मैं आपको बता दूं कि महाराजा हरि सिंह ने  15 अगस्त सन 1947 से पहले स्टैंड स्टील रहने की घोषणा की थी। इस घोषणा का मतलब था कि वह भारत या पाकिस्तान किसी का भी हिस्सा नहीं बनने देंगे। कहा जाता है कि महाराजा हरि सिंह राज्य को एक स्वतंत्र देश घोषित करना  चाहते थे।

 यह भी कहा जाता है कि आजादी के इस साल में लॉर्ड माउंटबेटन कश्मीर गए थे। और वहां पर उन्होंने राजा हरि सिंह से कहा कि भारत पाकिस्तान अब अलग हो चुके हैं। और उन्होंने महाराजा हरि सिंह को कहा कि वे किसी एक देश को चुन ले। लेकिन हरि सिंह ने इस बात पर हम ही नहीं भरी। और फिर राजा हरि सिंह के इस रवैया को माउंटबेटन समझ जाते हैं और वहां से वापस आ जाते हैं। दूसरी ओर भारत के तत्कालीन गृहमंत्री  सरदार वल्लभभाई पटेल ने माउंटबेटन से यह तक कहा कि अगर कश्मीर पाकिस्तान से मिलना चाहता है तो उन्हें कोई भी दिक्कत नहीं है। लेकिन फिर भी महाराजा हरि सिंह फैसला नहीं ले पा रहे थे। और उनका तनाव बढ़ते जा रहा था। इतना ही नहीं पाकिस्तान ने महाराजा हरि सिंह को अपने मे शामिल करने के लिए कई लालच भी दिए। लेकिन महाराजा हरि सिंह कश्मीर के इस चंगुल में नहीं फंस पाये।

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